
” निशब्द
सुधा ….. ओ सुधा …. यार ये क्या आज भी वही मूंग की दाल …. अरे सर्दियों का सीजन है कभी आलू गोभी कटहल या सरसों का साग तो बना लिया करो ….
इन सर्दियों में गाजर का हलवा पकौड़े गर्मागर्म चाय परांठे होने चाहिए और तुम वही रोज ये दाल तो वो दाल …. चलो दाल बनाई भी तो ना मिर्च का पता ना नमक बिल्कुल फीकी फीकी सी …. यार पहले तो इतना स्वादिष्ट खाना बनाती थी और अब …. लगता है बुढ़ापे में तुम सठिया गयी हो बुजुर्ग मोहनबाबू अपनी बुजुर्ग पत्नी सुधाजी से बोले
देखिए जी ….. डाक्टर ने ही आपको चटखारे वाली चीजों से परहेज़ करने को कहा है तो चुपचाप दाल रोटी खाइए सुधाजी अपने पति मोहनबाबू से बोली
हूह…. अच्छा छोड़ो डाक्टर को…. चलो एक दो मिर्च दो आचार की
अच्छा अब इस उम्र में मिर्ची खाओगे…..रोज तो पेट मे तुम्हारे जलन होती रहती है…..
सुनो मोहनजी तुम्हारी सेहत के लिए जो अच्छा है वही तो बनाती हूं ये हर चीज़ में नुक्स निकालने की तुम्हारी आदत गयी नही अब तक….
अच्छा तो तुम भी कहा सुधर गयी हो…..मेरी सुनती ही कहा हो सब अपने मन का ही करती हो ना…
देखो में ये सब अपनी खुशी के लिए नहीं करती तुम्हारी तबियत … तुम देख लेना जब मे नही रहूंगी तब तुम्हे पता चलेगा….
जब कोई पूछने वाला नही होगा ना तब याद करके रोते रहना कि कितना अच्छा खाना बनाती थी मेरी सुधा
अच्छा …. ठीक है ठीक है नहीं मांगता आचारी मिर्च . ….ऐ…..वैसे तुम कहा जाने वाली हो
बस…. मुझे अब लगने लगा है कि मेरे पास अब समय कम ही बचा है इस उम्र में
क्या …..चुप रहो तुम और खबरदार जो ऐसी फालतू की बाते की तो ….
नहीं मोहनजी ……में सच कह रही हूं मुझे लगता है मुझे जल्द ही ऊपर वाले का बुलावा आने वाला है साठ पार कर लिए हैं मैंने अब तो उठने बैठने में भी तकलीफ होती है कबतक दवाओं पर चलेगा ये शरीर…..
अरे तुम किस सोच में खो गए हो चलो खाओ भी
देखो तो दूसरी रोटी भी परोस दी मैंने …. अपने पति की तंद्रावस्था भंग करते हुए सुधाजी बोली
सच कहूं सुधा ….. मुझे तो ये लग रहा है कि मैं तुम से पहले ही चला जाऊंगा…..मेरा समय बस पूरा होने वाला है ये बीमारियां ….
चुप रहो खबरदार आज के बाद ऐसी बात मुंह से निकाली तो……तुम्हारे बिना मैं अकेली कैसे जीऊंगी कहते हुए सुधाजी सुबक पडी
फिर तुमने क्यों की ऐसी बात…..
मैं भी कहा रह पाऊंगा तुम्हारे बिना अकेले. . .. तुम भी आज के बाद ऐसी बात कभी मत करना कहते हुए मोहनबाबू का गला भी रुंधा सा गया
सच्ची में यही सोचती हूँ कि अगर मैं पहले चली गयी तो तुम्हारा क्या होगा…..
हम दोनों ही एक दूसरे के बिना जी नही पाएंगे…..
काश हम को जब भी ऊपर वाले का बुलावा आए एक साथ ही आये और हम इस जहां से एक साथ ही विदा हो……
काश….. कहते हुए दोनों ही एक-दूसरे को गले लगाते हुए अपनी आंखों से एक-दूसरे के कंधे भिगो रहे थे ….
निशब्द..
#दीप..🙏🙏🙏