
एक साधु बाबा विचरण करते हुए एक नगरी में आ पहुंचे।
उन्होंने देखा की यहां की प्रजा बहुत संपन्न और खुशहाल है और अपने राजा का बहुत सम्मान करती है।
तब उन्होंने उस नगर के राजा से मिलने की इच्छा प्रकट की, तो लोगो ने उन्हें राजमहल तक जाने का मार्ग बता दिया।
राजमहल के मार्ग में उन्हें सैनिकों ने रोक लिया और ऊंचे स्वर और कर्कश आवाज में साधु से कहा – कौन है बुड्ढे तू?
राजमहल की ओर क्यूं जा रहा है, कही किसी दुश्मन देश का घुसपैठिया तो नहीं, वापस चला जा यहां से ही।
वर्ना अंजाम अच्छा नहीं होगा।
साधु ने बोला : तभी तो
सैनिक कुछ समझ नहीं पाए, वो कुछ भी सवाल करते साधु का बस इतना ही ज़बाब होता – “तभी तो”
सैनिक असमंजस में पड़ गए और साधु की गठरी की तलाशी लेकर उन्हें आगे जाने दिया।
राजमहल के द्वार पर द्रारपाल ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया और बोला – साधु जी आप अगर दक्षिणा की तलाश में आए है तो कृपया अगली पूरनमाशी के दिन आएगा उस दिन राजाजी सभी से मिलते है और गरीबों को ढेर सारी दक्षिणा भी देते है।
चलो जाओ बाबा जी यहां आज यहां कुछ नहीं मिलेगा।
साधु ने बोला : तभी तो
द्रारपाल भी कुछ समझ नहीं पाए, वो कुछ भी सवाल करते साधु का बस इतना ही ज़बाब होता – “तभी तो”
उनको लगा जरूर इस साधु के पास कोई दैविक शक्ति होगी और शायद मंत्री जी ही इनकी बात को समझ पायें।
उन्होंने जाकर ये बात मंत्री जी को बताई, मंत्री जी ने साधु को सम्मान के साथ राजमहल में लाने को कहा।
साधु के आने के बाद मंत्री जी ने उनको कहा – बाबाजी आप कहां से पधारे है कृपया अपना परिचय दें और राजाजी तो अभी भोजन करने जा रहे है तो आपसे नहीं मिल पाएंगे।
कृपया कर आप मुझे ही यहां आने का कारण बताइए।
साधु ने फिर से सिर्फ इतना ही बोला : तभी तो
मंत्री जी भी व्याकुल हो गए इसका अर्थ जानने को और वो तुरंत महराज के पास पहुंचे जो भोजन करने जा ही रहे थे और उन्हें सारी घटना कह सुनाई।
महराज को जब पता चला की किसी साधु का राजमहल में आगमन हुआ है तो उनके पहले मैं कैसे भोजन ग्रहण कर सकता हूं।
महराज ने स्वयं जाकर उन्हें राजमहल के अथिति कक्ष में पधारने का आग्रह किया ।
फिर महराज ने उनके पैरों को धुलवाकर अपने से उच्च आसान पर बैठकर भोजन ग्रहण करने को कहा।
साधु के भोजन कर लेने के बाद राजा ने कहा – साधु महात्मा जी आप मेरा प्रणाम स्वीकार करें, इस नगरी में आपका स्वागत है।
साधु ने मुस्कुराते हुए कहा – तभी तो
राजा ने साधु से कहा – महात्मा जी कृपया कर अब इस गुत्थी को सुलझाइए, आप सभी से मिलकर “तभी तो” क्यों कह रहे है?
साधु ने इसका अर्थ बतलाते हुए कहा – राजन, सबसे पहले आपके सैनिकों ने मुझे रोका और बहुत कठोर और अभ्रद्र शब्दो में मुझसे बात की।
उनसे “तभी तो” कहने का अर्थ था की उनकी भाषाशैली और व्यवहार ऐसा है तभी तो वो इस छोटे पद पर है।
उसके बाद आपके द्वारपालो ने मुझे रोका, उनकी भाषा सैनिकों से बेहतर थी लेकिन वो द्वार पर आए साधु का सम्मान करना नहीं जानते थे |
उनसे “तभी तो” कहने का अर्थ था की उनकी भाषाशैली और व्यवहार ऐसा है तभी तो वो इस पद पर है।
उसके बाद मैं आपके मंत्री से मिला, उन्हें घर आए साधु का सम्मान करना और उनसे कैसे बात करना है अच्छे से आता था।
उनकी भाषा शैली सैनिकों और द्वारपालो से बहुत बेहतर थी।
लेकिन अथिति स्वागत से पहले वो आपको भोजन के समय कोई दुविधा ना हो इसके बारे में सोच रहे थे।
उनसे “तभी तो” कहने का अर्थ था कि उनकी भाषाशैली और व्यवहार ऐसा है तभी तो वो इस पद पर है।
उसके बाद मैं आपसे मिला – आपने सारे कार्य छोड़कर, घर आए अथिति का स्वागत किया, अपने स्वयं भोजन करने से पहले, साधु को भोजन कराया और आपकी भाषाशैली और व्यवहार सभी लोगो में सर्वश्रेष्ठ था।
आपसे “तभी तो” कहने का अर्थ था की आपकी भाषाशैली और व्यवहार सर्वश्रेष्ठ है तभी तो आप राजा के पद पर है।
लोगो के व्यवहार और भाषा शैली से हमें पता चल जाता है कि वो अपने जीवन में किस पद पर है।