
संस्कृति
प्रश्न: संस्कृति किसे कहते है?
उत्तर: जिस उत्तम विद्या, शिक्षा, गुण, कर्म, और स्वभाव रूप क्रिया से मनुष्य का आत्मा शुभूषित होता है उसे संस्कृति कहते है।
प्रश्न: राष्ट्र की आत्मा होती है?
उत्तर: संस्कृति।
प्रश्न: आर्य संस्कृति क्या है?
उत्तर: वैदिक संस्कृति को ही आर्य संस्कृति कहते है।
प्रश्न: आर्य संस्कृति के प्रतीक क्या है?
उत्तर: तीन प्रतीक 1. चोटी, 2. जनेऊ, 3. मेखला
प्रश्न: वैदिक संस्कृति क्या है?
उत्तर: संस्कृति के आधार वेद है। इसलिए वैदिक संस्कृति कहलाती है।
प्रश्न: संसार की प्राचीनतम संस्कृति कौन सी है?
उत्तर: वैदिक कालीन सभ्यता
प्रश्न: वैदिक संस्कृति के आधार क्या है?
उत्तर: एक ईश्वर, पुरुषार्थ, चतुष्टय कर्म की प्रधानता, वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, सत्य, 16 संस्कार, यज्ञीय संस्कृति, श्राद्ध तर्पण, परोपकार, गुरुकुलीय शिक्षा, सेवा।
प्रश्न: वैदिक संस्कृति के अनुसार वर्ण कितने है?
उत्तर: चार- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, व शुद्र।
प्रश्न: चारों वर्णों के आधार वर्ण कौन सा है?
उत्तर: ब्राह्मण
प्रश्न: ब्राह्मण किसे कहते है?
उत्तर: जो ब्रह्म अर्थात ईश्वर को जानता है। ब्रह्म जनाति स ब्राह्मणः।
प्रश्न: ब्राह्मण के क्या कार्य है?
उत्तर: मनु महाराज ने ब्राह्मण के छः कार्य बताए है- वेद का पढ़ना और पढ़ाना, दान लेना और देना, यज्ञ करना और कराना।
प्रश्न: राष्ट्र के मुख्य रूप से कितने शत्रु है?
उत्तर: चार- 1.अज्ञान, 2.अन्याय, 3.अभाव, 4.अलगाव।
प्रश्न: ब्राह्मण कौन है?
उत्तर: जो राष्ट्र समाज से अज्ञान को समाप्त करने के लिए कृत संकल्पित हो।
प्रश्न: क्षत्रिय कौन है?
उत्तर: जो राष्ट्र से अन्याय को मिटाने के लिए व्रत ले।
प्रश्न: वैश्य कौन है?
उत्तर: जो राष्ट्र का अभाव दूर कर सके।
प्रश्न: शुद्र कौन है?
उत्तर: सेवा के द्वारा राष्ट्र को समृद्ध बनाने का संकल्प ले।
प्रश्न: आश्रम कितने है?
उत्तर: चार
प्रश्न: चारों आश्रमों के नाम लिखिए?
उत्तर: 1 ब्रह्मचर्य आश्रम, 2. गृहस्थ आश्रम, 3. वानप्रस्थ आश्रम, 4. सन्यास आश्रम।
प्रश्न: इन चारों आश्रमों का क्या काल है?
उत्तर: जन्म से 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य, 25 से 50 वर्ष तक गृहस्थ, 50 से 75 वर्ष तक वानप्रस्थ तथा 75 से शेष आयु तक सन्यास।
प्रश्न: सभी आश्रमों का आधार कौन सा आश्रम है?
उत्तर: गृहस्थ आश्रम।
प्रश्न: ब्रह्मचर्य में कितनी शक्ति होती है?
उत्तर: असीमित अनन्त।
प्रश्न: ब्रह्मचारी की मृत्यु कैसी होती है?
उत्तर: इच्छा मृत्यु।
प्रश्न: पुरुषार्थ चतुष्टय क्या है?
उत्तर: धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
प्रश्न: संस्कार किसे कहते है?
उत्तर: दुर्गुणों को हटाकर उसके स्थान पर सद्गुणों का आधान कर देने का नाम संस्कार है।
प्रश्न: वैदिक संस्कृति में संस्कार कितने होते है?
उत्तर: सोलह।
प्रश्न: सोलह संस्कारों के नाम लिखिए?
