
*`आज से 25-30 साल पहले…`*
कोई साईं का नाम नहीं जानता था। तब शिर्डी सिर्फ एक खाली गाँव था जहाँ ‘साईं’ की एक कब्र थी जिस पर वर्ष 1972 में एक मूर्ति लगा दी गयी ताकि साईं की मार्केटिंग करके नया धंधा चमकाया जा सके।
लेकिन वर्ष 1990 के बाद चले श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन को कमजोर करने और हिंदुओं को भटकाने के लिए ही तब साईं का प्रचार सबसे अधिक जोरदार तरीके से शुरू हुआ था।
_📜 “तब एक नया चलन सामने आया था, कुछ लोग जो की साईं की मार्केटिंग कागज के पर्चे छपवा कर करते थे। उस पर लिखा होता था कि अगर आप इस पर्चे को पढ़ने के बाद छपवा कर लोगों में बांटेंगे तो 10 दिनों के अन्दर आपको लाखों रूपये का धन अचानक मिलेगा।” _
– फलाने ने 200 पर्चे छपवाकर बांटे तो उसको मोटर साईकिल मिली।
– फलाने ने 500 पर्चे छपवाकर बांटे तो उसको खोया हुआ बेटा मिला।
– फलाने ने 2000 पर्चे छपवाकर बांटे तो उसको नौकरी मिली।
– फलाने ने 1000 पर्चे छपवाकर बांटे तो उसको मनचाही लड़की शादी के लिए मिली।
– फलाने ने 5000 पर्चे छपवाकर बांटे तो वह 10 फैक्ट्रियों का मालिक बन गया आदि।
*और अगर किसी ने पढ़कर इसको झूठ समझा तो 10 दिनों के भीतर उसका लड़का मर गया,* फलाने ने फाड़ा तो उसका व्यापार चौपट हो गया, फलाने ने इस पर्चे को फैंक दिया तो उसको जेल हो गई, फलाने ने अगर इसे झूठ माना तो उसका सारा कारोबार खत्म हो गया और भिखारी हो गया आदि।
मित्रों वर्ष 1987 से वर्ष 1994 तक यह बहुत चला था, उसके बाद टीवी पर आने लगा। सीरियल बनाए जाने लगे, फिल्में बनने लगी।
अमर-अकबर-अन्थोनी में सबसे पहले साईं के नाम एक गाना आया जिसमें साईं की *एक झूठी कहानी बनाकर एक बुढ़िया की आँखों की रोशनी साईं के सामने ठीक हो जाती है।*
इसके बाद साईं की मार्केटिंग करने वालों ने मनोज कुमार को बहलाकर फिल्म बना ली जिसका पछतावा उन्हें कई सालों बाद हुआ। पर तब तक देर हो चुकी थी क्यूंकि तब तक साईं मंदिरों में बैठ चूका था।
*जब चैनल आये तब उन्हें कमाई की जरूरत थी, उन्हें लगा कि जब पर्चे बांटकर लोग पैसा कमा सकते हैं तो हम क्यों नहीं कमा सकते…?*
इसलिए वर्ष 2003 के बाद साईं का एक सीरियल आया, जिसके बाद साईं की प्रसिद्धि बढ़ गयी। इस सीरियल में साईं की कई झूठी कहानियों का प्रचार करके साईं को प्रसिद्ध किया गया था। साईं का प्रचार लोभ और भय दिखाकर किया गया और भोले-भाले मूर्खं हिंदू एक मु&लमान की मार्केटिग के जाल में फंस गया।
जिस साईं को 30 साल पहले कोई नहीं जानता था आज वो मंदिरों में बैठ चूका था। उसके नाम से जागरण होने, साईं के नाम से भजन-कीर्तन बनने लगे, साईं के कई मंदिर खुल गए जिससे साईं का प्रचार और तीव्र गति से होने लगा।
वर्ष 1972 में साईं के भी एक-आधे मंदिर होते थे, और जिस साईं की कब्र के पास कोई मूर्ति नहीं थी वहां पर अब मूर्ति लगाकर धन बटोरने और हिंदुओं को सेक्युलर बनाने का षड्यंत्र चलने लगा। उनका एक ही उद्देश्य था कि किसी तरह से इस साईं को हर हिंदू के घर में पहुँचाया जाए क्यूंकि इससे एक तो मु&लमानों को लोग अच्छा समझेंगे और दूसरा साईं के कारण *श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन धीमा पड़ जायेगा।* और इस षड्यंत्र में कांग्रेसियों ने खूब बढ़ावा दिया, दुर्भाग्य से उनकी योजना हम हिंदुओं की मुर्खंता के कारण सफल भी हो गयी।
साईं के दिन प्रतिदिन नए-नए मंदिर बनने लगे जिसके लिए पैसा मुस्लिम देशों से होता हुआ साईं मंदिरों तक पहुँचता था और धीरे-धीरे साईं के मंदिरों में भीड़ बढ़ने लगी। हिंदू जनता अपने मंदिरों का रुख छोड़कर साईं पर धन लुटाने लगी।
*साईं के जागरणों में अल्लाह-अल्लाह गाने वाले मु&लमानों की संख्या बढ़ने लगी।* लोग हिंदू-मुस्लिम एक समझने लगे और श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन धीमा पड़ता गया।
मु&लमान के आगे सर झुकाना, वो काम जो मुगलों की लाखों हत्यारी तलवारें न करा सकीं वो काम एक शिर्डी वाले के एक गाने ने और गपोड़ों ने कर दिया।
आज रेले के रेले चले जा रहे हैं शिर्डी में उस मु&लमान के आगे सजदा करने, भेड़ बकरियों की तरह साईं के मंदिर उन मुर्ख हिंदू भक्तों से भरे हुए हैं जिन्हें साईं के चरित्र के विषय में कुछ नहीं पता। जिस साईं ने जीवन भर हिंदुओं को गालियाँ दी और उनका अपमान किया, हिंदू बहू-बेटियों पर अत्याचार किये आज उसे पूजने के लिए करोड़ों हिंदू खड़े हैं।
मोमिन कितना ही कष्ट पा लें परन्तु अल्लाह का दामन छोड़ने को तैयार नहीं होता और करोड़ों हिंदुओं का ऐसा घोर पतन हो चुका है, चाहो तो इनसे कुछ भी करवा लें।
साभार – मारुति नंदन बरनवाल देवरिया