छुपे आतंकियों के ठिकानों के सर्वे के साथ खुले आतंकियों के ठिकानों का भी सर्वे हो_-मो० ताहिर अहमद वारसी
आतंक एक ऐसा शब्द है जिसे सुनकर हर व्यक्ति की सांसें और धड़कने बढ़ जाती हैं। फिर भारत जैसा देश जो आतंक के ऐसे ऐसे खेल झेल चुका है।जिस में न मालूम अब तक कितने लोगों की जानें जा चुकी है और कितने परिवार तबाह हो चुके हैं।ऐसे में भारत में जब आतंकवादी की बात हो तो लोगों के दिमाग में फिल्मों की भांति दाढ़ी,टोपी और बड़ी बन्दूक वाले शख्स गूंजने लगते हैं।कारण भी है फिल्मों को जो पूरी छूट मिली है कि आप को जब आतंकवादी दिखाना हो तो सबसे चुप रहने वालों और जिन की आवाज कोई न बन सके ऐसों को दिखाओ।परंतु इसी देश में खालिस्तानी, मालेगांव ब्लास्ट के आरोपी भी रहते हैं मगर शायद उन की एकता और पहुंच ज्यादा मजबूत है इस कारण उन्हें दिखाने से फिल्म पर प्रतिबंध तक लग सकता है ।इसी कारण सब से सीधे और आपस में ही लड़ने वालों को दिखाना आसान है।इसी कारण हर व्यक्ति के दिमाग में सिर्फ दाढ़ी,टोपी वाला ही आतंकी आता है ।इसी क्रम को आगे बढ़ाते हैं और वास्तविक आतंकवाद की बात करते हैं।आतंकी का कोई धर्म नहीं होता।जो आतंक फैलाकर लोगों के अन्दर मौत का भय पैदा करें हर वो व्यक्ति आतंकी है चाहे हथियार कोई भी हो।मैं किसी धर्म विशेष पर टिप्पणी नहीं करना चाहता परंतु इसी देश और प्रदेश में अख्लाक जैसों को डंडों से पीट पीट कर मार दिया गया और संदेश भय का दिया गया मगर वो लोग आतंकी नहीं हैं।ऐसे में सरकार की मंशा भी साफ होनी चाहिए कि हमें आतंकी कोई धर्म समुदाय का हो पसंद नहीं हम ढूंढ ढूंढ कर सजा देंगे। मदरसों के सर्वे का हम स्वागत करते हैं परंतु कुछ तस्वीरें कभी कभी सोशल मीडिया पर नजर आ जाती है खूफिया तंत्र उन्हें भी शासन प्रशासन तक पहुंचाएं ताकि उन पर भी कार्रवाई हो सके और देश आतंक मुक्त हो।तभी हर नागरिक अपने को सुरक्षित महसूस करेगा और सरकार की मंशा से प्रश्न चिन्ह हटे गा।छोटी छोटी बातों पर छोटे छोटे गिरोह तलवार भाले लेकर कहा से आ कर समाज को भयभीत करते हैं। आखिर ये सब इन से कौन करवा रहा है? आखिर इस के पीछे कोई बड़ा मकसद तो नहीं?क्या शासन भी मानता है कि धर्म विशेष में ही आतंकी है? इस मंशा को स्पष्ट होना चाहिए ताकि शासन प्रशासन से सिर्फ आतंकी और अपराधी भयभीत हो न कि किसी धर्म का कोई आम व्यक्ति।

