
आज मैं जब सुबह सुबह घूमने निकला, तो सामने से एक परिचित मिले और साथ हो लिये. देश- विदेश की चर्चा एवं राजनीतिक चर्चा आजकल प्रिय विषय है ही। तो वह बन्धु चर्चा करते करते कश्मीर से कैराना व केरल से बंगाल तक मानसिक व वाचालिक भ्रमण करने लगे।मैं चुप हो उनकी सुन रहा था।
फिर बरनवाल जाति पर चर्चा छिड़ गई.
तभी अचानक बोले *आजकल बरनवाल समाज में दहेज, विवाह विच्छेद आदि की घटनायें बढ़ती जा रही है.*
किसी बरनवाल पर संकट आता है तो दूसरा बरनवाल सहयोग नहीं करता है.
आखिर *बरनवाल समितियों के पदाधिकारी क्यों चुप है* – इन मामलो में आखिर *बरनवाल संघठन कर क्या रहा है?*
अब तो मुझे जवाब देना ही पड़ा।
मैने कहा ” बरनवाल समिति क्या है?”
बोले “बरनवालो का संगठन।”
मैं बोला “तो आप बरनवाल हैं?”
वह बोले “कैसा प्रश्न है यह आपका? मैं बरनवाल हूं और मेरे रिश्तेदार भी बरनवाल है।”
तब मैने कहा तो क्या आप जुडे हैं बरनवाल समिति और उसके मीटिंग व कार्यक्रमों में जाते
हैं?”
वह बोले.. “नहीं तो”
तब मैने पूछा “आपका बेटा, पोता, नाती या परिवारजन कोई रिश्तेदार जुड़ा है क्या?”
तब बोले “नहीं कोई नहीं। बेटा नौकरी पर है, फुर्सत नहीं मिलती उसे। पोता नाती विदेश में सैटल हो चुके हैं। रिश्तेदार बडे व्यवसायी हैं। उसी में व्यस्त हैं व शेष घर पर ही रहते हैं और बच्चों को तो कोचिंग से फुर्सत नहीं मिलती।”
*मैने कहा – इसका मतलब यह हुआ कि बरनवाल समिति आपके व आपके परिवार व रिश्तेदारों को छोडकर शेष अन्य बरनवालो का संगठन है?*
वह चिढकर बोले
“आज क्या हुआ है आपको?
कैसी बात कर रहे हो आप? अरे भाई ऐसी स्थिति मेरी अकेले की थोड़े है। समाज में 90% बरनवाल लोग ऐसे हैं जिनको अपने काम से फुर्सत ही नहीं मिलती है। तो यह आप केवल मुझ पर ही क्यों इशारा कर रहे हो? काम ही तो पूजा है, काम नहीं करेंगे तो देश कैसे चलेगा?”
मैने फिर कहा *तो मतलब आपके हिसाब से समिति से केवल 10% बरनवाल लोग ही जुड़े हैं।*
मैं देखता हूं समाज के मीटिंग में वहीं 10-15 लोग ही आते हैं जो लगभग हर कार्यक्रम में नजर आते हैं
मैने पूछ लिया कि कभी जाकर मिले उनसे?
बोले “नहीं..”
“कभी उनकी कोई मदद की?”
बोले “नहीं”
“कभी उनके उत्सवों कार्यक्रमों में भागीदारी की?”
बोले ” कभी-कभी, या जब फुर्सत मिला तब”
कभी अपने घर बुलाया?
बोले “नहीं”
समाज के पदाधिकारी के नाते अपने घर या विवाह के किसी कार्यक्रम में उन्हें निमंत्रण दिया?
बोले “नहीं”
घर में बच्चो से बरनवाल समिति या बरनवाल समाज के उत्थान के बारे मे चर्चा करते हो?
बोले “नहीं”
सिर्फ बरनवाल होने के नाते किसी अनजाने बरनवाल की मदद की हो?
बोले “नहीं”
*”तो फिर आप की बरनवाल समितियों से यह सारी अपेक्षा क्यों?”*
(मैं भी तो खीज गया था अन्दर से) आखिर बोल ही पड़ा।
*”तो ठेका लिया है समिति ने आप जैसे बरनवालो का? क्या वह समिति के सारे लोग बेरोजगार हैं? उनके पास अपना काम नहीं है,या उनका अपना कोई परिवार नहीं हैं क्या?*
*आप तो अपने व्यवसाय व परिवार की चिन्ता करें, बस।*
*और वे अपने व्यवसाय व परिवार की भी चिन्ता करें व साथ में आप जैसे अकर्मण्य, एकांकी, आत्मकेंद्रित बरनवालो की भी चिन्ता करें ?*
*यह केवल उनसे ही क्यों चाहते हैं आप ?*
*जो आप सभी समर्थ होकर भी कुछ नहीं करना चाहते, समय देना नहीं चाहते, धन देना नहीं चाहते और आप जैसे लोगों के लिये सब कुछ वे करें*
*उनको क्यों आपकी तरह मूक या तटस्थ बने रहने का हक नहीं है ?*
*क्यों वही अपने घर परिवार के हक का समय आप जैसों के ऊपर बर्बाद करें ?*”
“कभी सोचा है कि जब वे आप से चाहते हैं कि आप उनको बल दो, साथ दो, समर्थन दो, उन्हें ऐसे 10% पर ही अकेला मत छोड़ो।
*तब आप उनको निठल्ला, फालतू व पागल समझ कर उनकी उपेक्षा करते हो* *केवल अपने घर-परिवार, व्यवसाय को प्राथमिकता देते हो तथा अपने बच्चों का भविष्य बनाने में ही जुटे रहते हो।*”
“अगर वह बरनवाल समिति वाले हैं, तो आप जैसे भी तो सारे बरनवाल ही हैं।
*तो जो कर्तव्य उनका बनता है वह आपका क्यों नहीं बनता ?*
*बस जरा यह तो स्पष्ट करें।*
*कि क्या वही बरनवाल हैं आप बरनवाल नहीं है?”*
*उनके समर्थन में आप खुल कर आये होते, तो बाहर वालों में आप को छुने की हिम्मत नहीं होती, समाज में गलत होने से रोकने में मदद मिलती*