
25 अप्रैल को संपूर्ण विश्व में विश्व मलेरिया दिवस के रूप में मनाया जाता है। दुनिया में कई सारे देश ऐसे हैं जो कि एक मच्छर के काटने से होने वाली जानलेवा बीमारी मलेरिया से लड़ रहे हैं। हर साल मलेरिया से लाखों मौतें होती हैं। गंदगी वाली जगहों और नम इलाकों में मलेरिया बहुत जल्दी अपने पैर पसारता है। कई सारे लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं ,जिस कारण उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। मलेरिया के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिवर्ष विश्व मलेरिया दिवस मनाया जाता है। अगली स्लाइड्स से जानिए इसका इतिहास, विषय एवं अन्य महत्वपूर्ण बातें।
: *विश्व मलेरिया दिवस का इतिहास*
पहली बार ‘विश्व मलेरिया दिवस’ 25 अप्रैल 2008 को मनाया गया था। यूनिसेफ द्वारा इस दिन को मनाने की शुरुआत की गई। इसको मनाने के पीछे कारण यह है कि हर साल पूरे विश्व में इस रोग से कई लोग जान गवां देते हैं लेकिन इसके प्रति आज भी जागरूकता नहीं है। मरने वालों में ग्रामीण और अविकसित क्षेत्र के लोगों की संख्या अधिक होती है।
*मलेरिया का इतिहास*
मलेरिया इटालियन भाषा के शब्द माला एरिया से बना है, जिसका कि अर्थ बुरी हवा होता है। कहा जाता है कि इस बीमारी को सबसे पहले चीन में पाया गया था, जहां इसे उसे समय दलदली बुखार कहा जाता था क्योंकि यह बीमारी गंदगी से पनपती है। साल 1880 में मलेरिया पर सबसे पहला अध्ययन वैज्ञानिक चार्ल्स लुई अल्फोंस लैवेरिन ने किया।
प्रतिवर्ष विश्व मलेरिया दिवस को लेकर एक विषय तय किया जाता है। देश के विभिन्न चिकित्सक, वैज्ञानिक, विशेषज्ञ जिसपर कार्य करते हैं। इस वर्ष का विषय ‘जीरो मलेरिया लक्ष्य की ओर बढ़ना है’। पिछले वर्ष का विषय ‘जीरो मलेरिया की शुरुआत मुझ से’ रखा गया था। इन विषयों को रखने का मकसद कैसे भी करके मलेरिया से विश्व को मुक्त करना है।
*मलेरिया के लक्षण*
मलेरिया के कुछ लक्षण कोरोना से मिलते-जुलते हैं लेकिन मलेरिया अधिकतर बारिश के मौसम में होता है क्योंकि इन दिनों मच्छर अधिक होते हैं। मलेरिया होने पर बुखार आना, घबराहट होना, सिरदर्द, हाथ-पैर दर्द, कमजोरी आदि लक्षण दिखाई देते हैं। इन लक्षणों को अधिक नजरअंदाज करना स्थिति को गंभीर कर सकता है।