
“मुझे तो मरना है पर आपका तप बड़ा है आपको सदियों तक इंतजार करना है”
काशी में मंदिर के बाहर खड़े नंदी के कान में ये वाक्य बोल कर उस पंडित ने शिवलिंग के साथ कुएं में छलांग लगा दी।
औरंगजेब की सेना ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के लिए इस क्षेत्र को घेर लिया था
पूरे काशी में मुग़ल सैनिकों के हाथों में तलवारें और मंदिर को
छोड़कर भागते लोगों की चीखें ही दिखाई और सुनाई दे रहीं थी
तब एक पुजारी ने हिम्मत दिखाई और महादेव के स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को बचाने के लिए शिवलिंग के साथ ही ज्ञानवापी कुएं में कूद गए
1777-80 में महारानी अहिल्याबाई ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया
उन्होंने ही इस परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया और
सनातन संस्कृति के गौरव को स्थापित करने का काम किया
मोदी सरकार के प्रयासों से 353 साल पुराना ज्ञानवापी कुंड
काशी विश्वनाथ मंदिर के विस्तार में कॉरिडोर का हिस्सा बना
लेकिन ये तस्वीर उसी नंदी की है जो सालों तक
अपने महादेव की ओर मुंह मंदिर के पुनरुत्थान की प्रतीक्षा करता रहा
लेकिन ये हमारे देश का दुर्भाग्य ही है कि हमारी प्राचीन विरासतों पर
अवैध रूप से कब्जाने वाले आज हमसे ही सवाल कर रहे हैं…
क्या कोई हमारे मकान पर कब्ज़ा करके उसका मालिक बन सकता है?
जवाब है – नहीं! किसी कीमत पर नहीं
सालों तक भी किसी की संपत्ति को अवैध तरीके से
हथियाने पर भी व्यक्ति वो घुसपैठिया ही कहलाया जाएगा उसको एक दिन भागना ही होगा, हमारी विरासत को हमें सौंपना ही होगा।