
♦️हनुमानजी की सुंदर कथा !♦️
आप सब जानते है । फिर भी पुन: सुना रहा हूँ । समय हो तो पढ़ लीजिएगा । मैं जानता हूँ , आपको अच्छी लगेगी !♦️
कथा तुलसी दास जी के प्रयाग वास के समय की है !
तुलसी दास जी नित्य क्रियाओं से निव्रत हो कर गंगा जी में स्नान करते और लौटते समय मार्ग में एक सूखे शमी के व्रक्ष को अपने लोटे का जल दे देते थे ! धीरे धीरे वो वृक्ष कुछ मास में पुन: हरा भरा हो गया !
उस व्रक्ष पे एक प्रेत रहता था तुलसी दास जी के गंगा जल डालने से वो प्रेत भी मुक्त हो गया और तुलसी दास जी को धन्यवाद देने आया ! वो तुलसी दास जी से बोला बाबा आपकी वजह से मुझे मुक्ति मिली है आप मुझसे कुछ भी माँग सकते है मैं आपको यथा शक्ति देने का प्रयास करूँगा ! तुलसी दास जी ने कहा अच्छा तो तुम मुझे राम जी से मिला सकते हो !
ये स्वभाविक भी था भक्त अपने भगवान के अलावा क्या माँगेगा ?
प्रेत बोला बाबा मैं आपको उनसे तो नही मिला सकता किंतु हाँ उनसे मिलने का मार्ग बता सकता हूँ जिनसे बड़ा आपके स्वामी का भक्त चौदह लोकों में तो क्या समस्त ब्रहम्मांड में नही है स्वयं काशी के अधिपत्ति (शंकर बाबा) भी नही ! उनका दर्शन कभी व्यर्थ नही जाता वो आपको अवश्य आपके स्वामी से मिला देंगे !
तुलसी बाबा तुरंत बोलते है आहा तो क्या तुम मुझे हनुमान जी मिला सकते हो ? नाम सुनते ही प्रेत थोड़ा भयभीत हो जाता है और कहता है बाबा उनका नाम न लो मेरे सामने मुझे उनसे भय लगता है ! वो बोला आप एक काम कीजिए की आप काशी में जाइए वहाँ गंगा जी के घाट पर आपके स्वामी की कथा चल रही है! वहाँ जो व्यक्ति सबसे पहले आए और सबसे आख़िर में जाए बस समझ लीजिएगा वही है !
तुलसी दास जी अति प्रसन्न चित्त से चल दिए ! प्रात : ही तुलसी दास जी पोहोंच गए तो देखा एक व्रध व्यक्ति मैले कुचैले वस्त्र और फटा कम्बल पहने एक कोने में बैठा है ! कथा प्रारम्भ हुई व्रध मूख नीचे कर बैठे रहे और निर्झर अश्रुओं की धारा बहती रही ! कथा समाप्त हुई सब चले गए वो व्रध बैठे रहे ! तुलसी दास जी उनके पास गए और बोले
“बाबा आप नही जाएँगे क्या?”
व्रध बोले “भाई मुझे कोड़ का रोग है मैं आराम से जाऊँगा आप जाओ!”
तुलसी दास जी बोले “बाबा कहाँ जाऊँ मुझे जहाँ जाना था वहाँ पोहोंच गया हूँ ! कृपा करो हे नाथ मुझ अभागे को और ना छलो ! हे हनुमान जी मैं आपके चरणों मैं पड़ा हूँ!”
व्रध बोले “भाई किसने बहका दिया तुम्हें ? मैं रोगी बूड़ा तुम क्यूँ मेरा मज़ाक़ उड़ाते हो?”
व्रध ने कई यूँकतिया दी की किसी तरह पीछा छूटे ! पर उनकी एक न चली !
तुलसी दास जी ने एक न सुनी और पड़े रहे चरणों में और अंत में हनुमान जी ने दर्शन दिया कोड़ी काया से कंचन काया लेकर प्रकट हुए बाबा !
बाबा ने तुलसी दास जी को चित्रकूट जाने को कहा और आश्वासन दिया की राम जी उनसे वहाँ मिलेंगे !
चित्रकूट में तुलसी दास जी से रघुवीर ने सूँदर राज कुमार वेश में चंदन लगवाया अपने और इस प्रकार तुलसी दास जी की इच्छा पूरी हुई !
जय हो जय हो
जय तुलसी दास जी के सीता राम !
जय हो हम सबके ह्र्दय सम्राट श्री सीता राम !
जय जय श्री हनुमान !
हनुमान जो गुरु स्वरूप है उनकी शरण में रहिए और निश्चिंत रहिए !
जो मौत भी आयी तो
तुम्हारा शीत प्रसाद मान कर सरमाथे बाबा,
जो जिलाया तो भी तुम्हारा !
तुम गुरु तुम सर्वस्व हो,
जो चाहो सो करो,
मैं सब तरफ़ से तुम्हारा !
बोलिए अंजनी के लाल की जय
भक्त शिरोमणि हनुमान जी की जय हो!
🚩🌿🍂🌹🙏 श्री बजरंगबली जी की जय हो 🙏🌹🍂🌿🚩
लेख,, पण्डित दिनेश तिवारी ब्यूरो चीफ कुशीनगर अमूल्य रत्न न्यूज