
शरीर को असीम सुख देने वाला सेक्स कर के मै और मेरे पति सो गए. लेकिन सुबह एक नया क्लेश इंतजार कर रहा था
—
“बस बहुत हो गया…”
सुबह-सुबह उसके एक शब्द ने मेरी दुनिया हिला दी थी।
“अब एक मिनट भी तुम्हारे साथ नहीं रह सकती!”
मैंने ये कह दिया। गुस्से में, झुंझलाहट में… या शायद थक कर।
वो भी कुछ कम नहीं था, बर्फ़ सा ठंडा चेहरा और तल्ख़ आवाज़ —
“मैं भी अब तंग आ चुका हूं तुम्हें झेलते-झेलते।”
दरवाज़ा ज़ोर से बंद हुआ… और वो चला गया।
दिल धड़क रहा था, आंखें नम थीं।
मैंने झट से माँ को फोन लगाया —
“माँ! मैं बच्चों को लेकर आ रही हूं, अब और नहीं रह सकती इस नर्क में!”
माँ की आवाज़ आई —
“ज़रा रुक बेटी। तेरी बहन भी ऐसे ही मायके आई थी… और अब तन्हा बैठी है।
अगर तूने भी वही किया, तो रिश्ते की राख भी नहीं बचेगी।
न तेरा घर रहेगा, न बच्चों की हँसी।
सुलह कर ले… वो तेरा दुश्मन नहीं है।”
माँ ने जैसे तमाचा जड़ा मेरी ज़िद पर।
मैं टूटकर रो पड़ी।
जब दिल हल्का हुआ, तो ज़रा होश आया।
ग़लती सिर्फ उसकी नहीं थी, मेरी भी थी।
मैं फ्रेश हुई, और उसकी पसंद का खाना बनाया —
उसके लिए खीर भी, जैसी उसे पसंद है।
शाम को वो आया, मैं मुस्कुरा दी जैसे कुछ हुआ ही न हो।
पहले तो वो हैरान हुआ, फिर चुपचाप बैठा,
और जब खीर खा रहा था —
धीरे से बोला,
“कभी-कभी मैं भी ज़्यादा कर देता हूं… माफ़ कर दिया करो।”
उसकी वही एक लाइन…
और मैं अंदर ही अंदर माँ को दुआएं देती रही।
काश हर माँ अपने बच्चों को साथ निभाने की सीख दे,
न कि हर बात पर ‘घर छोड़ने’ की सलाह।
क्या आपने भी कभी ऐसा ग़ुस्से में कोई बड़ा फैसला ले लिया था
जो बाद में सही नहीं लगा?
और अगर हाँ — तो किसने आपको होश में लाया?
❣️ ❤️