
भक्त और भगवान
(परमधाम गमन)
अपने पुत्रों के मारे जाने पर श्री कृष्ण भगवान कुपित होकर एरका नामक झाड़ी को लेकर उसको लाठी की तरह प्रयोग करते हुए उन्मत्त सैनिकों को मारने लगे। यह देखकर अन्य सैनिक भी उसी एरका को लेकर एक दूसरे को मारने लगे। सब लोग नशीली शराब पीकर मतवाले हो गए थे और उस समय कोई अपने वश में नहीं था, इसलिए उस वनस्पति को लाठी के रूप में प्रयोग करके एक दूसरे को मार कर मर गए। प्रभास क्षेत्र में कुल 500000-पांच लाख सैनिक अपने सेनापतियों के साथ कुछ ही देर में आपस में लड़कर शराब के वश में होकर मर गए। उस समय उन लोगों ने इतना अधिक शराब पिया था कि शराब पीने वाले बर्तन से भी मारने पर वे पृथ्वी पर गिर जाते थे और मर जाते। यह आश्चर्यजनक दारुण दृश्य देखकर महाबली बलरामजी शोक से व्याकुल हो गए और उन्होंने एक वृक्ष के नीचे बैठकर कुछ देर तक विचार किया और फिर योग बल से अपने प्राण त्याग दिए। इसके बाद श्री कृष्ण भगवान ने यदुकुल की स्त्रियों को द्वारका सुरक्षित पहुंचा दिया। श्री कृष्ण भगवान ने महाराज उग्रसेन और अपने पिता वसुदेव से सारी घटना का वर्णन किया। श्री कृष्ण भगवान ने कहा कि सैनिक नशीली शराब पीकर मतवाले होकर अनुशासन हीन बन गए। वे किसी की बात न मानकर आपस में लड़ कर मर गए। अब मेरा मन द्वारका में नहीं लग रहा है। अब मैं वन में जाकर निवास करूंगा। आप लोग द्वारका छोड़कर अन्यत्र चले जाएं, क्योंकि द्वारका अब समुद्र में समाने वाली है। श्री कृष्ण भगवान यह समाचार युधिष्ठिर आदि पांडवों को बताने के लिए दारुक को हस्तिनापुर भेज दिये।
नीलोत्पल दल श्याम शंख चक्र गदा धर पीतांबर धारी जनार्दन श्री कृष्ण भगवान की जय।
विजय नारायण गुरु जी वाराणसी। क्रमशः।