
*सफेद हाथी साबित हो रहें है सीएचसी
सुविधा के बाद भी डॉक्टर नहीं कर रहे है मरीजों की भर्ती*
सरकार के सख्त आदेश के बाद भी कलयुग में भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर रेफरल का खेल खेल रहे है।
ताजा वाक्या एक बच्चे की बीमारी से जुड़ा है।
हरदोई निवासी इस नौ वर्षीय मासूम को तेज बुखार था और उल्टियां भी हो रही थी।
आनन फानन में इस बच्चे को उसके पिता जगन्नाथ सीएचसी मल्हौर ले कर 24 10 2024 को समय लगभग 12:00 बजे पहुंचें जहां डॉक्टर शोभना यादव द्वारा मरीज की जांच पड़ताल की गई।
पिता का कहना है कि उक्त डाक्टर ने बिना मरीज का पैथोलॉजी चेक अप कराए और बिना कोई इलाज किए राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल को रेफर कर दिया।
इस पर मासूम के पिता ने जब कहा कि दूसरे हॉस्पिटल जाने तक उसके बच्चे की तबियत और खराब हो सकती है तो डॉक्टर शोभना ने कहा कि वो रिस्क नहीं ले सकती है और इस हॉस्पिटल में कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है।
जबकि सीएचसी के अन्य डॉक्टरों का मानना है कि प्राथमिक उपचार के बाद ही मरीज तो उच्चतर स्तर की चिकित्सा के लिए रेफर किया जा सकता है और वह भी तब जब तक कि यह निश्चित न हो जाय कि रेफर वाले हॉस्पिटल में बेड उपलब्ध है या नहीं।
इस मासूम के मामले में ऐसा नहीं हुआ।
डॉक्टर के एडमिशन से मना कर दिए जाने के बाद पिता अपने बच्चे को लेकर राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल विभूति खंड एम्बुलेंस के जरिए जब पहुंचे तो वहां डॉक्टर ने भर्ती लेने से मना करते हुए कहा कि वहां पर नौ वर्ष से ऊपर के मरीज बच्चों की भर्ती होती है।
यहां के डॉक्टरों ने भी बिना मरीज का परीक्षण किए उसे राम मनोहर लोहिया शिशु हॉस्पिटल शहीद पथ भेज दिया यह कहते हुए कि उनके यहां बच्चों की भर्ती नहीं होती चाहे उनकी हालत कितनी भी गंभीर क्यों न हो।
इसके बाद पिता मासूम बच्चे को लेकर एम्बुलेंस के जरिए राम मनोहर लोहिया शिशु हॉस्पिटल शहीद पथ पहुंचा तो उसे तत्काल पांच हजार रुपए एडमिशन के लिए और इलाज का खर्च वाहन कर ने के लिए कहा गए।
जब जगन्नाथ ने कहा कि उसके पास पैसे नहीं है और उसे किसी से उधर लेना पड़ेगा तब तक इलाज शुरू करा दे तो डॉक्टर ने कहा कि बिना पांच हजार जमा किए हुए मरीज भर्ती नहीं होगा और उसे वहां से चलता कर दिया गया।
यही नहीं वहां के डॉक्टरों ने एम्बुलेंस वाले को फटकारते हुए कहा कि तुम लोग हर मरीज को लेकर मुंह उठा कर चले आते हो और एम्बुलेंस वाले तो मासूम को तुरंत वहां से हटाने को कहा।
मासूम के पिता की स्थिति जैसे आसमान से गिरे खजूर पर अटके वाली हो गई।
घंटों की जद्दोजहद के बाद जब मासूम की भर्ती नहीं हुई तो उसके पिता ने पहले उधर मांग कर रुपए का इंतजाम किया फिर अपने बच्चे को प्राइवेट हॉस्पिटल लेकर आए जहां इलाज पर हजारों रुपए खर्च के बाद मासूम के हालत में सुधार आया।
जगन्नाथ का भाग्य प्रबल था कि उनके बच्चे की जान बच गई।
डॉक्टरों के असंवेदनशील रवैए और सरकारी सुविधा पर अपने बच्चे का इलाज न करा पाने का दर्द इस पिता पूछा गया तो उसका दर्द छलक आया।
सरकार गरीबों को मुफ्त में उच्च स्तर का इलाज देने को प्रतिबद्ध है लेकिन डॉक्टर सरकार की मंशा पर ब्रेक लगा दे रहे है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने सभी सीएचसी को उच्चीकृत कर दिया है, योग्य डॉक्टर नियुक्त कर दिया है लेकिन इस डॉक्टर को इलाज करने के लिए कौन प्रेरित करेगा।