करैली!
बहुत सारे लोगों को करेला अत्यंत प्रिय होता है तो कई सारे लोग उसके कड़वे स्वाद की वजह से इसे कम पसन्द करते हैं। बच्चे तो खास तौर पर कड़वाहट की वजह से खाने से दूर भागते हैं।
इस समय के करेले मुझे सबसे अधिक पसन्द होते हैं क्योंकि ये छोटे छोटे मोटे मोटे होते हैं जिन्हें भरकर कलौंजी (भरवा करेला) बनाना बड़ा आसान होता है। अन्य सीजन में तो लंबे, पतले करेले आते हैं जिन्हें चिप्स की तरह काटकर प्याज वाली सब्जी बनती है।
बचपन में मुझे चेचक ( बड़ी माता) हुई थी। ठीक होने के बाद भोजन करने की इच्छा नही होती थी तब नानी जी ने कहा कि या तो मेरा बनाया नीम का काढ़ा पियो या सुबह दातुन करने के बाद चबा कर नीम की कोमल पत्तियों को खा जाया करो इससे भूख खुल जायेगी!
नीम की पत्ती के सेवन के कुछ ही दिनों बाद मुझे खुब भूख लगने लगी और खाने में करेला ही अच्छा लगता था। बाड़ में यदि एक करेला लगा होता था तो मैं उसे ही तोड़ लाती मामी जी से चूल्हे में भुनवा कर चोखा बनाकर खाती थी।
कहते हैं कि करेला रसोई का डॉक्टर और बुखार का दुश्मन होता है। तस्वीर में जो करेला दिख रहा है ये करेला नही बल्कि करेली है जिसे कुछ लोग वन करेली भी कहते हैं।
ये करेलियां बोई नही जाती हैं बल्कि धरती माता की तरफ से हमे उपहार स्वरूप मिली है। ये खाली भूमि पर, झाड़ियों में स्वत उगती है पक कर झड़े इनके बीज तीन चार महीने तक धरती मां की कोख में सुरक्षित रहते हैं। गर्मियों में जब सारा सिवान साफ हो जाता है और बारिश का पहला पानी गिरता है तब ये अपने आप उग आती हैं।
हमारी तरफ जो अपने आप उगता है उसे लमेरा कहते हैं। परन्तु कुछ चीजें लमेरा नहीं बल्कि इन करेलियों की भांति शुद्ध जैविक होती हैं।
इन करेलियों की सब्ज़ी एक बार यदि आप ने खा लिया तो हर जगह आपकी निगाहें इन्हे खोजती फिरेगी।
ये करेले की अपेक्षा कम कड़वी और स्वाद में काफी गुना स्वादिष्ट होती हैं।
इन्हे पतला पतला काटकर लोहे की कड़ाही में या तवे पर सरसों के तेल में सिर्फ सादा नमक धनिया पाउडर डालकर बना दीजिए इतनी स्वादिष्ट बनती हैं कि आप कई रोटी ज्यादा खा जायेंगे।
बाकी छोटे छोटे आलू संग, प्याज संग बनाइए या जिस तरह भी पसन्द करते हैं बनाइए लेकिन एक बार खाने के बाद इसका स्वाद नही भूलेंगे इस बात की पूरी गारंटी है।