
सम्पादकीय
✍🏾 संतोष नयन ✍🏾
जरूरत के मुताबिक ज़िन्दगी जियो साहब!!
ख्वाहिशें तो बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है!!
सांसों के साथ चन्द लम्हें मालिक ने माटी के पुतलों को दिया सृष्टि के संचालन में प्रकृति के प्राविधानों के अनुपालन के लिए! मगर अवतरण के बाद से ही जैसे जैसे उम्र का कारवां आगे बढ़ने लगा इन नश्वर पुतलों में अहम का वहम बढ़ने लगा!
आदमी की औकात में आते ही परम ज्ञानी समझ अपने को मनमानी करने पर उतर गया! रुहानी सफर से आया आदमी इन्सानी सफर से भटक गया!
स्वार्थ की बस्ती में अपनी खुद की हस्ती को खुदा की सरपरस्ती नहीं बल्कि अपनी सस्ती लोकप्रियता में मदान्ध बन कर मस्ती करने में मशगूल हो गया!
भूल गया इस मिट्टी की मकान का मालिक नहीं किराएदार है!
औकात तो उस दिन पता चलता तब बांस के तख्त पर वक्त के हाथों पराजित होकर विवस लाचार बना श्मशान पर अधोगति के राह पर अथाह दर्द को समेटे अधोर मस्तान के शानिध्य में उसी गन्तव्य पर रवाना हो रहा होता जहां से प्रकृति के प्रावधान में योगदान के लिए भेजा गया था!बस यही जीवन का क्रम है!
फिर भी भ्रम पाले आदमी वह सारा जार कर्म करता है जिसका आत्मा परमात्मा के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है!
पता सभी को है जीवन क्षणभंगुर है!
कभी भी परवाना के साथ बुलावा आ सकता है!
फिर भी दुनियां की सारी दौलत पा लेने की होड़ मची है!राह से भटके मुसाफिर के तरह सारा जीवन सतमार्ग से दूरी बनाकर मजबूरी का रोना रोते गुजार देता है!;
क्या लेके आया बन्दे क्या लेकर जायेगा चार दिन की ज़िन्दगी है चार दिन का मेला!अपने पराये के झमेला में सारा खेला खत्म कर देता है।
ज़िन्दगी के सफर में उम्र के पानी से लबालब भरी दरिया जिस दिन सूख जाती है उसी समय औचित्यहीन बना आदमी हर किसी के लिए महत्वहीन हो जाता है!
संशय भरे इस संसार में ब्यवहार, उपकार इन्सानियत के साथ सदब्यवहार जिनके कर्मों की कड़ी में जुड़ता रहा है उनका परलोक में भी गुणगान होता रहा!
मगर साहब इसको मानता कौन है!
इस लिए की वक्त इस पर मौन है!
इस मृत्यु लोक में तो सच सामने देखकर भी लोग अपने के वियोग में परेशान हैं!
उन्हें पता भी है आखरी मंजिल श्मशान है!
फिर भी अनुमान की गुणा गणित में दिन रात लगकर अपने उस मूल को भूल जाते हैं!
जहां की सच्चाई देखकर हर कोई हैरान है!
भगवान भोलेशंकर अविनाशी घट घट ब्यापी अघोराधिश्वर का दरबार जहां समय ठहर जाता है!
हवाएं रुक जाती है!
दिशाएं झुक जाती है!
वहां मुस्कराती मौत कर्मों कि किताब लिए दिन-रात गणना करती है!
न वहां कोई बड़ा होता है!
न छोटा होता है!
हर कोई भावशून्य होता है!
कोई नहीं रोता है?।
क्यों की यही तो आखरी सच्चाई है!
वहीं मालूम होता है सारी दुनियां पराई है?
धन दौलत इज्जत शोहरत घर परिवार नात रिश्तेदार सब यही पर साथ छोड़ देते है!
जरा सोचिए कितना सुन्दर जीवन उन फकीरों का होता है जो मालिक के कायनात में अपने को मालिक में ही आत्मसात कर लोक कल्याण में अपने निर्वाण तक लगे रहते हैं।
उनका वर्तमान भूत भविष्य अदृश्य सत्ता के द्वारा संचालित होता है।
एक आदमी है!
जो दिन रात बिश्वास घात प्रतिघात के साथ उस मायावी चंचला को बन्धन्क बनाने में सारा जीवन लगा देता है जिसका परमधाम में कोई महत्व नहीं!
उसका वहां पर कोई अस्तित्व नहीं!
धन दौलत महल अटारी मिलने के बाद भी ख्वाबों ने ख्वाहिशों की फेहरिस्त कम नहीं होने दिया!
इतिहास गवाह है किसी की ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकी!महाबली महाप्रतापी महाज्ञानी रावण की भी स्वर्ग तक सीढ़ी बनाने का ख्वाब अधूरा रह गया! सांसों के चलने का सिल सिला उस अदृश्य मालिक के किला से संचालित होता है!
जहां हर पल कर्म का लेखा जोखा तैयार किया जाता है!
मगर मगरुर मानव दानव बना सम्पूर्ण समाज में जिस तरह का कलंकित करने वाला कर्म कर रहा है उससे तो न उसका भला हो रहा है न समाज का!आज का परिवेश पूरी तरह बदल चुका है।
हर आदमी झूठ की बुनियाद पर फरेब का महल तैयार कर रहा है!
आखरी सफर तक उन्हीं के बीच बदनाम होकर बेदखल भी हो रहा है जिनके लिए सारा जीवन अधर्म के राह पर चलता रहा!
बृद्धाआश्रम अनाथालय दर दर लावारिश भटकते लोग इसका उदाहरण है!मालिक ने शान बख्सा तो ऊतान हो चले!
भूल गये दो गज जमीन दो गज कफ़न ही तेरी मिल्कियत है!
वह भी नसीब वालों को मुश्किल से मिलती है!
जब तक शरीर में सांस चल रही है कर्म ऐसा कर जाओ भाई जिस राह से तेरी अन्तिम यात्रा काफिला निकले लोग अदब से एहतराम करें!
झुक कर सलाम करे!
समय रहते सम्हल जाओ कोई नहीं अपना!
यह माया की नगरी है!
सब कुछ मृगतृष्णा सरीखे दिखाई देने वाला धोखा है!
मत सोने के हिरण के चक्कर में पड़े वर्ना सब कुछ तबाह हो जायेगा !
भाई बता क्या जबाब देगा वहां जाकर जहां से कसमें खाकर आया था!
नौ महीने गिड़गिड़ाता रहा प्रभु नर्क लोक से बाहर निकालो!
बाहर निकलते ही सब भूल गया!आखिर क्यों!
है तेरे पास कोई जबाब! नहीं न तो अब भी सत्कर्म की राह पकड़ तेरा भी भला होगा मानव समाज का भी होगा!
सबका मालिक एक 🕉️ साईराम🌹🌹
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