सम्पादकीय
✍🏼जगदीश सिंह सम्पादक✍🏼
कुछ ठोकरें कुछ चीखें उधार देती है!!
कभी कभी ज़िन्दगी मौत आने से पहले मार देती है??
जीवन का अनमोल लम्हा शनै: शनै:मन्थर गति से नियति की धूरी पर कभी खुशी कभी मजबूरी में अधूरी इच्छा की पूर्णता की उम्मीद में दीवाली और ईद का शानिध्य पाता रहा है!मन कभी रोता है कभी कभी झूमकर उमंग में गीत गाता है!जरा सोचिए होश सम्हालने के बाद से जो समय गुजरता है परिपक्वता के उम्र तक आते आते जिम्मेदारीयो के बोझ तले दबने लगता है! खुशहाल बचपन ‘फिर तरूणाई’ का जीवन यूं निकल जाता है जिसका एह सास ही नहीं होता!भाग दौड़ के मंजर में रहबर की तलाश अपनों से दूर करने का इतिहास लिख देता है।ज्योही जिन्दगी में शर्मिन्दगी ने दस्तक दिया हाव भाव बिचार बदलने लगता है! घर परिवार समाज नये आगाज का अनुभव कराने लगता है,?! परिवर्तन का प्रखर बेला अकेला रहने का हूनर भी सिखा देता है। गजब की सोच कुलांचे भरने लगती है! जिनके दम पर दुनियां की रंगीन रंगत की संगत मिली वहींअब उनके साथ पंगत में बैठने के काबिल नहीं रह गये! आए दिन सोसल मिडिया पर आधुनिक समाज की सच्चाई मुखर होकर मुंह चिढाती रहती है।अपना कोई नहीं हकीकत बताती रहती है! इस भौतिकवादी युग में जब अर्थ प्रधान ब्यवस्था हुंकार कर रही है! तब आस्था का अभिवादन कौन करता है? समय के साथ प्रगति की जो परिभाषा विकसित हो रही है उसी की चपेट में आकर नई पीढी पुष्पित पल्लवित हर्षित हो रही है!अब संस्कार से किसी को सरोकार नहीं रहा।सभी धर्म सम्प्रदाय में सामाजिक मर्यादा सारगर्भित समायोजन लिए परिवार के उन्नयन उन्नति का राह प्रशस्त करता रहा है।मगर पाश्चात्य सभ्यता के समागम ने भागम भाग के इस दौर में सब कुछ सर्वनाश कर दिया।उत्कृष्ट दिखने की उत्कंठा ने घंटा घंटा पर परिवार के विखन्डन का विकृत रूप प्रस्तुत किया है।पाश्चात्य सभ्यता ने समता मूलक समाज के सम्पूर्ण विनाश का तोहफा दे दिया है।आज का परिवेश विषाक्त हो चला है। संयुक्त शब्द ही अपभ्रंश बन गया।सम्पूर्णता अपनी स्मिता का विलोपन कर दिया है।गांव बिखर रहे हैं! गांव का परिवेश बदल रहा है! लोगों का रहन-सहन समावेश बदल रहा है।जहां कभी प्रकृति की मनोरम छटा में संस्कार समर्पित परिवार सम्बृधि की सम्पूर्णता लिए सामाजिक मर्यादा की समालोचना करता था! मेहनत के बल पर शोहरत दौलत से सारी हसरत पूरी होती थी! सांस्कृतिक समागम में ईश्वरीय आस्था का प्रवाह अथाह अनुराग के साथ अनुकम्पित होता था! हर परिवार समर्पित होता था! आज वही गांव है वहीं के लोग हैं नये रोग का शिकार हो गये?खत्म हो गयी पुरातन ब्यवस्था! हाबी हो गई बिदेशी दास्तां! सब कुछ बदल गया!रहन सहन पैरहन खान पान अभिमान सम्मान स्वाभिमान विधान बदल गया सारा हिन्दुस्तान! लाज लिहाज परवाज़ चढ गया!बर्वादी की बहसी हवा में घर घर अपमानित बुजुर्गो केआशिर्वाद के जगह बद्दुआ मर्माहत कर रही है! ममत्व के अपनत्व को घायल कर रही है।लगातार माहौल बदल रहा है।आने वाला कल और विभत्स स्वरूप धारण कर विकृति का विहंगम नजारा प्रस्तुत करने वाला
है इस लिए की उसी तरह के पर्यावरण उसी तरह के वातावरण का लोग सम्वरण कर रहे हैं। पूरी तरह बिदेशी संस्कृतियों का अनुकरण कर रहे हैं।सबका मालिक एक 🕉️साईनाथ🙏🙏
जगदीश सिंह सम्पादक
मऊ क्रांति न्यूज
7860503468

