
#___दान…!! 🙏 #___पुण्य…..!!*
एक सेठ जी ने अन्न सत्र खोल रखा था ।
उनमें दान की भावना तो कम थी ,
पर समाज उन्हें दानवीर समझकर उनकी प्रशंसा करे ,
वाहवाही करे ,
अखबार में खबर बने ,
यह भावना
मुख्य थी ! !!
सेठ जी के प्रशंसक भी कम नहीं थे ।
गल्ले का थोक का व्यापार था उनका ,
वर्ष के अंत में अन्न के कोठारों में जो सड़ा गला खराब अन्न बिकने से बच जाता था , वह अन्न सत्र के लिए भेज दिया जाता था । प्रायः सड़े अनाज की रोटी ही सेठ के अन्न सत्र में भूखों को प्राप्त होती थी ।
सेठ जी के पुत्र का विवाह हुआ ।
पुत्रवधू घर आयी ।
वह बड़ी सुशील , धर्मज्ञ और विचारशील थी।
उसने देखा कि उसके ससुर द्वारा खोले गये
अन्न सत्र में सड़े अनाज से बनीं रोटियाँ
दी जाती है तो उसे बड़ा दुःख हुआ ।
बहू ने भोजन बनाने की सारी जिम्मेदारी
अपने ऊपर ले ली ।
पहले ही दिन उसने अन्न सत्र से
सड़े अनाज का आटा मँगवाकर एक रोटी बनायी
और सेठ जब भोजन करने बैठे तो उनकी थाली में भोजन के साथ वह रोटी भी परोस दी ।
काली , मोटी रोटी देखकर कौतुहलवश सेठ ने
पहला ग्रास उसी रोटी का मुख में डाला ,
ग्रास मुँह में जाते ही वे थू-थू करने लगे ।
कौर थूकते हुए बोले” , बेटी !
घर में आटा तो बहुत है ,
यह तूने रोटी बनाने के लिए सड़े अनाज का आटा कहाँ से मँगाया ?*
पुत्रवधू बोली”, पिता जी !
यह आटा परलोक से
मँगाया है।
ससुर बोले” , बेटी !
मैं कुछ समझा नहीं ! !!”
“पिताजी ! जो परोपकार , दान पुण्य हमने पिछले जन्म में किया वही कमाई अब खा रहे हैं , और जो हम इस जन्म में करेंगे वही हमें परलोक में मिलेगा ।
हमारे अन्न सत्र में इसी आटे की रोटियाँ गरीबों और जरूरतमंदों को दी जाती है ।
परलोक में केवल इसी आटे की रोटी पर रहना है ।इसलिए मैंने सोचा कि अभी से हमें इसे खाने का
अभ्यास हो जाय तो वहाँ कष्ट कम होगा।
सेठ जी को अपनी गलती का एहसास हुआ ।
उन्होंने अपनी पुत्रवधू से क्षमा माँगी और अन्नसत्र का सड़ा आटा उसी दिन फिकवा दिया ।
तब से अन्नसत्र से गरीबों , भूखों को अच्छे
आटे की रोटियाँ मिलने लगी।
आप दान तो करो , लेकिन दान ऐसा हो कि जिससे दूसरों का मंगल ही मंगल हो । जितना आप परोपकार की भावना से दान करते हो उतना दान लेने वाले का भला तो होता ही है , साथ में आपको भी एक असीम संतोष की अनुभूति होती है।
दान करते समय यह भावना बस नहीं होनी चाहिए कि लोग मेरी प्रशंसा करें , वाहवाही करें , अखबारों में फोटो और खबर सुर्खियाँ बने ! !!
लेख –
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