🕉️ “राम और रावण: ज्ञान बनाम चरित्र”
मनुष्य का मूल्य केवल उसके ज्ञान से नहीं, बल्कि उसके चरित्र से तय होता है।
ज्ञान दिशा देता है, पर चरित्र उस दिशा को सही या गलत बनाता है। इसी अंतर को समझाने के लिए इतिहास ने हमें दो चरित्र दिए — राम और रावण।
दोनों विद्वान, दोनों शक्तिशाली, पर एक पूजनीय बना और दूसरा विनाश का प्रतीक।
🔱 रावण — ज्ञान का अहंकारी चेहरा
रावण वेदों का ज्ञाता था, संगीत का मर्मज्ञ, भगवान शिव का परम भक्त और अद्भुत योद्धा।
उसके पास वह सब कुछ था जो एक “महान” व्यक्ति को चाहिए — लेकिन उसमें विनम्रता और संयम नहीं था।
ज्ञान ने उसे शक्ति दी, पर चरित्रहीनता ने उस शक्ति को अहंकार में बदल दिया।
उसने अपनी बुद्धि का उपयोग दूसरों को अधीन करने में किया, न कि उन्हें ऊपर उठाने में।
रावण यह भूल गया कि
“जब ज्ञान विनम्रता से रहित हो जाए, तो वह विनाश का कारण बनता है।”
🌸 राम — चरित्र की पराकाष्ठा
राम के पास रावण जितना ज्ञान नहीं था, पर उनके पास चरित्र की गहराई थी।
उन्होंने जीवन के हर कठिन क्षण में धर्म और मर्यादा को चुना, भले ही उसका मूल्य व्यक्तिगत सुख से चुकाना पड़ा।
राम ने शक्ति नहीं, सत्य को साधा;
सत्ता नहीं, सेवा को अपनाया;
और यश नहीं, मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की राह चुनी।
राम का जीवन हमें सिखाता है कि —
“चरित्र वह प्रकाश है जो अंधकार में भी मार्ग दिखाता है,
जबकि ज्ञान वह दीप है जो बिना तेल के बुझ जाता है।”
ज्ञान और चरित्र का संतुलन
राम और रावण की कथा केवल अच्छाई-बुराई की कहानी नहीं, बल्कि एक शाश्वत संदेश है —
ज्ञान तभी उपयोगी है जब उसे चरित्र दिशा दे।
अगर रावण का चरित्र राम के समान होता, तो वह भी इतिहास का आदर्श बन सकता था।
पर बिना संयम का ज्ञान, बिना नीति की शक्ति और बिना मर्यादा की बुद्धि अंततः विनाश लाती है।
आज के युग में भी यही संघर्ष है —
हम ज्ञानवान तो बन रहे हैं, पर चरित्रवान नहीं।
हम सूचना पा रहे हैं, पर आत्मा खोते जा रहे हैं।
इसलिए आवश्यक है कि हम राम की तरह जीवन जिएँ —
जहाँ ज्ञान का आधार विनम्रता हो, और चरित्र का आधार सत्य।
“ज्ञान हमें ज्ञानी बनाता है,
लेकिन चरित्र हमें भगवान के समीप ले जाता है,,,,, लेख पंडित दिनेश तिवारी,,, एंटी करप्सं न न्यूज़ ब्यूरो चीफ,,, कुशीनगर

