
भगवान को भक्त के सम्मान में अवतार लेना पड़ा
महराजगंज, सिसवा ब्लॉक अंतर्गत ग्राम सभा गोपाला टोला बारीगांव में हो रही श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ में कथा ब्याश आचार्य मुकेश पांडेय जी ने बताया कि
प्रह्लाद के ही एक चाचा हिरण्याक्ष अमर होने की कोशिश में मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। देवताओं को पता चला तो उचित अवसर जानकर उन्होंने दैत्यपुरी पर आक्रमण कर दिया। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप खुद को ही ईश्वर मानता था। वह अपनी पूजा कराने लगा था। भगवान से बरदान पाकर मद में चूर हो गया था बरदान में भगवान से बरदान मांगा कि कोई भी प्राणी, कहीं भी, । किसी भी जीव-जंतु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य से अवध्य, न रात में न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर, न बाहर। कोई अस्त्र-शस्त्र भी हम पर असर न कर पाए।
ऐसा वरदान पाकर वह निरंकुश अत्याचारी बन बैठा। प्रह्लाद की विष्णु भक्ति बुरी तरह खलने लगी। प्रह्लाद को मारने के कई प्रयत्न किए गए, लेकिन हर बार वह बच गए। होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था। हिरण्यकश्यप ने होलिका की सहायता से प्रह्लाद को जलाकर मारने की योजना बनाई। उसके अनुसार होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती हुई अग्नि में जा बैठी, लेकिन प्रह्लाद चमत्कारी ढंग से बच गए और होलिका जलकर राख हो गई। उधर विष्णु ने नृसिंह के रूप में खंभे से निकलकर गोधूलि के समय हिरण्यकश्यप को मार डाला। मान्यता है कि तभी से ‘होली’ का त्योहार मनाया जाने लगा। हिरण्यकश्यप के वध के बाद उत्तराधिकारी के रूप में प्रह्लाद अभिषिक्त हुए। ज्ञान गंगा में श्रोता ध्यानमग्न होकर रस पान करने में जुटे हुए है।