
द्वापर युग में आधी रात को ही श्रीकृष्ण ने क्यों लिया धरती पर जन्म, जानें अपने किस पूर्वज को दिया था विष्णु अवतार में वचन
लेख – शिवम् राज गोरखपुरी
महाराजगंज,श्रीकृष्ण ने आधी रात को क्यों लिया था जन्म: श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में जन्म लिया था। हिन्दू पंचांग के अनुसार कृष्ण ने भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया था। भागवत पुराण के अनुसार विष्णु अवतार में उन्होंने चंद्रदेव को वचन दिया था कि वे उनके प्रकाश में आधी रात को ही जन्म लेंगे। श्रीकृष्ण चंद्रवंशी हैं इसलिए चंद्रदेव को उनका पूर्वज माना जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण के जन्म को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। भागवत पुराण सहित श्रीकृष्ण के जन्म की कथा कई और पुराणों में भी मिलती है। भागवत पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि की मध्य रात्रि में हुआ था। श्रीकृष्ण के भक्तों के मन में अक्सर यह सवाल आता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म आखिर आधी रात में ही क्यों हुआ था? आइए, जानते हैं इसका रहस्य।
“भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन बुधवार था। श्रीकृष्ण ने भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में जन्म लिया था। इसका कारण यह था कि श्रीकृष्ण चंद्रवंशी थे। चंद्रवंशी होने का अर्थ है कि कृष्ण जी के पूर्वज चंद्रदेव थे। जबकि बुध चंद्रमा के पुत्र माने जाते हैं, इसलिए श्रीकृष्ण ने चंद्रवंश में पुत्रवत जन्म लेने के लिए कृष्ण ने बुधवार का दिन चुना।
“पौराणिक कहानियों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने रात्रिकाल में इसलिए जन्म लिया था क्योंकि चंद्रमा रात्रि के समय संपूर्ण जगत को प्रकाशमान करता है। चंद्रवंशी कृष्ण ने अपने पूर्वज की उपस्थिति में धरती पर जन्म लेने का यह पहर चुना। इस कारण से जन्माष्टमी के व्रत को चांद निकलने के बाद और उनके दर्शन करने के बाद ही पूर्ण किया जाता है।
श्रीकृष्ण ने चंद्रदेव की इच्छा को पूरा किया
पौराणिक कहानियों के अनुसार चंद्रदेव की यह इच्छा थी कि विष्णु जी जब भी पृथ्वी पर अवतार लें, वे चंद्रदेव के प्रकाश में ही धरती पर आएं, जिससे कि चंद्रदेव प्रत्यक्ष रूप से उनके दर्शन कर सकें, इसलिए जब श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था, तो संपूर्ण वातावरण प्रकाशमान हो गया था। संपूर्ण वातावरण में सकारात्मकता छा गई थी।”द्वापर युग में मथुरा का राजा कंस था। असल में कंस एक अत्याचारी राजा था। उसने अपने पिता भोजवंशी राजा उग्रसेन को छल से राज सिहांसन से उतारकर खुद मथुरा पर राज करने लगा। कंस की एक बहन देवकी थी। उसने देवकी का विवाह यदुवंशी राजा वासुदेव के साथ कराई थी लेकिन जब कंस अपनी बहन और उनके पति को अपने राज्य में लेकर आ रहा था, तो आकाशवाणी हुई कि ‘जिस बहन का कंस इतने उत्साह के साथ विवाह उत्सव आयोजित कर रहा है। एक दिन उसी की 8वीं संतान कंस का वध करेगी।’ यह सुनकर कंस ने अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को कारागार में डाल दिया। काल कोठरी में देवकी और वासुदेव जी की 7 संतानों को कंस ने निर्दयता से मार दिया। इसके बाद वासुदेव जी के स्वपन्न ने श्रीहरि ने आकर उन्हें कंस के काल यानी आठवीं संतान को बचाने का मार्ग बताया।
श्रीकृष्ण ने कंस का वध करके सभी को दिया न्याय।
जब देवकी और वासुदेव जी की आठवीं संतान हुई थी, तो उन्होंने प्रभु इच्छा से यशोदा और नंदलाल जी के घर जाकर अपनी आठवीं संतान को उन्हें सौंप दिया और यशोदा जी से उनकी नवजात कन्या को लेकर कारागार में वापस लौटे। जब कंस को अपनी बहन की आठवीं संतान होने की सूचना मिली, तो वह उस संतान को मारने के लिए काल कोठरी में आया लेकिन जैसे ही उसने उस कन्या को हाथ में लेकर मारने की कोशिश की, बच्ची उसके हाथ से उछलकर हवा में एक देवी के रूप में प्रकट हुई। यह देवी कोई और नहीं योग माया थी। आगे चलकर श्रीकृष्ण को यशोदा जी और नंदलाल जी ने पाला और कृष्ण ने मथुरा आकर कंस का वध करके सभी लोगों को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया।