
🔥💐👏🏻…………………………………👏🏻💐🔥
घट-घटवासी उस परमसत्ता के प्रति निष्ठा…………..
एक अनर्थमूलक मान्यता ईश्वर के संबंध में यह बन चली है कि जो उसका स्तवन करता है, पूजा के साथ-साथ भोग-प्रसाद अर्पण करता है, उससे ईश्वर प्रसन्न होता है और उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण करता है।
यह एक प्रकार से ईश्वर को बदनाम करना है।
उसे प्रशंसा की मनुहार और भेंट-पूजा के उपहारों से अहंकारियों, रिश्वतखोरों की तरह प्रसन्न किया जा सकता है तथा प्रलोभनों और दबावों के आधार पर उसे कठपुतली की तरह नचाया जा सकता है।
इन दिनों ऐसे ही प्रशंसा के भूखे और उपहारों के प्यासे भगवानों का बोलबाला है।
इस मान्यता से तो लोग और भी अधिक ढीठ बनते हैं। सोचते हैं, देव दर्शन करने भर से भोगों से निवृत्ति मिल सकती है और छिटपुट कर्मकांडों के बलबूते स्वर्ग में रहने के लिए स्थान निश्चित कराया जा सकता है
गुप्त रूप से किए गए कार्य, चिंतन क्षेत्र में विचरण करने वाले संकल्प भी परमेश्वर से छिपे नहीं रहते। घट- घटवासी सब जानता है।
बाहर के लोगों को तो किसी चतुरता के सहारे धोखे में रखा जा सकता है, वस्तुस्थिति उनसे छिपाई जा सकती है। सरकार की, समाज की दंड-व्यवस्था से तो बचा भी जा सकता है पर जो घट-घटवासी है,
सर्वत्र समाया हुआ है, उसकी जानकारी में सब कुछ है। ऐसी दशा में यह कैसे संभव हो सकेगा कि गुप्त कुकर्मों या अज्ञात विचारों की हीनता उसकी दृष्टि से बची रहे और उस प्रमाद के घपले में अपने पापकर्मों को गया- आया कर सके या पाप चुकते हो जाएँ।
ईश्वर मान्यता से व्यक्तिगत चरित्र को पवित्र बनाया जाता है, साथ ही समाज में भी सुव्यवस्था बनी रहती है। चरित्रनिष्ठा और समाजनिष्ठा के उभयपक्षीय सत्परिणाम व्यापक रूप से मिलते रह सकते हैं।
उसका इतना लाभ मिल सकता है, जिसे देखते हुए शासकीय दंड-व्यवस्था भी हलकी पड़ती है, जो शक का प्रमाण मिलने पर ही किसी को अपराधी ठहराती और दंड की व्यवस्था करती है,पर ईश्वर की नजर तो सर्वत्र है।
उससे किसी के कार्य और विचार छिपे नहीं रहते। साथ ही उसकी परिवार व्यवस्था में भी किसी के साथ राग-द्वेष बरते जाने की गुंजाइश नहीं है।
इसी रूप में ईश्वर पर विश्वास किया जा सके, तो व्यक्ति और समाज को सुसंस्कृत-सुव्यवस्थित रखे जाने के समस्त अवरोध दूर हो सकते हैं।
पं श्री राम शर्मा आचार्य