उत्तर: 1 गर्भाधान, 2. पुंसवन, 3.सीमान्तोन्नयन, 4.जातकर्म, 5.नामकरण, 6.निष्क्रमण, 7. अन्नप्राशन, 8.मुंडन, 9. कर्णवेध, 10. यज्योपवित, 11.वेदारम्भ, 12.समावर्तन, 13.विवाह, 14.वानप्रस्थ, 15.सन्यास, 16.अन्त्येष्टि।
प्रश्न: इन सभी संस्कारों को विस्तार से कैसे जानें?
उत्तर: इन सभी संस्कारों को विस्तार से जानने के लिए महर्षि दयानंद जी द्वारा लिखित संस्कार विधि पढ़िए।
प्रश्न: सर्वोत्तम अभिवादन क्या है?
उत्तर: नमस्ते जी।
प्रश्न: नमस्ते का क्या अर्थ होता है?
उत्तर: मैं तुम्हारा सम्मान करता हूँ।
प्रश्न: रामराम, जय श्रीराम, राधे-राधे स्लामवालीकुम आदि क्या अभिवादन नहीं है?
उत्तर: नहीं, ये अभिवादन नहीं है ये तो नारे है।
प्रश्न: श्राद्ध का क्या अर्थ है?
उत्तर: जीवित पितर लोगों की श्रद्धा पूर्वक सेवा करना।
प्रश्न: तर्पण किसे कहते है?
उत्तर: श्राद्ध द्वारा तृप्त करना।
प्रश्न: प्रेत किसे कहते है?
उत्तर: मृत शरीर को प्रेत कहते है।
प्रश्न: भूत किसे कहते है?
उत्तर: जिस शरीर का दाह हो चुका हो।
प्रश्न: परोपकार क्या है?
उत्तर: जिससे सब मनुष्यों के दुराचार दुःख छुटे और श्रेष्ठाचार व सुख बढ़े।
प्रश्न: विद्या किसे कहते है?
उत्तर: जिससे पदार्थ का यथार्थ बोध होता है उसे विद्या कहते है।
प्रश्न: शिक्षा किसे कहते है?
उत्तर: जिससे विद्या, धर्मात्मा, सत्यता, और जितेन्द्रियता बढ़े और अविद्या आदि दोष छुटे उसे शिक्षा कहते है।
प्रश्न: अविद्या किसे कहते है?
उत्तर: अनित्य में नित्य, अपवित्र में पवित्र, दुख में सुख जड़ में चेतन की भावना करना अविद्या कहलाती है।
प्रश्न: स्वर्ग क्या है?
उत्तर: सुख विशेष का नाम स्वर्ग है।
प्रश्न: नरक किसे कहते है?
उत्तर: दुख विशेष का नाम नरक है।
प्रश्न: दुःख क्या है?
उत्तर: जनम मरण का बंधन ही दुःख है।
प्रश्न: मोक्ष क्या है?
उत्तर: जनम मरण के बंधन से मुक्त होकर नित्यानंद में रहना मोक्ष है।
प्रश्न: गुरु किसे कहते है?
उत्तर: जो सत्य को ग्रहण करावे और असत्य को छुड़ावे।
प्रश्न: अतिथि कौन होता है?
उत्तर: धार्मिक, सत्योपदेश, विद्वान, सन्यासी, आदि अतिथि होते है।
प्रश्न: सेवा किसे कहते है?
उत्तर: जिसकी जो आवश्यकता हो उसकी पूर्ति करना सेवा कहलाती है।
प्रश्न: सुश्रूषा किसे कहते है?
उत्तर: सुनने की इच्छा रखना।
प्रश्न: विद्वान किसे कहते है?
उत्तर: तुरंत समझे, अधिक सुने, निरभिमानी, सत्य का आचरण करने वाला, विद्वान कहलाता है।
प्रश्न: गुरु के लक्षण क्या है?
उत्तर:आत्मज्ञानी, निरभिमानी, धार्मिक, निर्लोभी, परोपकारी, सत्यवादी, परमात्मा को सबसे बड़ा मानने वाला गुरु कहलाता है।
प्रश्न: सबसे बड़े तीन देव है?
उत्तर: माता, पिता, और गुरु।
प्रश्न: सब क्या चाहते है?
उत्तर: दुखों से छूटना।
प्रश्न: दुखों की जड़ क्या है?
उत्तर: अविद्या।
प्रश्न: यज्ञ किसे कहते है?
उत्तर: शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ में लिखा है- ‘यज्योवै श्रेष्ठतम कर्म:’ यज्ञ संसार का सबसे श्रेष्ठ कार्य है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है वह सभी कार्य जो हमारे स्वार्थ से परे हों तथा परोपकार और जन कल्याण की भावना से ओतप्रोत हों वह सब यज्ञ कहलाते हैं।
प्रश्न: यज्ञ का क्या अर्थ क्या है?
