
धनघटा का जलवीर: अनिल निषाद, जो मौत की गहराइयों से लौटा लाते हैं ज़िंदगी
जब किसी की जान पर बन आती है और चारों ओर सिर्फ पानी का डरावना सन्नाटा होता है, तब जो व्यक्ति बिना किसी डर के लहरों से लड़ता हुआ ज़िंदगी को वापस खींच लाता है – वह नायक होता है।
धनघटा थाना अंतर्गत नेतवापुर गांव के निवासी अनिल निषाद, महज 25 साल की उम्र में, अब तक कई लोगों की जान बचा चुके हैं, और दर्जनों शवों को नदी की गहराइयों से बाहर निकालकर परिजनों को सौंप चुके हैं।
बचपन से सरयू की गोद में सीखी तैराकी,
अब बना जीवन का उद्देश्य
अनिल निषाद का नदी से रिश्ता बचपन से रहा है। सरयू की लहरों में तैरना उनका खेल था, लेकिन वक्त ने उस खेल को एक संजीदा और जिम्मेदार मिशन में बदल दिया। अब वे बिरहार घाट जैसे खतरनाक स्थानों पर हर उस व्यक्ति की जान बचाने के लिए तत्पर रहते हैं, जो आत्महत्या के इरादे से नदी में कूदता है।
जब भी सरयू नदी किनारे कोई घटना होती है – डूबने का मामला हो या आत्महत्या की कोशिश – पुलिस और ग्रामीणों की पहली उम्मीद बनते हैं अनिल निषाद। वे बिना किसी हिचक और बिना किसी स्वार्थ के नदी में छलांग लगा देते हैं।
पुलिस की ‘अनौपचारिक टीम’ का अहम हिस्सा
अनिल निषाद को पुलिस ने कभी सरकारी तौर पर नियुक्त नहीं किया, न ही उन्हें किसी तरह का मासिक मानदेय मिलता है। फिर भी, हर हादसे की सूचना पर पुलिस उन्हें मौके पर बुलाती है, और अनिल बिना किसी शुल्क के सहयोग करते हैं। कई बार कुछ संवेदनशील पुलिसकर्मी उन्हें अपने पास से कुछ धन दे देते हैं, लेकिन अधिकांश बार वे खाली हाथ लौटते हैं – केवल एक संतोष के साथ कि किसी का शव परिजनों को मिल गया या किसी की जान बच गई।
आर्थिक तंगी के बावजूद जारी है सेवा
अनिल का जीवन बेहद साधारण है।
वे किसी सरकारी नौकरी में नहीं हैं, न ही उनके पास स्थायी आय का कोई साधन है।
फिर भी, नदी में जान की बाज़ी लगाकर लोगों की मदद करना उनकी दिनचर्या बन चुका है।
वे कहते हैं:
“मेरे लिए सबसे बड़ा इनाम वो पल होता है जब किसी का बेटा, पिता या भाई सकुशल मिल जाता है।
अगर शव भी निकाल पाऊं, तो परिजनों को अंतिम विदाई का मौका मिल जाता है – वही मेरी सबसे बड़ी कमाई है।”
जनप्रतिनिधियों और प्रशासन से कोई मदद नहीं
अब तक किसी जनप्रतिनिधि या प्रशासनिक अधिकारी ने अनिल की सेवाओं को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है।
न ही उन्हें कोई सम्मान मिला, न सुरक्षा उपकरण, और न ही गोताखोरी के लिए कोई साधन।
वे खुद की जान जोखिम में डालकर इस सेवा को निभा रहे हैं – न तो लाइफ जैकेट, न रस्सी, न प्राथमिक उपचार किट।
यह स्थिति उन सभी के लिए सोचने का विषय है जो ‘जनसेवा’ के बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर नायकों को पहचान नहीं देते।
समाज को चाहिए ऐसे रक्षक
अनिल निषाद जैसे व्यक्तित्व समाज के असली नायक हैं।
वे न किसी पद की चाह रखते हैं, न पुरस्कार की, लेकिन हमें बताना होगा कि ऐसे लोग कितने मूल्यवान हैं।
प्रशासन को चाहिए कि उन्हें आधिकारिक गोताखोर की मान्यता, जीवन बीमा, प्रशिक्षण, और आर्थिक सहायता प्रदान की जाए ताकि वे सुरक्षित रहकर सेवा कर सकें।
जहां लोग आज छोटी-छोटी सेवाओं के बदले नाम और पैसा कमाने की होड़ में लगे हैं, वहां अनिल निषाद बिना किसी प्रचार और स्वार्थ के मानवता की सेवा में जुटे हैं।
उनकी कहानी सिर्फ एक समाचार नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो दूसरों की मदद करना चाहता है।
अगर सरकार और समाज ने ऐसे हैरत अंगेज़ सेवाभाव को नहीं पहचाना, तो शायद अगली बार नदी में कोई और जान खतरे में हो और अनिल जैसा रक्षक मदद के लिए उपलब्ध न हो।