
गीता भावार्थ
अथ दशमोऽध्यायः
पवन: पवता मस्मि राम: शस्त्र भृता महम्।
झषाणां मकरश् चास्मि स्रोतसा मस्मि जाह्नवी।।३१।।
अब विभूति वर्णन को आगे बढ़ाते हुए सच्चिदानंद परमात्मा नीलोत्पल दल श्याम श्री कृष्ण भगवान कुंती नन्दन अर्जुन से कहते हैं कि *मैं पावन- पवित्र करने वालों में पवन-वायु हूं और शस्त्र धारियों में राम हूं, मछलियों में मगरमच्छ और नदियों में गंगा जी हूं।*
वायु सबको पवित्र करता है।दशरथ नंदन श्री राम धनुर्धर वीरों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। इसी प्रकार भार्गव परशुराम भी शस्त्रधारियों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। श्री कृष्ण भगवान के बड़े भाई बलराम जी भी शस्त्र धारियों में श्रेष्ठ माने जाते हैं।जलचर जीवों में मगरमच्छ-घड़ियाल सबसे बलवान माना जाता है और सभी नदियों में गंगा जी सबसे पवित्र मानी जाती हैं। इसलिए इन सब का विभूतियों के अंतर्गत वर्णन किया गया है।
अब श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि-
सर्गाणा मादि रन्तश्च मध्यं चैवाह मर्जुन।
अध्यात्म विद्या विद्यानां वाद: प्रवदता महम्।।३२।।
अब नीलोत्पल दल श्याम महायोगेश्वर हरि श्री कृष्ण भगवान कुंती नंदन अर्जुन से कहते हैं कि *मैं सचराचर जगत की सृष्टि का आदि, मध्य और अंत हूं। मैं सब विद्याओं में अध्यात्म विद्या हूं और विवाद-शास्त्रार्थ करने वालों का वाद हूं।
श्री कृष्ण भगवान इस जगत की सृष्टि पालन और संहार करते हैं। इसलिए वे इस जगत का आदि मध्य और अंत हैं।अध्यात्म विद्या को छोड़कर शेष सभी विद्यायें अपरा विद्या कही जाती हैं। अध्यात्म विद्या को परा विद्या कहते हैं। *गीता में परा विद्या का वर्णन है*।शास्त्रार्थ- वाद- विवाद करते समय तीन प्रकार के वचन बोले जाते हैं। उन्हें जल्प, वितण्डा और वाद कहते हैं। वाद में यथार्थ बात कही जाती है, इसमें किसी प्रकार का दोष नहीं होता। शेष दो प्रकार के वचन दोषयुक्त होते हैं।
गुरुतर कर्म धर्म उपदेशा।
केशव महिमा कथन विशेषा।।
धर्म का उपदेश देना कठिन कार्य है और श्रीकृष्ण भगवान की महिमा का कथन करना तो सबसे कठिन कार्य है।
कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्।
स्वयं श्री भगवान ही श्रीकृष्ण रूप में अवतार लिए हैं।
सुन्दर विग्रह मेघ समाना।
कृष्ण कमल लोचन भगवाना।।
कमल नयन श्रीकृष्ण भगवान की देह नील मेघ के समान अत्यंत सुंदर है।
श्रीकृष्ण भगवान की जय।
विजय नारायण गुरुजी वाराणसी।
गीता सुगीता कर्तव्या।
जय भगवद् गीते।