
शून्य
जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई नौकरी की खोज….
ये नहीं वो,दूर नहीं पास,ऐसा करते करते दो तीन नोकरियां छोड़ने के बाद एक तय हुई, थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई….
फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक, वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले “शून्यों” का अंतहीन खेल😎
दो तीन वर्ष और निकल गए,बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए….
उम्र 27 हो गई और फिर विवाह हो गया….
जीवन की “राम कहानी” शुरू हो गई,शुरू के दो चार साल नर्म,गुलाबी,रसीले और सपनीले गुजरे,हाथों में हाथ डालकर घूमना फिरना,रंग बिरंगे सपने..
पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए… 😎
और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना,बैठना, खाना पीना, लाड दुलार
समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला❓😎
इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया,बातें करना घूमना फिरना कब बंद हो गया❓😎 दोनों को पता ही न चला…..
बच्चा बड़ा होता गया….
“वो” बच्चे में व्यस्त हो गई, मैं अपने “काम”में, घर और गाडी की क़िस्त,बच्चे की जिम्मेदारी,शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में “शुन्य” बढाने की चिंता……😎
उसने भी अपने आप काम में पूरी तरह झोंक दिया और मैंने भी….😎
इतने में मैं 37 का हो गया। घर,गाडी,बैंक में “शुन्य”, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है❓😎
पर वो है क्या समझ नहीं आया❓उसकी चिड़ चिड़ बढती गई, मैं उदासीन होने लगा…..
इस बीच दिन बीतते गए, समय गुजरता गया,बच्चा बड़ा होता गया,उसका खुद का संसार तैयार होता गया, कब शादी की सालगिरह आई और चली गई ❓ पता ही नहीं चला, तब तक दोनों ही 40- 42 के हो गए, बैंक में “शुन्य” बढ़ता ही गया….. 😀
एक नितांत एकांत क्षण में मुझे वो “गुजरे” दिन याद आए और मौका देख कर उस से कहा:-अरे जरा यहां आओ, पास बैठो, चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं……
उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा:-तुम्हें कुछ भी सूझता है, यहां ढेर सारा काम पड़ा है और तुम्हें बातों की सूझ रही है…. 😎
कमर में पल्लू खोंस वो निकल गई 😎
तो फिर आया पैंतालिसवा साल,आंखों पर चश्मा लग गया,बाल काला रंग छोड़ने लगे,दिमाग में कुछ उलझनें शुरू हो गई…
बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक में “शुन्य” बढ़ रहे थे……😀
देखते ही देखते उसका कॉलेज ख़त्म। वह अपने पैरों पे खड़ा हो गया, उसके पंख फूटे और उड़ गया “परदेश”……….. 😀
उसके बालो का काला रंग भी उड़ने लगा, कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा,उसे चश्मा भी लग गया,मैं खुद को बूढ़ा समझने लगा,वो भी “उमरदराज” लगने लगी……… 😀
दोनों 55,60 की और बढ़ने लगे। बैंक के “शून्यों” की कोई खबर नहीं। बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे….. 😎
अब तो गोली दवाइयों के दिन और समय निश्चित होने लगे,”बच्चे बड़े होंगे तब हम साथ रहेंगे”….सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा….
बच्चे कब वापिस आएंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे…. 😎
एक दिन यूं ही सोफे पे बैठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था,वो दिया बाती कर रही थी कि तभी फोन की घंटी बजी,लपक के फोन उठाया….
दूसरी तरफ बेटा था,जिसने कहा कि उसने शादी कर ली है और अब परदेश में ही रहेगा…. 😎
उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के “शून्यों” को किसी “वृद्धाश्रम” में दे देना और आप भी वही रह लेना…..😎
कुछ और ओपचारिक बातें कह कर बेटे ने फोन रख दिया….. 😎
मैं पुन: सोफे पर आकर बेठ गया,उसकी भी पूजा ख़त्म होने को आई थी….
मैंने उसे आवाज दी:- चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हैं…. 😀
वो तुरंत बोली:- अभी आई….. 😀
मुझे विश्वास नहीं हुआ,चेहरा ख़ुशी से चमक उठा,आंखें भर आई,आंखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए…..😎
अचानक आंखों की चमक फीकी पड़ गई और मैं *
“निस्तेज” हो गया….हमेशा के लिए..
उसने शेष पूजा की और मेरे पास आके बैठ गई:- बोलो क्या बोल रहे थे❓😎
लेकिन मेने कुछ नहीं कहा, उसने मेरे शरीर को छू कर देखा,शरीर बिलकुल ठंडा पड गया था…..
मैं उसकी ओर एकटक देख रहा था,क्षण भर को वो शून्य हो गई…
क्या करू…. ❓😎
उसे कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन एक दो मिनट में ही वो चेतन्य हो गई,धीरे से उठी, पूजा घर में गई, एक अगरबत्ती की,इश्वर को प्रणाम किया और फिर से आके सोफे पे बैठ गई…
मेरा ठंडा हाथ अपने हाथो में लिया और बोली:-
चलो कहां घुमने चलना है तुम्हें❓क्या बातें करनी हैं तुम्हें,बोलो
ऐसा कहते हुए उसकी आंखें भर आई…..😭
वो एकटक मुझे देखती रही,आंखों से अश्रु धारा बह निकली, मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया,ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था….
क्या ये ही जिन्दगी है…. ❓😎
सब अपना नसीब साथ लेके आते हैं इसलिए कुछ समय अपने लिए भी निकालो, जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने रखो,शुरुआत आज से करो,क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा….. कभी नहीं आएगा
सभी अपनों को समर्पित ये मार्मिक सच🙏🙏🙏
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