
“साथी…
रविवार का दिन था और दोपहर में फिर से सुबह का गया मोहन निराश होकर लौटा था घरपर पहले से ही उसकी दोनों बहनें और बहनोई बैठे चाय समोसे का लुत्फ उठा रहे थे बस राम राम करते हुए वह अंदर की और बढ़ गया उसका मूड बेहद खराब था सो वो घर में किसी से भी बात करना नहीं चाहता था
उसने तौलिया लिए बाथरूम का रुख किया और नहाने की तैयारी आरम्भ कर दी
तभी पत्नी सुधा साबुन और तौलिया देते हुए बोली कुछ बात बनी जी
नही… अभी तक कोई सूरत नहीं निकली धीमे स्वर में कहकर मोहन ने बाथरूम का दरवाजा बंद कर दिया मगर उसके कान बहन-बहनोइयों में हो रहे वार्तालाप की ओर ही लगे थे
अरे भैया जैसा सोचते हैं उस हिसाब से भला कहीं मकान मिला है बड़ी बहन लगभग ताना कहते हुए बोली
भैया थोड़ी हिम्मत और दिखाएं तो सात आठ लाख में तीन कमरे वाला ठीक-ठाक फ्लैट तो मैं दिला सकता हूं छोटा बहनोई अपनी बड़ाई करते हुए बोला
यह सब बातें कान में पड़ते ही मोहन का मन हुआ कि वह इसी समय बाथरूम से बाहर निकले और बहनोई से कहे यदि इतना पल्ले होता तो मैं स्वयं नहीं खरीद सकता था
मैं क्या बच्चा हूं मुझे नहीं पता जिन सोसायटी की बात कर रहे हो क्या आसान है वहां रहना अगर किश्तों पर कोशिश भी करुं तो बैंक लोन उठाकर सोसायटी मेंटेनेंस सिक्योरिटी बिजली पानी सबकुछ अधिक खर्च पर केवल और केवल स्टेटस मेंटेन करने के लिए
दरअसल ये तुम नहीं तुम्हारी ऊपर की कमाई बोल रही है बडे बाबू के पियुन जो ठहरे टनाटन पैसा बरसता है उनकी सीट पर और उनसे मिलने से पहले तुम जो …
मोहन गुस्से और ईर्ष्या से भर उठा और एक झटके से पानी भरा मग सिर पर उलट लिया एक क्षण रुका और फिर तीन-चार मग अपने शरीर पर उलट लिए और बदन पर साबुन रगड़ने लगा
अरे भाई आज पैसे का ही बोलबाला है सरकार भी पैसे की भाषा बोलती है और केवल रेहड़ी पटरी लगाने से क्या होगा और वो भी ईमानदारी से अरे लोग दोगुना तीगुना दामों पर बेचते हैं मगर इन्हें बस पांच सात रुपए किलो पर संतोष है कितनी बार कहा है दूध का बिजनेस कर लो पानी मिलाकर बेचों अरे बिना जुगाड़ किए कुछ नहीं होगा बड़ा बहनोई अंहकार की भाषा से बोला
साबुन रगड़ते मोहन के हाथ रुक गए वह घुटकर रह गया जिस ईमानदारी की नींव पर उसके पिताजी ने उसे अपना गौरव बताया जो उसका कर्तव्य है उस ईमानदारी को छोड़कर वो बेईमानी का काम करे वो भी एक मकान के लिए यह नहीं हो सकता आदमी के कुछ अपने भी तो आदर्श होते हैं अब मकान खरीदा जाए या ना खरीदा जाए मगर वह ऐसा कुछ नहीं करेगा कि अपनी ही नजरों में गिर जाए
मग से पानी फिर बदन पर डालने लगा साबुन बदन से उतरने लगा उसने राहत महसूस की
ऐसी बात नहीं है कोई रास्ता निकल ही आएगा हर आदमी की अपनी-अपनी परिस्थितियाँ होती हैं अपनी-अपनी समस्याएं होती हैं जो व्यक्ति जिम्मेदारियों से पलायन ना करके जूझने में विश्वास रखते हैं उन्हें मंजिल देर से ही सही मगर मिलती जरूर है मुझे अपने पति पर ना केवल विश्वास है बल्कि गर्व भी है दीदी जी जीजा जी ये उसकी पत्नी सुधा की आवाज थी जो गर्व से बोलो रही थी
पत्नी की बात सुनकर उसका चेहरा खिल उठा उसका मन हुआ की वो तुरंत सुधा को बाँहों में भर ले
अब तक वह तौलिए से अपना बदन पोंछकर कपड़े बदलने लगा था वह किसी ताजे फूल की तरह फ्रेश हो गया था उसके मन में खुशी के साथ साथ संतोष भी था की कठिनाईयों भरी डगर पर भी उसकी हमराही उसकी सच्ची हमसफर उसकी पत्नी उसके साथ है और ऐसे साथी के साथ होने का मतलब है वो देरसेबेर कामयाब जरुर होगा
एक सुंदर रचना…
#दीप…🙏🙏🙏