आज ही के दिन 6 मई 1865 को गोरखपुर से विभाजित होकर बस्ती नवीन जनपद के रूप में अस्तित्व में आया।प्राचीन काल में बस्ती को भगवान राम के गुरु वशिष्ठ ऋषि के नाम पर वाशिष्ठी के नाम से जाना जाता रहा, कहा जाता है कि उनका यहां आश्रम था। अंग्रेजों के जमाने में जब यह जिला बना तो निर्जन, वन और झाड़ियों से घिरा था। लोगों के प्रयास से यह धीरे-धीरे बसने योग्य बन गया। वर्तमान नाम राजाकल्हण द्वारा चयनित किया गया था। यह बात 16वीं सदी की है। 1801 में यह तहसील मुख्यालय बना और 6 मई 1865 को गोरखपुर से अलग होकर नया जिला मुख्यालय बनाया गया।मेरा भी जन्म इसी जनपद में हुआ।प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा इसी जनपद से प्रारम्भ होकर उच्च शिक्षा गोरखपुर से पूरी हुई। यहीं रहकर तैयारी भी की विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रारंभिक सफलता मिलती गई लेकिन अन्तिम चयन खण्ड शिक्षा अधिकारी के रूप में हुआ।सौभाग्य से इसी से अलग होकर बने सिद्धार्थ नगर एवं संत कबीर नगर में सेवा का अवसर भी प्राप्त हुआ।इसी जनपद से अलग होकर 29 दिसंबर 1988 सिद्धार्थ नगर एवं मगहर में रहने वाले प्रसिद्ध संत (कवि) और दार्शनिक संत कबीर के नाम पर नया जनपद सन्त कबीर नगर बस्ती से अलग होकर 5 सितंबर 1997 को बनाया गया था।सच कहूं तो मित्रों एवं परिवार जनों द्वारा कई बार लखनऊ या अन्य बड़े जनपदों में बसने हेतु प्रेरित भी किया गया, लेकिन इस मिट्टी से प्रेम और आत्मीयता ने अपने से जोड़े रक्खा ।गंगा के मैदानी भाग में स्थित यह पूर्वांचल का क्षेत्र अपनी समृद्ध वैभवशाली सांस्कृतिक विरासत को समेटे हुए बौद्धिक क्षमताओं वाला अनूठा पावन स्थल है।जिसके पश्चिम में भगवान श्रीराम की पावन स्थली और पूर्व में बाबा गोरक्षनाथ की तपोस्थली भारत के विशाल आध्यात्मिक गौरवगाथा का प्रतिनिधित्व करता है।
(ज्ञान चंद्र मिश्र)
खण्ड शिक्षा अधिकारी
मेंहदावल