
( दो चेहरा )
प्रकाशजी अपनी बहू प्रीति से बोले ,
कल से भारी बारिश हो रही है प्याजा पकौड़ा और शुद्ध घी के सूजी का हलुआ खाने का मन हो रहा है ।
पर बाऊजी रसोईघर में प्याज खत्म हो गया है ,
घी भी कनस्तर के तली में एकाध चम्मच ही होगा।
कल बना देती हूं।
पर बहू एक हफ्ता पहले ही तो गांव से दो किलो देशी घी तेरी ताई सास ने भिजवाए हैं ,
इतना जल्दी खत्म हो गया क्या ?
अच्छा ठीक है .
मन मसोस कर बाबूजी अखबार पढ़ने लगे ।
कनस्तर में तीन पाव ही घी थे बाबूजी लाते समय रास्ते में छलककर गिर गए ।
चाय बिस्कुट दे गई प्रीति ।
बिचारे चुपचाप चाय में बिस्कुट डूबो कर खाने लगे।
बिस्कुट भी बरसात की वजह से मेहराया हुआ व चाय में भी पानी ही पानी है बमुश्किल एक चम्मच दूध डाला हुआ।
अपनी मम्मी और दादाजी की बात सुन रहा है आशू। दादाजी की आंखें भर आईं हैं यह देखकर दुखी हो गया वो ।
आज तो पापा को बताना ही पड़ेगा कि मम्मी दादाजी के खाने पीने में बदमाशी करती है बिचारे दादाजी कभी लजीज खाने को कुछ मांगते तो बहाना बना देती या जानबूझकर बनाना भी नहीं चाहती?
बिचारे प्रकाश जी सज्जन आदमी हैं कभी कुछ ना कहते। अपने बेटे को परेशान नहीं करना चाहते थे ।
प्रवीण के ऑफिस से आते ही आशू के कहने पर किचन में गया तो कनस्तर में डेढ़ किलो घी भी रखा है और दो ढाई किलो प्याज भी है।
प्रवीण समझ गया कि प्रीति मेरे बाऊजी का पेट दाग रही है ।
भाभी माँ का ख्याल रखियेगा और पापा के बिना अकेली है इसलिए बातचीत करते रहिएगा।
टेस्टी डिसेज भी बनाकर खिलाईये ,
हम बेटियां दूर हैं अपनी मां से ,
इसलिए चिंता लगी रहती है ।
प्रीति अपनी भाभी से वार्तालाप कर फोन रख देती है ।
आप आ गए ऑफिस से चाय नाश्ता लाती हूं हाथ मुँह धो लीजिए।
कहते हुए किचन में चली गई प्रीति ।
किचन में आकर ,
आज पकौड़ा खाने का मन कर रहा है साथ में शुद्ध घी का हलुआ मिल जाता तो बारिश का मजा आ जाता ।
अच्छा बनाती हूं ।
पकौड़ा और हलुआ बना कर ले आती है ।
बाबूजी पकौड़ा हलुआ बनकर तैयार है ।
आईये खाया जाय ,
आवाज देने पर प्रकाशजी डायनिंग टेबल पर आ जाते हैं ।
खुश हो चाव से खाते खाते बोल रहे ,
किचन में तो सामान नहीं था न ।
अभी लेकर आया हूं ,
पता चला कि आपको खाने का मन हो रहा है प्रवीण बोला।
प्रीति समझ गई है कि उसकी कुटिल मंशा को समझ गया है प्रवीण ,
बंगले झांकने लगी है।
बाद में प्रवीण आड़े हाथ लेते हुए चेता देता है प्रीति को कि बाऊजी को किसी भी चीज की जरूरत हो ,
कुछ खाने का मन करे तो मुझसे बोले ।
तुमको लानत है अभी अपनी भाभी को ज्ञान बांट रही कि मेरी मां का ख्याल रखे ।
खुद को देखो तुम दो चेहरा और दो आचरण को ओढ़ी हुई हो ।
मेरी भी माँ दादाजी की सेवा करती थी………
संस्कारी थी वो ।
दादाजी मेरी माँ के नाम से ही यह मकान खेत-खलिहान कर गए हैं।
कहकर प्रवीण फफक कर रो पड़ा है।
ऐसी दुष्ट पत्नी के होने से अच्छा होता कि विधुर हो जाता मैं ?
तुम मेरे पिता की सेवा नहीं कर सकती तो यह घर छोड़कर जा सकती हो ।
अवनि व आशू यहीं रहेगें।
हर महीने तुम्हें खर्चे के लिए पैसे भेज दिया जाएगा।
काठ मार गया प्रीति को ।
कलई जो खुल गई उसकी।
कहानी घर घर की है ।
हाथी के दांत खाने के और
दिखाने के और।