(१)सड़क किनारे बने बस स्टॉप पर जब मैंने उसे पहली बार देखा तो सोचा यह कोई ट्रक ड्राइवर होगा । लम्बा-चौड़ा शरीर चेहरे पर हल्की दाढ़ी,देखकर लगता था कि कोई पठान होगा । पहले एक-दो दिन फिर एक-दो सप्ताह और फिर एक-दो माह बीत गए ।वह दिन भर सड़क किनारे खड़े ट्रकों के आस-पास ही टहलता रहता था । इसी तरह छः माह से अधिक समय बीत गया । अब तक उसकी हल्की दाढ़ी बढ़कर सात-आठ इंच लम्बी हो चुकी थी । उसके बदन और कपडों पर मैल इतना जम चुका था कि उसके आस-पास जाने से भी लोग घृणा करने लगे । इस तरह पूरे बस-स्टॉप पर उसका एकाधिकार सा हो गया था ।कड़ाके की सर्दियों की रात भी दिन भर इकट्ठा किए गए बीड़ी के टुकड़ों के सहारे काटना और सुबह होते ही मुँह ढककर सो जाना उसकी दिनचर्या बन गई थी । इतने दिनों से खाना-पीना भी न जाने उसे कौन खिला रहा होगा इसका किसी को भी पता नहीं था । अब मुझे उस पर यह सन्देह सा हो गया कि यह कोई ट्रक ड्राइवर ही होगा और कोई बड़ा एक्सीडेंट करके पुलिस की नज़र से छुपने के लिए यह इधर छुपा हुआ है । एक दिन बस स्टॉप के नज़दीक सड़क किनारे रखे कूड़ादान से भयंकर बदबू आ रही थी । शायद किसी सफाईकर्मी ने सड़क किनारे मरे कुत्ते को कूड़ेदान में डाल दिया था । इसके बाद अचानक सफाई कर्मियों की हड़ताल हो गई और वह कुत्ता उसी में सड़ गया । जो कोई भी उधर से गुजरता था नाक-मुँह को बंद करके जाता । इतनी बदबू में भी वह उसी कूड़ेदान के नजदीक बस स्टॉप पर पहले की तरह लेटा रहता था । फिर मन में सन्देह हुआ कि शायद यह कोई मानसिक रूप से विक्षिप्त है । जो इस दुर्गन्ध में भी यहाँ लेटा हुआ है ।सर्दियों से बचने के लिए उसने हिंदुस्तानी फ़ौज की वर्दी की तरह की जो गर्म जैकेट सर्दियाँ आरम्भ होने से पहले पहनी थी उसका रंग भी मेल से चारकोल की तरह हो चुका था । सर्दियाँ बीतने के बाद मई का महीना भी आ गया लेकिन उसने गर्म फर वाली वह जैकेट अभी भी पहनी हुई थी । सात-आठ महीने से बगैर नहाए-धोए उसकी शक्ल-सूरत बहुत डरावनी हो चुकी थी । वह न तो किसी से बात करता था और न कोई उससे । उसका यह व्यवहार देखकर ऐसा लगता था कि वह गूंगा है । एक दिन सुबह के अख़बार के मुख पृष्ठ की हेडलाइन पढ़ी कि “प्रदेश की राजधानी पर भी मंडरा रहा है आतंकी खतरा” । यह ख़बर पढ़कर मन में फिर सन्देह हुआ कि कहीं वह भी दुश्मन देश का जासूस तो नहीं । बचपन से पढ़ते-सुनते आए हैं कि जासूस लोगों की वेश-भूषा भी पागलों जैसी होती है । किसी जटिल केस को सुलझाने के लिए वे ऐसी ही हरकतें करते हैं । उनकी इस तरह की जीवन-शैली उनको उस योजना को पूर्ण करने में मददगार साबित होती हैं । उसकी वेश-भूषा और कद-काठी को देखकर मेरा यह शक़ और गहरा होता चला गया ।मैंने उसी समय अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट की और तुरन्त बस स्टॉप पर पहुँच गया । वह अब भी मुँह ढक के सोया हुआ था । मैं उसके पास गया उसके ओढ़े हुए पुराने से कम्बल को मैंने एक किनारे की ओर करते हुए कड़क आवाज़ में पूछा !” कौन है भाई,यहाँ क्यों लेटे हो”?मेरी कड़क आवाज़ सुनकर वह सहम सा गया । मैंने कहा,”उठो यहाँ से,औरअपने घर जाओ”।मैनें देखा,उसके हाथों की उँगलियों के नाख़ून करीब एक से डेढ़ इंच लम्बे हो चुके थे । जिनमें कोयले की तरह काला मैल जमा हुआ था । उसके शरीर का जो भी भाग खुला दिखाई दे रहा था उस पर अफीम के जैसे मैल की काली पर्त जमी हुई थी । उसके शरीर से बहुत बुरी गंद आ रही थी । सम्भवतः इसीलिए उसे कूड़ेदान में सड़े जानवर की गंद महसूस नहीं हो रही थी । मैं उसके और क़रीब गया और उसे गौर से देखा । उसका चेहरा बता रहा था कि उसने कई दिनों से हाथ-मुँह भी नहीं धोया था । उसकी आधी सफ़ेद और आधी काली दाढ़ी पर जगह-जगह गन्दा खाना चिपका हुआ था । जब मैं उसके बहुत करीब पहुँच गया,तो वह डर सा गया । उसने अपना कम्बल एक ओर फेंख दिया और उसी बैंच पर बैठ गया जिस पर वह लेटा हुआ था । उसके हाव-भाव देखकर मुझे ऐसा लगा कि वह वहाँ से भागने की कोशिश में है । इतनी देर में मैंने अपनी जेब से अपना मोबाइल फ़ोन निकाला और उसी अवस्था में उसकी तीन-चार फोटो खींच ली । उसकी कद-काठी और तगड़ा सा शरीर देख कर मैं खुद भी डर रहा था कि कहीं वह मुझ पर ही न झपट पड़े ।मैंने हिम्मत करके उसे पूछा,”क्या नाम है तुम्हारा”।उसने कुछ अस्पष्ट स्वर में कहा,”मुर्दाराम”।”मुर्दाराम ! यह भला कौन सा नाम हुआ । सही नाम पता बता अपना”। मैंने फिर पूछा ।वह बोला,”मेरा नाम मुर्दाराम अनाथ है”।”कहाँ के रहने वाले हो” मैंने पूछा ।वह बोला,”मगहर ! मगहर !मैनें पूछा,”यहाँ क्यों लेटे हो,तुम तो पिछले छः सात माह से यहाँ पर रह रहे हो”।वह बोला,”तबियत खराब है,इसलिए लेटा रहता हूँ”।उसके इतना कहते ही मैंने मन ही मन सोचा,”कहीं यह एड्स का मरीज़ तो नहीं । हो सकता है इसीलिए इसके परिवार वालों ने इसे घर से निकाल दिया हो । और तभी यह अपना नाम सही न बता कर *मुर्दाराम अनाथ*