
महामंत्र जितने जग माही कोऊ गायत्री सम नाहीं
माँ की महिमा..
पाँच लाख जप करने के बाद साधक विशेष मनुष्य बन जाता है 24 लाख जप करने के वशिष्ठ की उपाधि प्राप्त कर ब्राह्मणत्व को प्राप्त हो द्विज बन जाता है कुण्डलिनी जागृत कर भूत भविष्य वर्तमान का ज्ञाता बन जाता है श्राप और आशीर्वाद तत्क्षण फलीभूत हो जातें हैं दिव्यदृष्टि (आज्ञाचक्र त्रिकुटी के मध्य का नेत्र) की सिद्धि प्राप्त कर लेता है वह बैठे बैठे समस्त घटनाचक्र को देख और जान लेता है वह सांसारिक जगत मे अपराजेय बन जाता है साथ ही अपने समान ही एक ज्योतिर्मयी शक्ति भी प्राप्त कर लेता है दूरदराज मे पीडित जन जब भी साधक को आवाहन करते हैं यही ज्योतिर्मयी शक्ति वहाँ पहुँच पीडित जन की रक्षा व सहायता करता है एक करोड़ जप करने के बाद राजेंद्र की उपाधि प्राप्त कर लेता है माँ भगवती गायत्री साधक को इन्द्र जैसा पद प्रदान कर देती हैं। माँ गायत्री की महिमा अत्यंत ही महान है।
।। ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।।