संविधान के असली शिल्पी को भुला दिया गया, क्योंकि वो वोटबैंक की राजनीति में फिट नहीं बैठते थे।
सोचिए —
जिस व्यक्ति ने भारत और म्यांमार (बर्मा) दोनों देशों का संविधान तैयार किया हो,जो आज से 115 साल पहले ICS (Indian Civil Services) में चुना गया हो,
जो अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो,
UNSC का अध्यक्ष रहा जोहो,
जिसने कैम्ब्रिज से शिक्षा ली हो, गणित, फिजिक्स, संस्कृत और अंग्रेजी में डिग्रियाँ ली हों —
क्या वो केवल “संवैधानिक सलाहकार” या “क्लर्क” कहलाने के लायक है?
श्री बी.एन. राव (B. N. Rau) को भारत के संविधान का वास्तविक मसौदा तैयार करने का कार्य सौंपा गया था।
उन्होंने ही अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड, ब्रिटेन जैसे देशों के संविधान का अध्ययन कर भारत के लिए रूपरेखा बनाई थी।
डॉ. अंबेडकर जी को जो ड्राफ्टिंग कमेटी की अध्यक्षता दी गई, वो एक राजनीतिक और सामाजिक प्रतीक के रूप में थी।
अंबेडकर जी ने स्वयं स्वीकार किया था:
“इस संविधान का वास्तविक श्रेय मुझे नहीं, श्री बी.एन. राव को जाता है।”
लेकिन क्या हुआ?
जिसने मसौदा लिखा, उसे भुला दिया गया। बी एन राव को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया।
अंबेडकर जिसने संविधान पर बहस की, उसका महिमामंडन किया गया।
क्यों?
क्या इसलिए कि बी.एन. राव जी ब्राह्मण थे?या इसलिए कि वे राजनीति में नहीं, सिर्फ ज्ञान और सेवा में थे?
उनका एक भाई (बी.एस. राव) संसद में सांसद रहे, दूसरा भाई (बी.आर. राव) RBI के गवर्नर रहे।
लेकिन देश ने शायद जानबूझकर उस परिवार की विद्वता और देशसेवा को भुला दिया।
क्योंकि उन्होंने नारे नहीं लगाए, वोट नहीं माँगे, और अपने नाम की माला खुद नहीं जपी।
आज वक्त है इतिहास से पर्दा हटाने का।
अब सिर्फ नाम की नहीं, कर्म की पूजा होनी चाहिए।
अब सिर्फ प्रतीकों का नहीं, नींव के पत्थरों का सम्मान होना चाहिए।
B. N. राव जी को उनका स्थान लौटाइए — भारत के संविधान के वास्तविक शिल्पी के रूप मे।