
बिहार का वह महान गणितज्ञ बेटा जिसने दी थी, आइंस्टीन के थ्योरी को चुनौती….
बचपन से ही हमें स्कूल में पढ़ाया जाता है कि अल्बर्ट आइंस्टीन इस दुनिया के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति थे और उनके जैसा ज्ञानवान कोई पैदा नहीं हुआ पर आप जानते हैं
भारत में जन्में वशिष्ठ नारायण सिंह ने आइंस्टीन के मशहूर थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी तक को चुनौती दे दी थी।
कौन थे वशिष्ठ नारायण सिंह……..
क्यों इनके बारे में हमें नहीं पढ़ाया जाता……..
न कोई किताब इनके ऊपर लिखी गयी।
वशिष्ठ नारायण का जन्म 2 अप्रैल 1942 को पटना के बसंतपुर गांव में हुआ।
उनके पिता जी पुलिस कॉन्स्टेबल थे और पांच भाई बहनों के परिवार में आर्थिक तंगी हमेशा डेरा जमाए रहती थी पर उससे उनकी प्रतिभा पर कभी कोई ग्रहण नहीं लगा।
वशिष्ठ नारायण एक चाइल्ड प्रोडिजी थे और उनका दिमाग बहुत तेज था।
इतना तेज की उन्होंने गरीबी तक को पीछे छोड़ दिया।
उन्होंने अपने बलबूते पर पटना यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने के समय सिर्फ लोग उन्हें एक होशियार स्टूडेंट समझते थे ।
यूनिवर्सिटी में कुछ ऐसा हुआ जिसने सबको चौंका दिया दरअसल वह मैथ में सिर्फ अपने क्लास के ही नहीं बल्कि अपने सीनियर के सवाल सॉल्व कर देते थे।
कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ नागेंद्र नाथ जो की खुद एक मैथ के प्रोफेसर थे
वह वशिष्ठ से काफी परेशान थे……..
क्योंकि वशिष्ठ अपने क्लास में टीचर से अजीबो गरीब सवाल पूछते थे……..
जो उनके टीचर को भी नहीं आता था।
जब कोई टीचर गलत पढ़ाता था तो उसे डांट भी देते थे।
तब डॉक्टर नाथ ने उन्हें सबक सिखाने के लिए अलग से उनका एग्जाम लिया, उन्होंने ऐसा पेपर सेट किया जो वशिष्ठ को कभी पढ़ाया ही नहीं गया पर जब वशिष्ठ ने पेपर चेक किया उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ।
वशिष्ट ने सिर्फ उन सारे प्रश्नों का जवाब सही नहीं दिया बल्कि जितने संभव तरीके थे सभी से इस प्रश्न को सॉल्व किया।
इसके बाद वशिष्ठ के लिए यूनिवर्सिटी के नियम बदल दिए गए और वशिष्ठ को पहले साल से बीएससी फाइनल ईयर में प्रमोट कर दिया गया
इसके बावजूद उन्होंने डिस्टिंक्शन से क्लास में टॉप किया कॉलेज में उन्हें दूसरे वर्ष के अंत तक उन्हें एमएससी अंतिम परीक्षा देने के लिए अनुमति दे दी गई।
एमएससी फाइनल ईयर के सबसे ऑन होनहार बच्चे ने फाइनल ईयर ड्रॉप कर दिया इस डर से कि उनका टॉप रैंक वशिष्ठ नारायण को प्राप्त हो जाएगा।
वशिष्ठ नारायण सिंह पटना साइंस कॉलेज में पढ़ते थे………
तभी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली की नजर उन पर पड़ी।
कैली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और 1965 में वशिष्ठ नारायण सिंह को अपने खर्चे पर अमेरिका ले गए।
साल 1969 में उन्होंने पीएचडी की डिग्री पूरी की और वशिष्ठ नारायण से डॉक्टर वशिष्ठ नारायण बन गए।
पीएचडी के बाद वशिष्ठ नारायण ने नासा ज्वाइन किया और 1969 में नासा का अपोलो मिशन लॉन्च हुआ……..
जी हां वही अपोलो मिशन जिसने इंसान को चांद पर पहुंचाया था इस मिशन के दौरान कंप्यूटर कुछ देर के लिए बंद हो गए थे……
वशिष्ठ नारायण सिंह ही ने एक गणित लगाकर एक हिसाब निकाला और जब कंप्यूटर सही हो गया तब वशिष्ठ और कंप्यूटर का कैलकुलेशन एक ही था।