
सम्पादकीय
✍🏿जगदीश सिंह सम्पादक✍🏿
कल को दिया आज के लिए! आज को दिया कल के लिए!!
कभी जी न सके हम आज के लिए ?
बीत रही है जिन्दगी आज को और कल के लिए*??
आज दीपों की श्रृंखला से जगमगाता सारा देश कुछ देर के लिए परिवेश बदल रहा है।मगर बात वहीं है न जज़्बात बदल रहे हैं न हालात बदल रहे हैं।मायावी संसार में आपने करतार की बन्दना पूजा अर्चना का क्रम तो सदियों से चला आ रहा है मगर विडम्बना की वर्षांत में भाई चारगी समरसता की बहती हवा विषाक्त हो चली है।बदहाली में खुशहाली का आगाज घनघोर वर्षात के बाद भयंकर धूप का अहसास सरीखे ही होता है। जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाए?
कल्पना के सागर में हिचकोले खाती आस्था बिगड़ती ब्यवस्था के हाथों लाचार होकर सिसक रही है।होली दीपावली ईद बकरीद दशहरा पर आजकल पहरा लगा हुआ है! हर्ष जो सहर्ष प्रतिवर्ष उत्कर्ष को साथ लिए मुस्कुराता चला आता है मगर उसको क्या पता की दर्द की दरिया में उफान चरमोत्कर्ष पर है?।लोग अर्थ के रोग का शिकार होकर विकार के आगोश में कोई मदहोश है कोई बेहोश है। साहब त्योहार अब उपहार नहीं स्वार्थ के साथ चलने वाले ब्यवहार के गुलाम हो गए हैं! अब तो राम रहारी भी मतलब की बिमारी से ग्रसित है। ईद बकरीद दशहरा कंगाली में गुजर गया! दीवाली भी आज अमावस की मतवाली रात में गुजर जायेगी! मगर बदहाली कंगाली के जाने का कोई समय निर्धारित नहीं है।?मंहगाई की मार का असर आज बाजारों में देखने को मिल रहा है!बाजार से सामान खरीदने में हर कोई हिल रहा है! पांच प्रतिशत धन पशुओं को छोड़ दिया जाय तो आम आदमी कदम कदम पर सिसक रहा है? सियासत की उदास खेती में अगेती फसल बोने वाले तो अच्छी पैदावार का मुगालता पाल लिए है क्यों की लोकतन्त्र के खेत में आसमानी हवाई वादाखिलाफी की दवा का छिड़काव कर चुके हैं।होली पर फ्री सिलेण्डर का वादा बवंडर पैदा कर दिया? दीपावली पर जिस खुशहाली का आम आदमी इन्तजार कर रहा था वह भी निराधार निकला!!पब्लिक में आक्रोश की लहर गांव से लेकर शहर तक फ़ैल गई है।? रामराज्य के कल्पना की उड़ान पर नया बिधान नया सम्विधान बनाने का ख्वाब पालने वालों पहले रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाई पर बचना न जाई के फार्मूले पर तो खरा उतरो? बहरहाल यह सवाल करना ही बेमानी है? आजकल की सियासत का फार्मूला ही बेइमानी है!।पल पर गुजर रहा वक्त आने वाले कल का आधार अभिव्यक्त कर रहा है। खुशी के साथ ग़म मे बेदम ब्यवस्था के परिचालन से त्योहारों की रौनक में गमगीनीयत का आभास होने लगा है। गांवों में अभावों के बीच रहने वाले लोग जिनके सानिध्य में ही अतीत से लेकर आज तक सनातनी त्योहार बुलन्दी पाते रहे है आज कल मनहूसीयत के दौर से गुजर रहा है!न कही हर्ष न उल्लास चट्टी चौराहों पर फालतू बकवास!आस्था के प्रतीक सनातनी ब्यवस्था में जनमानस के बीच पुरातन पहचान को कायम रखने वाले सारे कार्यक्रम लुप्त हो गये
आस्था में ब्यवस्था का सम्वर्द्धन भी संयुक्त हो ग्ए। आइए रौशनी के पर्व पर गर्व से भारतीय होने का दुनियां को एहसास दीलाए घर घर दीप जलाएं!
!दीपावली की हर्षित बेला में सभी देश वासियों को हार्दिक शुभकामनाएं🕉️🙏🏾🙏🏾
जगदीश सिंह सम्पादक
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