
पानी की बोतल का ध्यान आते ही सबसे पहले जो नाम याद आता है, वह है – बिसलेरी।
बिसलेरी पानी की बोतल के व्यापार की सफलता को देखकर जगह जगह बोतलबंद पानी का व्यापार गली गली में फैल गया।
मगर बिसलेरी की गुणवत्ता और नैतिक व्यापार की खूबी किसी में नहीं दिखी। कितनी बोतलें तो किसी और नाम की होती हैं, मगर बिसलेरी मांगने पर वही दे दी जाती हैं।
सबने बिसलेरी की प्रतिद्वंदिता कर ली, मगर बिसलेरी को कोई प्रतिस्थापित आज तक नहीं कर पाया है।
मगर दुखद समाचार आया है कि……
देश की सबसे बड़ी पैकेज्ड वॉटर कंपनी बिसलेरी (Bisleri) अपना कारोबार बेचने जा रही है। बिसलेरी अपना कारोबार टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड के हाथों बेचने की तैयारी कर रही है। 7000 करोड़ रुपए में ये डील होगी।
बिसलेरी इंटरनेशनल के मालिक रमेश चौहान ने इकोनॉमिक्स टाइम्स के साथ अपने इंटरव्यू दौरान के कहा कि उत्तराधिकारी के अभाव में वे अपनी कंपनी को बेचने जा रहे हैं।
कृपया ध्यान दें
उत्तराधिकारी के अभाव में…..
इतनी बडी कंपनी में उत्तराधिकारी नहीं, क्योंकि रमेश चौहान जी का कोई पुत्र नहीं है।
इतना बड़ा व्यापार खड़ा तो किया, मगर परिवार नियोजन के नारे से प्रभावित हर हिंदू की तरह देश हित में केवल एक ही संतान पैदा किया।
ये सबक है हिन्दू परिवारों के लिए जो एकल परिवारों मे रहते हैं या जिन्होंने फैशनवश केवल एक ही औलाद रखी है।
खबर है कि उनकी एकमात्र सन्तान जो कि एक लड़की है वो अपनी शर्तों पर जीना चाहती है, उसे अपने पिता के व्यवसाय से कोई मतलब नही।
आप व्यापार से, अपने परिश्रम से भले ही साम्राज्य खड़ा कर लीजिए, मगर कल उसे देखने वाला कौन होगा, इसका भी ध्यान रखना होगा। ।
आपकी काम करने की शेष उम्र 40- 45 वर्ष बीतने में देर नहीं लगती और तब अगर परिवार में बच्चे संभालने वाले नहीं हैं तो अनुभव होने लगता है कि सब व्यर्थ में किया। आज भारतवर्ष में सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या विस्फोट की कही जाती है, जबकि यही विस्फोट दुनिया में भारतवर्ष की सबसे बड़ी ताकत भी बनकर उभरा है।
दुनिया के जाने कितने समृद्ध देश जनसंख्या की कमी के कारण आप्रवासियों को शरण देकर अपने अस्तित्व को बचाने में लगे हैं तो भारतवर्ष की युवा पीढ़ी विश्व में अपनी योग्यता का डंका बजा रही है।
विश्व का सबसे बडा बाजार इसी दम पर आज भारत बना हुआ है, जिससे सभी अपना व्यापार बढ़ाने को लालायित हैं। इसलिए एक बच्चे की मानसिकता को छोड़ अपना परिवार विकसित कीजिए।
वैसे भी जिसकी संख्या अधिक है, उसी के हाथ सबकुछ है। यूरोप की स्थिति पर गहन दृष्टि डालिए, सामाजिक संकट और एकाकीपन से उपजी हताशा को भरा पूरा परिवार ही दूर कर सकता है।