
फौजियों का जीवन सरल नहीं होता। जितना त्याग जवान करते हैं, उतना ही त्याग उनके परिवारों को करना पड़ता है। क्या बीतती है उस माँ पर जो अपने आंखों के आंसुओं को छुपाकर अपने कलेजे के टुकड़े को विदा करती है।
उतना ही कष्ट एक पत्नी को होता है। उतना ही बहन, पिता, भाई को भी होता है। अपने घर के एयर कंडिशन्ड कमरों में बैठकर देशभक्ति की बातें करना तो बहुत आसान है, परन्तु उस फौजी से पूछो जो ५० डिग्री सेल्सियस तापमान में भी अपनी पूरी यूनिफार्म पहनकर पूर्ण निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य का पालन करता है। माइनस ३५ डिग्री सेल्सियस तापमान में, जमी हुई बर्फ के बीच भी उतने ही साहस के साथ अपने कर्तव्य को निभाता है।
दुश्मनों पर काल बनकर टूटने वाले हमारे फौजी भाई देश की शान हैं। क्योंकि वे केवल अपने परिवार के लिये नहीं जीते, देश के लिये जीते हैं।
इस तस्वीर को एक फौजी का परिवार ही समझ सकता है। देश के लिये हंसते हंसते अपने प्राणों की आहुति भी देने वाले जवानों को प्रणाम है। नमन है उनके माता- पिता को। घर से जाते वक्त एक सैनिक की मनोदशा क्या होती है, उसे आयुष जी की एक कविता द्वारा व्यक्त करने का प्रयास किया गया है―
बहुत निभाया फर्ज तुम्हारा ,
अब माटी का कर्ज चुकाना है।
दुध का कर्ज चुकाया मैने,
माँ अब माटी का फर्ज निभाना है।
चलो मैं चलता हूँ,
मेरी माता मुझे बुलाती है।
माँ तेरे आँचल मे सोया,
अब सरहद आवाज लगाती है।
मत आंखों मे अश्क तु ला यूँ,
सैनिक की तु माता हैं।
कौन क्या बिगाडेगा मेरा जब,
आशीष दो माताओं का, मेरा भाग्य विधाता हैं।
मैं सीमा पर सीना ताने,
तेरा मान बड़ाऊंगा।
वादा करता हूँ माँ तुझसे,
मैं मातृभुमि के सम्मान की खातिर हँसकर जान लुटाऊँगा।
माँ मेरी तु खुश हो,
तेरे लाल को देश बुलाता हैं।
विरले ही होते हैं,
जिनको सरहद पास बुलाता हैं।
हम सैनिक हैं,
मातृभुमि का मान नही खोने देंगे।
आज भले ही शहीद हो जाये,
कल जन्म यही पर फिर लेंगे।
फ़िर माता कि रक्षा को हम,
आगे निकल कर आयेंगे।
जो निगाहे उठती हैं हरण को,
उनके भाल ही धड़ से उडाएंगे।
माँ मेरी यह गर्व का क्षण है,
जो आज तुम्हे मिल बैठा है।
तिलक लगा कर विदा करो माँ,
वहा दुश्मन हमसे अढ़कर बैठा है।
माँ मेरा वादा हैं तुमसे,
कुछ ऐसा मैं कर जाऊंगा।
या तो तिरंगा लहराऊँगा,
या उसमे लिपट कर आऊंगा।
गर्व से सीना चौड़ा करके,
शीश उठा कर चलना तुम।
सैनिक की माता हो,
कभी ना आंखे नम करना तुम।