उत्तर:देव पूजा, दान, संगतिकरण।
प्रश्न: महायज्ञ कितने है?
उत्तर: पंच महा यज्ञ।
प्रश्न: पंच महा यज्ञों के नाम लिखिए?
उत्तर: 1.ब्रह्म यज्ञ, 2.देव यज्ञ, 3. अतिथि यज्ञ, 4. पितृ यज्ञ, 5. बलि वैश्व देव यज्ञ।
प्रश्न: ब्रह्म यज्ञ क्या है?
उत्तर: संध्योपासना, ईश्वर की प्रातः व सायं सन्धिवेला में उपासना करने। इसको दुसर्व शब्दों में संध्या, ध्यान भजन भी कहा जा सकता है।
प्रश्न: देव यज्ञ क्या है?
उत्तर: देव यज्ञ अग्निहोत्र करना। देव यज्ञ को बहुत नामों से जाना जाता है। अग्निहोत्र, हवन, होम, यज्ञ, देवयज्ञ आदि।
प्रश्न: सभी देवताओं की एक साथ पूजा किस माध्यम से होगी?
उत्तर: देव यज्ञ(अग्निहोत्र) के द्वारा।
प्रश्न: समस्त प्रदूषण को दूर करने का उपाय क्या है?
उत्तर: देवयज्ञ।
प्रश्न: अतिथि यज्ञ किसे कहते है?
उत्तर: अचानक आये अतिथि की यथा योग्य सेवा सुश्रूषा करना।
प्रश्न: पितृयज्ञ किसे कहते है?
उत्तर: माता पिता आदि पितरों को श्रद्धापूर्वक तृप्त करना।
प्रश्न: बलिवैश्व देव यज्ञ किसे कहते है?
उत्तर: जो कुछ घर में भोजनार्थ बने उसमें से पशु पक्षी आदि जीवों को कुछ भाग निकालकर खिलाना।
प्रश्न: क्या भाग्य ईश्वर लिखता है?
उत्तर: नहीं। हम अपने भाग्य के स्वयं निर्माता है, जो हम कर्म करते हैं जन्म जन्मांतर के कर्मों का ईश्वर शुभ का शुभ अशुभ का अशुभ निश्चित ही फल देता है। उसे प्रारब्ध कहते है। गीता में श्री कृष्ण भगवान ने लिखा है- “अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं, कर्म शुभाशुभम” यदि ईश्वर ही भाग्य का निर्माता हो तो किसी को अत्यंत सुख और किसी को घोर दुख देता तो वह पक्षपाती हो जाता है लेकिन ईश्वर पक्षपाती नहीं वह तो न्यायकारी है, वह केवल हमारे द्वारा किये कर्मों का ही फल देता है।
प्रश्न: हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति क्या थी?
उत्तर: गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति।
प्रश्न: गुरुकुल किसे कहते है?
उत्तर: गुरु के पास शिष्य जाकर अध्ययन करता है उस गुरु के कुल की गुरुकुल कहते है।
प्रश्न: गुरुकुल पद्धति क्या है?
उत्तर: एक निश्चित स्थान पर जंगल में बस्ती से दूर गुरु के पास अंत वासी के रूप में रहकर विद्या अध्ययन अध्यापन करना, कराना ही गुरुकुलीय पद्धति है।
प्रश्न: गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति को भारत से किसने मिटाया?
उत्तर: एडुकेशन गवर्नर जनरल लार्ड मैकॉले ने अंग्रेजी शासन काल में नीति बनाकर गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति को समाप्त कर मैकाले पद्धति को प्रारंभ किया था।
प्रश्न: गुरुकुलों की पुनः नींव किस संस्था द्वारा डाली गई?
उत्तर: आर्य समाज द्वारा।
प्रश्न: आधुनिक भारत में गुरुकुल किसने और किस नाम से स्थापित किया?
उत्तर: स्वामी श्रद्धानंद जी ने 1902 ई० में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार की स्थापना की।
प्रश्न: संस्कृति और सभ्यता में क्या अंतर है?
उत्तर: संस्कृति का सम्बन्ध व्यक्ति के आंतरिक जीवन मन, बुद्धि, संस्कार और आत्मा से है जबकि सभ्यता बाह्य जीवन से संबंधित है। बाह्य शिष्टाचार, सफाई रखना, बातचीत का ढंग, परस्पर व्यवहार सभा एवं समाज में किस प्रकार रहें इत्यादि बातें सभ्यता के अंतर्गत आती है।