राजस्थान में 40% डॉक्टरों के पद खाली, राज्य के 61 मेडिकल कॉलेज और उनसे अटैच हॉस्पिटलों 2336 टीचिंग फैकल्टी नहीं
राजस्थान की कांग्रेस सरकार भले ही राज्य के सरकारी हेल्थ सेक्टर को देश का सबसे अच्छा बताती हो, लेकिन यहां ट्रीटमेंट के लिए मरीजों को अब भी लम्बा इंतजार या दूसरे बड़े शहरों में जाना पड़ता है. इसके पीछे कारण मेडिकल कॉलेज और उनसे अटैच हॉस्पिटलों में डॉक्टरों की कमी. वर्तमान स्थिति देखे तो मेडिकल एज्युकेशन डिपार्टमेंट और राजस्थान मेडिकल एज्युकेशन सोसायटी (राजमेस) की ओर से संचालित 61 मेडिकल कॉलेज और उनसे अटैच हॉस्पिटलों में 40% डॉक्टरों (चिकित्सक शिक्षक) के पद खाली पड़े है.
जयपुर में एसएमएस मेडिकल कॉलेज की स्थिति देखे तो सिटी कार्डियक सर्जरी, न्यूरोसर्जरी, ईएनटी समेत अन्य यूनिट्स में भर्ती होने वाले मरीजों को 2 लेकर 15 दिन तक सर्जरी के लिए इंतजार करना पड़ता है. यही नहीं डॉक्टरों और अन्य सपोर्टिंग स्टाफ (पैरा मेडिकल स्टाफ) की कमी के कारण यहां 2-डी ईको, सोनोग्राफी, ईएनटी से संबंधित कई जांचों के लिए 3 से लेकर एक महीने तक की वेटिंग चल रही है.
सीकर, टोंक, बूंदी, बारां, झुंझुनूं, चूरू, प्रतापगढ़, दौसा समेत प्रदेश के कई जिले ऐसे है जहां जिला स्तर पर हॉस्पिटल है और मेडिकल कॉलेज भी है, लेकिन स्पेशलिस्ट डॉक्टर जैसे पीडियाट्रिक, पीडियाट्रिक सर्जन, कार्डियोलॉजिस्ट, गायनाकोलॉजिस्ट, एनिस्थिसिया, ऑर्थो समेत अन्य विशेषज्ञ नहीं है. इस कारण यहां छोटे-छोटे मामलों में मरीजों को जयपुर, जोधपुर, अजमेर, कोटा, उदयपुर, बीकानेर या अन्य शहरों में रेफर किया जाता है.
मेडिकल एज्युकेशन डिपार्टमेंट से मिली एक रिपोर्ट देखे तो राजस्थान में इन 61 मेडिकल कॉलेज और इनसे अटैच हॉस्पिटलों में पढ़ाने के लिए डॉक्टर टीचर (प्रोफेसर) नहीं है. इन सभी हॉस्पिटल और कॉलेजों में कुल 6042 पद सेंशन है, जिसमें से 2336 खाली पड़े है.

