
एक बार एक व्यक्ति अपनी बिलकुल नयी कार को बड़े प्यार से पॉलिश करके चमका रहा था।
तभी उसकी 4 साल की बेटी आई और एक छोटे पत्थर के टुकड़े से कार पर कुछ लिखने लगी।
कार पर खरोंच लगती देखकर पिता को इतना गुस्सा आया कि उसने अपनी नन्ही बेटी का हाथ जोर से मरोड़ दिया।
इतनी जोर से कि बच्ची की उंगलियां टूट गई औऱ वह दर्द से छटपटाने लगी ।
आनन फानन में बच्ची को अस्पताल ले जाया जाता है ।
अस्पताल में दर्द से कराह रही उसकी बेटी उससे बड़े मासूमियत से पूछती है- पापा, मेरी उंगलियां कब ठीक होंगी ?
अपनी गलती पर अफ़सोस कर रहा पिता कोई जवाब नहीं दे पाता।
वह वापस घर जाता है और कार पर अपनी लातें बरसाकर गुस्सा निकालता है।
कुछ देर बाद उसकी नजर उसी खरोंच पर पड़ती है जिसकी वजह से उसने अपनी बेटी का हाथ मरोड़ा था।
.
.
.
.
.
.
.
बेटी ने पत्थर से लिखा था- आई लव यू पापा ।
.
.
.
.
.
आदमी रोने लगता है और उसे अपने आप पर बहुत गुस्सा आता है।
………..
गुस्से और प्यार की सीमा नहीं होती। याद रखें….चीजें इस्तेमाल के लिए होती हैं और इंसान प्यार करने के लिए।
लेकिन होता इससे उलट है। हम अक्सर चीजों से प्यार और लोगों को इस्तेमाल करते हैं।