
आनंद बक्षी मृत्युशैय्या पर थे।
उनकी तबियत बहुत ज़्यादा खराब थी।
जीवन के आखिरी दिनों में थे।
एक दिन दिलीप कुमार उनसे मिलने आए।
जैसे ही दिलीप साहब उनके कमरे में घुसे तो उन्हें देखते ही वो बोले,”लाले, कैसा है तू?”
आनंद बक्षी जी बिस्तर पर पड़े थे।
काफी कमज़ोर हो चुके थे।
दिलीप साहब को देखकर वो उठने की कोशिश करने लगे।
दिलीप साहब ने जब गौर किया कि आनंद बक्षी उठकर बैठने के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो वो बोले
,”ओ तू मेरे कोल नी आ सकदा।
मैं तेरे कोल आ रहा हूं।”
दिलीप साहब ने अपने जूते उतारे और वो आनंद बक्षी साहब के बिस्तर पर चढ़े।
फिर उन्होंने कुछ ऐसा किया जो देखकर कमरे में मौजूद आनंद बक्षी जी के पुत्र राकेश बक्षी की आंखें नम हो गई।
दिलीप साहब आनंद बक्षी के बराबर में लेट गए और उन्होंने बक्षी जी को गले से लगा लिया।
वो मुलाकात खत्म करके जब दिलीप कुमार वहां से चले गए तो राकेश बक्षी ने अपने पिता आनंद बक्षी से कहा कि दिलीप साहब तो बड़े महान आदमी हैं।
आनंद बक्षी ने बेटे से कहा,”वो हमेशा से ही ऐसे हैं।
” फिर आनंद बक्षी ने बेटे को एक बहुत पुराना किस्सा सुनाया।
वो घटना 1965 के किसी दिन घटी थी।
शशि कपूर और नंदा की फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ ब्लॉकबस्टर हो चुकी थी।
उस साल की दूसरी सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म थी ‘जब जब फूल खिलेे।’
फिल्म का संगीत ज़बरदस्त हिट हुआ था जिसे कल्याणजी-आनंदजी ने कंपोज़ किया था।
और सभी गीत आनंद बक्षी जी ने लिखे थे।
फिल्म के सभी प्रमुख कलाकारों को सम्मानित करने के लिए मुंबई के शन्मुखानंद हॉल में एक समारोह का आयोजन किया गया था।
स्टेज पर सभी लोग बैठे थे।
दिलीप कुमार उस समारोह के चीफ गेस्ट थे।
आनंद बक्षी जी को यूं तो तब तक 8-9 साल हो चुके थे काम करते-करते।
लेकिन ‘जब जब फूल खिले’ उनकी पहली हिट फिल्म थी। स्टेज पर आनंद जी की कुर्सी सबसे कोने में थी। दिलीप साहब सहित स्टेज पर मौजूद सभी लोगों को फूलों का गुलदस्ता देकर सम्मानित किया गया। लेकिन आनंद बक्षी जी को कोई गुलदस्ता नहीं मिला। कुछ देर बाद दिलीप कुमार ने नोटिस किया कि सभी के हाथ में गुलदस्ता है लेकिन आनंद बक्षी के पास नहीं है।
दिलीप साहब को भी एक गुलदस्ता दिया गया था।
वो गुलदस्ता हाथ में लिए दिलीप साहब आनंद बक्षी जी के पास आए और उनसे पूछा,”तुम आनंद बक्षी हो ना?
इस फिल्म के गीत तुम्हीं ने लिखे हैं ना?
” बक्षी जी बोले,”हां जी। मैं आनंद बक्षी हूं।
‘ तब दिलीप साहब ने उनसे पूछा,’
तुम्हारे हाथ में बुके क्यों नहीं है?”
”शायद खत्म हो गया होगा”,
बक्षी जी ने जवाब दिया।
दिलीप साहब ने अपना बुके आनंद बक्षी जी को थमाते हुए कहा,’
‘तुम इस इंडस्ट्री में नए हो।
लोग कहते हैं कि मैं तो स्टार हूं।
इसलिए अगर मेरे हाथ में बुके नहीं है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन तुम्हारे हाथ में बुके होना बहुत ज़रूरी है।
मेरा ये बुके तुम रख लो।’
‘ वो बुके थमाकर दिलीप साहब वापस अपनी सीट पर जाकर बैठ गए।
आनंद बक्षी हैरान थे।
वो कुछ देर तक यूं ही दिलीप साहब को देखते रहे।
उनकी नज़रों में दिलीप साहब के लिए इज़्जत कई गुना बढ़ गई।
आज आनंद बक्षी जी का जन्मदिवस है।
21 जुलाई 1930 को रावलपिंडी में बक्षी जी का जन्म हुआ था।
किस्सा टीवी भारत के महान गीतकार आनंद बक्षी जी को नमन करता है।
शत शत नमन।
और साथ ही हिंदी सिनेमा के ट्रैजेडी किंग दिलीप कुमार जी को भी नमन।