सम्पादकीय
✍🏾जगदीश सिंह सम्पादक✍🏾
गुज़र जायेगा ये दौर भी जरा सब्र तो रख?
जब खुशियां ही नहीं रुकीं तो ग़म की क्या औकात–??
गमजदा माहौल में,वादाफरोशो की जमात हर दिन कोई न कोई सियासी खुराफात करती रहती है जिससे तंग आ गया है आम आदमी!
बुनियादी जरूरतों के सामानों के बढ़ते बेतहासा दामों को कन्ट्रोल करने का कहीं जिक्र नहीं! गरीबों की तबाह होती ज़िन्दगी का किसी को फ़िक्र नही?
मंहगाई की मार से बेहाल बदहाल हो चुका जनजीवन अस्त व्यस्त हो चला है!
मगर पांच सालों से तबाही की मार खा खा कर आदमी जीने का अभ्यस्त हो चला है।गजब का मंजर है साहब! भूखे को कर्म और धर्म का पाठ पढ़ाकर छीना जा रहा निवाला है।इन्सानियत कराह रही है!मानवता मर्माहत है! जीवन का हर पल आहत हैं!फिर भी हिटलरशाही के फरमान से टुटते अरमान! दिल में उठते तबाही के तूफान में बर्बादी का दर्द लिए लोग मजबूरी में लिखा रहे है चाहत?भ्रष्टाचार का बोलबाला है! सियासी समन्दर कि बड़ी मछलियों को दक्काक शिकारी जाल में फसाते जा रहे हैं।मगर लोकतंत्र के करिश्माई भ्रष्टाचार के तालाबों में दुर्गन्ध उठ रही है।प्रदुषण के हालात मे तमाम सवालात के साथ जोखिम उठा रहा आदमी!सियासी दहशत का आलम यह है की गलत को ग़लत कहने की हिम्मत नहीं जुटा रहा है कोई।सत्ता के गलियारो में लोकतंत्र के हत्यारों की हुकूमत बहुमत के हथियारो से बर्बादी का कालजई इतिहास लिख रही है।मगर जब जब तानाशाही का जन्म हुआ है! इतिहास गवाह है उसका अन्त बहुत बुरा हुआ है?।पूंजी पतियों की पोषक सरकार सबका साथ सबका विकाश की बात तो करती है! मगर हकीकत इससे इतर गरीबों को गरीब अमीर को अमीर बनाते जाने वाले फार्मूले पर मुहर लगती जा रही है। कहने को लोकतांत्रिक है सरकार मगर राजशाही ब्यवस्था के तरह कायम है एकाधिकार! हालत वहीं हो गया है जबरा मारे रोवे न दे! जरा सोचिए आखिर किस मुकाम तक तंगहाली खुशहाली का ख्वाब दिखाती अच्छे दिन आने का इन्तजार कराकर ललचाती रहेंगी! कब तक अच्छे दिन का सपना दिखाती रहेंगी!
ज़िन्दगी से बड़ी कोई सजा नहीं है और जुर्म क्या है कुछ पता नहीं है??
इतने दर्द में बंट गया है आदमी लगता है उसके हिस्से में सुख लिखा नही,??
कभी महामारी !कभी भयानक बिमारी! कभी तबाही मचाता फरमान सरकारी! इसी में घर गृहस्थी को चलाना है लाचारी! सत्ता बदली सियासतदार बदले मगर तकदीर न देश की बदली न आम आदमी की ज़िन्दगी सम्हली!कराहती ब्यवस्था में आस्था का प्रतिपादन धर्म के नाम पर हिटलरशाही का सम्पादन लोकतंत्र की सियासी वर्षांत में भ्रष्टाचार का उत्पादन आज इस सदी की त्रासदी बन गया है। बगावत की चिनगारी बिहार से निकल कर बंगाल तक सुलगने लगी है! समग्र क्रान्ति के किताब का प्रस्तावना लिखा जा चुका है? उद्घोष की इबारत पंजाब गुजरात से होते हुए उत्तर प्रदेश के परिवेश में जिस दिन सम्पूर्णता का समावेश कर बिशेष ब्यवस्था के परिचालन में अहम किरदार का समायोजन कर देगी उसी दिन लोकतंत्र के दामन पर लगे दाग को मिटाने का फार्मूला वजूद में आ जायेगा! उत्तर प्रदेश के गलियारे से ही दिल्ली में सत्ता की चाभी का सफर पूरा होता है।सबसे बड़ी दिक्कत अभी इस देश के नपुंसक सियासतदारों को लेकर है।
वह चेहरा अभी तक नहीं सामने आया जो जेपी के तरह रामलीला मैदान से ललकार भर कर सत्ता को पलट दें!भ्रष्टाचारी तथा मूर्ख सियासतदारो की जमात में जबानी खुराफात करने वाले तो रोज दिखते हैं! मगर राष्टीय फलक पर अपनी चमक से उजाला फैलाने वाला कोई नही दिखता सबके दामन दागदार है और इसी का भरपुर फायदा उठा रही वर्तमान सरकार है !
पूंजी पतियों के प्यार मे रम चुकी सत्ता वहीं कर रही जिससे उनको फायदा हो!बे मौत मर रहा आदमी अपने तकदीर पर आंसू बहा रहा है। !
इस देश के भाग्य में न जाने कब तक हिटलर शाही का असाध्य रोग तबाही मचाता रहेगा कहना मुश्किल है?।
भारतवासी होने के फर्ज के साथ दर्द में भी मुस्कराते रहीए! गाते रहीए सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा—-???
जयहिंद 🙏🏽🙏🏽
जगदीश सिंह सम्पादक
7860503468

