
छठ पूजा का इतिहास
छठ पूजा से जुड़ी हुई बहुत सी कहानियां प्रचिलित जो कि वैदिक काल, रामायण काल एवं महाभारत काल आदि से जुड़ी हुई है।
इसीलिए छठ पूजा अर्थात सूर्य पूजा को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।
आइए हम आपको छठ पूजा से जुड़ी हुई कुछ कहानियों से अवगत कराते हैं।
महाभारत काल की मान्यता के अनुसार छठ पूजा की शुरुआत महाभारत काल से ही हुई थी।
कर्ण सूर्य भगवान के पुत्र थे और भगवान सूर्य में परम भक्त भी थे।
माना जाता है कि कर्ण प्रतिदिन कई कई घंटों तक आधी कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे और भगवान सूर्य के आशीर्वाद से ही वे महान योद्धा बने थे।
रामायण काल में एक मान्यता के अनुसार जब भगवान राम ने लंका में विजय हासिल कर लिया था उसके बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन भगवान राम एवं माता सीता ने सूर्योपासना एवं आराधना की और सप्तमी के दिन फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया था।
छठ पूजा कब मनाया जाता है?
छठ पूजा का पर्व वर्ष भर में दो बार आता है।
छठ पूजा का पर्व का हिंदी कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है और दूसरा चैत्र माह की षष्ठी तिथि को आता है,
लेकिन मुख्य रूप से कार्तिक मास की छठ पूजा का पर्व ही मनाया जाता है।
छठ पूजा का पर्व हर वर्ष मनाया जाने वाला पर्व है।
छठ पूजा का पर्व इस दिन मनाने के पीछे बहुत सी पौराणिक मान्यताएं हैं और इस दिन से जुड़ी हुई बहुत सी कथाएं भी प्रचिलित हैं।
छठ पूजा पर्व के अनुष्ठान बहुत कठोर माने जाते हैं।
इसमें निर्जल व्रत से लेकर पानी में खड़े होकर सूर्य अर्घ्य देना आदि कार्य शामिल हैं जो कि इस पर्व में उपासक को करना होता है।
पर्यावरणविदों के अनुसार भी छठ पूजा के पर्व को प्रकृति के अनुकूल माना गया है।
छठ पूजा क्यों मानते है?
छठ पूजा का पर्व घर परिवार के सभी सदस्यों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य लाभ के लिए मनाया जाता है।
इस दिन प्राकृतिक सौंदर्य एवं परिवार के कल्याण के लिए पूजा की जाती है।
माना जाता है कि छठ पूजा करने से परिवार में सुख समृद्धि बानी रहती है एवं मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
क्या है छठ का पौराणिक महत्व
इन कथाओं के अलावा एक और किवदंती भी प्रचलित है।
पुराणों के अनुसार,
प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी।
इसके लिए उसने हर जतन कर कर डाले,
लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
तब उस राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उसे पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया।
यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया,
लेकिन वह मरा पैदा हुआ।
राजा के मृत बच्चे की सूचना से पूरे नगर में शोक छा गया।
कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे,
तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा।
इसमें बैठी देवी ने कहा,
‘मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।’ इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी।