
*सम्पादकीय*
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सुना है उसने खरीद लिया है करोड़ों का घर शहर में!!
मगर आंगन दिखाने आज भी बच्चों को गांव में लाता है??
हकीकत को स्पर्श करती उपर की चन्द लाईनें आज के हालात की गवाही दे रही है। बदलते युग में सबकुछ कल की बात होकर रह गया है। पहले शिक्षा दीक्षा जरुर कम थी मगर आस्था अभिलाषा अपनत्व का घनत्व काफी गहरा था।लोग एक दुसरे के लिए जान लुटाते थे! भाईचारगी चरम पर थी। कच्ची मकानों में सच्ची इन्सानियत की तस्वीर झलकती थी! लोगों के दिलो में रहम था! सभी अपने थे कहीं नहीं बहम था!संयुक्त परिवार प्रतिष्ठा का सिम्बल था! सभी में भरपूर आत्मबल था! ईमानदारी कूट कूट कर भरी थी! ज़िन्दगी सबकी सहानूभूति सम्बन्धों के साथ बिना अनुबन्धों के भी खुशहाली लिए गुजरती थी!मगर बदलते परिवेश में बदलाव की बहती गंगा प्रदूषित हो गई।शिक्षा दीक्षा के बाद भी तरक्की सुदा जमाने में घर परिवार की उपेक्षा का चलन वजूद में आ गया! अपनों के साथ रहकर परिवार की समीक्षा का जमाना खत्म हो गया!अग्नि परीक्षा से गुजरती जिन्दगी में अपनों का मोल खत्म हो गया!जो गांव छोड़कर शहर गया फिर वहीं का होकर रह गया?घर परिवार नात रिश्तेदार सब दरकिनार हो गए!गांव धीरे धीरे बिरान होने लगे हैं।शहर आबाद हो रहें है!खेत खलिहान सुनसान हो रहें हैं!अब गांवों में वहीं लोग रह गए जिनका गांव से बाहर जाना नहीं हुआ?।गांवों में आधा मकान खंडहर हो गये! परिवार का परिवार दरबदर हो गया!शान शौकत रूतबा जो कल गांव मे था आज शहर में खो गया। पर तब भी लोग अपनो से बिछड़ने के बियोग को भूल नहीं पाते हैं रहते हैं शहर में बात गांव की बच्चों को बताते हैं!युग परिवर्तन शील है साहब सब कुछ बदल रहा है! रहन सहन खान पान नहान सबकुछ बदल गया?।अब गांव पुरातन जमाने के नहीं रह गये सारी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित स्वक्ष सुन्दर आलीशान मकानों के साथ आधुनिक जमाने की तस्वीर पेश कर रहे हैं।बेहतरीन अस्पताल आधुनिक शिक्षा के मन्दिर से पढ़कर निकलते होनहार बच्चों की फेहरिस्त लम्बी होती जा रही है।लेकिन इसी के साथ पुरातन ब्यवस्था पुरातन सभ्यता का बिनाश भी होता जा रहा है।अब गांवों मे पहले जैसे इन्सानियत का बोलबाला नही है!वह समरसता, आपसी मधुरता, आपसी लगाव, नहीं है। प्रकृति का प्रभावशाली नजारा गायब है! बाग बगीचे खत्म हो गये! जिधर देखिए कंक्रीट के जंगल उग आए है।पढ़ लिखकर जो नोकरी की तलास में बाहर ग्ए वे वहीं के होकर रह गये!जिसके चलते सारी सुविधाएं रहने के बाद भी लोग आखरी सफर पर निकलने के पहले ही बृद्धा आश्रमों की राह पकड़ रहे हैं! घरों में ताला बन्द हो रहे हैं।इस तरक्की सुदा जमाने में बृद्धा आश्रमों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है।यह दौर जिस इतिहास की संरचना में इबारत का हर रोज नया पन्ना जोड़ रहा है उसमें विरक्ती, बैराग्य, वैमनश्यता, बर्बादी ,वहम ,अहम की घृणित शब्दावली को वर्णित कर रहा है। आधुनिकता के आवरण में प्रदुषित होते पर्यावरण को चिन्हित कर रहा है।विकाश के साथ ही विनाश समर्पित भाव लिए निरन्तर जीवन के सफर के मध्यांतर में दर्द का सैलाब समर्पित कर रहा है।जिस तरह से आधुनिकता का परचम बुलन्दी पा रहा है ऐसे ही कायम रहा तो गांवों की पुरातन तस्वीर बाजार कस्बा में समाहित होकर अपने वजूद को मिटा देगी। गांव कल की बात हो जायेंगे! आने वाली नस्लों को इतिहास के पन्नों में दर्ज इबारत से ही पता चल पायेगा की गांव कभी धर्म परम्परा संस्कृति का आश्रय स्थल हुआ करता था जहां समूह में रहकर लोग पुरातन ब्यवस्था में आस्था को समाहित कर कम संसाधनों में भी खुशहाल जीवन बशर करते थे।आधुनिक धरातल पर सच्चाई यही है।आने वाले कल में इसका विकृत बृहद स्वरुप वैचारिक मतभेद की जमीं पर माकूल माहौल पाकर बरबादी का खतरनाक मंजर तैयार कर रहा है जहां सब कुछ अनिश्चितता के समन्दर में ग़र्क हो जायेगा।आज का परिदृश्य तो यही बता रहा है कल को किसने देखा है।
सबका मालिक एक 🕉️ साईराम🙏🏾🙏🏾