महराजगंज,प्राचीनकाल में आर्य पद्धति के अनुसार सोलह संस्कार होते थे।इस समय परिस्थिति के अनुसार दस संस्कार महत्वपूर्ण बताए हैं। पुंशवन,नामकरण,अन्नप्राशन, मुंडन,विद्यारंभ, दीक्षा,उपनयन,विवाह, वानप्रस्त तथा अंतिम संस्कार।इसके अतिरिक्त आजकल जन्मदिन तथा विवाहदीवसोत्सव मनाने का बहुत प्रचलन है।जिसे लोग महत्व भी दे रहे है।
पुंसवन संस्कार जन्म से पहले किया जाता है।मानव योनि बड़े भाग्य से मिलती है।चौरासी लाख योनियों में से निकालकर जीव एक पुण्य वश एक मानव योनि पाता है,तो पूर्व जन्म के संस्कार उसे पतन की तरफ घसीटते है।उन पूर्व जन्म के कुसंस्कारों से दूर करने के लिए ये संस्कार कराए जाते है।नामकरण संस्कार में बच्चों के नाम दिए जाते हैं।आजकल तो रिंकू,टिंकू,बबली,बबलू, स्वीटी न जाने कितने निरर्थक नाम रखे जाते हैं,नाम सुंदर और सार्थक होने चाहिए और बच्चो के नाम का महत्व समझना चाहिए कि तुम राम और कृष्ण जैसे बनो।जन्मदिन पर मोमबत्ती न बुझाकर दीपक जला कर उन्हे समझाना चाहिए की तुम्हारा जीवन दीपक की भांति प्रकाशमय होना चाहिए,जिससे तुम कुलदीपक बनकर कुल का नाम रोशन करो। केक पर नाम न लिखकर बच्चो को नाम का महत्व समझना चाहिए।
रिपोर्टर कैलाश सिंह महराजगंज