
यह कहानी एक समाचार पर आधारित है।
“पर्ची वाले बाबू, ओ पर्ची वाले बाबू”
दो बार पुकारा तो पर्ची वाले बाबू की तंद्रा टूटी।
अंगड़ाई लेते हुए घड़ी में देखा, रात के 10:30 बज रहे थे।
“हां, क्या हुआ?”
“पर्ची बनानी है ? ला पांच रुपये दे।”
“वो तो नहीं है।”
“पांच रुपये नहीं है ? तो क्यों आई यहां, बेकार में नींद खराब कर दी।”
पर्ची बाबु फिर सर एक तरफ लुढ़का कर कुर्सी पर पसर गया और वो बेचारी वापस आ कर बेंच पर बैठ गई।
कभी जमीन पर कराहते अपने मर्द को देखती, तो कभी उसकी व्याकुल सी निगाहें गलियारे और दालान के हर कोने को टटोल आती।
अब कहां से लाए पांच रूपये।
“अरि साइड हो ना बड़े डॉक्टर बाबू जा रहे हैं। कहां बीच में खड़ी है।”
बड़े डाक्टर बाबू का दरबान उसे एक धकेलते हुए चिल्लाया
बड़े डाक्टर बाबू !!
जब उसे आभास हुआ तो बड़े डाक्टर बाबू अपनी गाड़ी में बैठ रहे थे।
उसने एकदम से खुद को फिर बटोरा और भाग कर डॉक्टर बाबू के पैरों से लिपट गई।
डॉक्टर बाबू डाक्टर बाबू, मेरे मरद को पता नहीं क्या हो गया है भगवान के लिए उसे देख लो ना।
“अरे कौन है यार ये?”
बड़े डाक्टर बाबू झुंझला गए।
“पता नहीं सर, कहां से आ गई, अभी पर्ची बनवाने आई थी। पर इसके पास पांच रुपये नहीं है, तो कैसे बनाता है।”
पर्ची बाबू आधी नींद में अपनी सफाई देते हुए बाहर निकले
“ओह, अच्छा।”
“तू एक काम कर। अभी तो मुझे बहुत देर हो गई है। मेरी ड्यूटी सुबह दस बजे शुरू होती है। देख बारह घंटे से ज्यादा से यहीं पर हूं। थका हूं, अभी घर जाऊंगा।”
“तू सुबह दस बजे सीधे मेरे केबिन में आ जाना। मैं बिना पर्ची तेरे आदमी को देख लूंगा।”
“पर डॉक्टर साहब सुबह दस बजे?!!”
वो उदास पड़ गई।
“हां, तो? पर अभी नहीं हो सकता। सुबह दस बजे आ जाना।”
और डॉक्टर साहब चले गए। वो भाव हीन खड़ी रह गई।
फिर धीरे से अस्पताल कि सीढ़ीयों पर किनारे ही बैठ गई।
दरबान भी वही स्टूल पर बैठा सुरती रगड़ रहा था।
भैया आप ही दे दो ना पांच रुपये पर्ची बनाने के लिए।
“अरी, तुझे बड़े डॉक्टर बाबू ने बोला तो है सुबह दस बजे मिलने के लिए।”
“तब दिखा लेना।”
“कहां है तेरा मरद।”
“भैया वो पीछे लेटे पड़े हैं, पहली बेंच के पास”
“बहुत दर्द में हैं, कराह रहे हैं।”
“कहां कराह रहा है वो तो आराम से सो रहा है।”
“नहीं भैया, वो तो बेहाल है दर्द से। आओ देखो तो।”
वो दरबान बाबू को वहीं ले आई।
“देख आराम से सो तो रहा हैं”
“नहीं दरबान बाबू उन्हें बहुत दर्द है।”
“ये भी पगला गई है।”
“क्या हुआ, कौन पगला गई है।”
बगल से गुजरती नर्स ने व्यंग्य से पूछा।
“यह औरत पगला गई है सिस्टर।”
इतना कहकर दरबान पीक थूकने बाहर चला गया। नर्स ने देखा उस आदमी के शरीर में कोई हरकत नहीं थी। वो झुक कर उसकी नब्ज टटोलने लगी।
“माई, तू इसे घर ले जा और कर्म कांड करवा इसका ।”
“अब नहीं रहा तेरा मरद”
नहीं रहा…
वो बस सन्न हो गई, आंखें फटी की फटी, पता नहीं ये लोग क्या क्या बोल रहे हैं। वो मांगती रही। पर, जिंदा लोगों के बीच जिंदगी नही मिली। आखिर मौत ही आई उसके दर्द को गले लगाने।