*”शक्तियां अनेक प्रकार की होती हैं। धन की बल की सत्ता की अधिकार की सेवा की विद्या की बुद्धि की आदि आदि।”*
*”जब व्यक्ति के पास ईश्वर की कृपा और उसकी न्याय व्यवस्था से किसी भी प्रकार की शक्ति आ जाती है, तो उसे उस शक्ति का अभिमान हो जाता है। उस अभिमान से उसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है।”*
*”जब व्यक्ति की बुद्धि नष्ट हो जाती है,
तो वह ईश्वर द्वारा प्राप्त हुई उन शक्तियों का दुरुपयोग करने लगता है।”* तब वह इस बात को भूल जाता है, कि *”मुझे जो भी किसी प्रकार की शक्तियां मिली हैं, इन सब का आदि मूल कारण ईश्वर है। ईश्वर ने कृपा करके मुझे धन बल विद्या बुद्धि आदि आदि अनेक प्रकार की शक्तियां दी हैं।” और ईश्वर का यह भी अभिप्राय है, कि “मैं इन शक्तियों का अपनी और दूसरों की उन्नति और सुख-समृद्धि के लिए इनका उपयोग करूं।”* इस बात को वह अभिमानी व्यक्ति भूल जाता है, और अपनी मनमानी करने लगता है।
साथ में वह अभिमानी व्यक्ति यह भी मानता है कि *”मेरे इन अत्याचारों अन्यायों को कोई नहीं देखता। कोई इनका हिसाब रखने वाला नहीं है। समय आने पर कोई मुझे दंड देने वाला नहीं है।” “ऐसी भारी अविद्या और अभिमान के कारण व्यक्ति दूसरों पर अन्याय और अत्याचार करता रहता है।”*
फिर एक दिन ऐसा आता है, जब ईश्वर के न्याय का डंडा उस पर चलता है। लोग इस विषय में ऐसा कहते हैं, कि *”जब भगवान की लाठी पड़ती है, तो उसकी आवाज नहीं आती, परंतु पड़ती बहुत ज़ोर से है।”* बहुत कष्टदायक होती है।
वेदों का यह सिद्धांत है, कि *”दंड के बिना कोई सुधरता नहीं है।”* इसलिए सब लोगों से हम यह कहना चाहते हैं कि *”ऐसे अभिमानी स्वार्थी अन्यायकारी अत्याचारी और दुष्ट लोगों को सावधान हो जाना चाहिए, ताकि वे ईश्वर से प्राप्त हुई उन शक्तियों का दुरुपयोग न करें, बल्कि सबकी उन्नति और सुख-समृद्धि के लिए इनका उपयोग करें। अन्यथा उन्हें ईश्वर की व्यवस्था से पशु पक्षी कीड़ा मकोड़ा सांप बिच्छू मगरमच्छ शेर भेड़िया तथा वृक्ष वनस्पति आदि योनियों में इसका बहुत भारी दंड भोगना पड़ेगा।”*