
आज का आरम्भ विचारणीय पोस्ट से
(कापी पेस्ट)
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आज से लगभग महीने दो महीने पहले मेरे एक दोस्त की बहन की शादी फाइनल होने वाली थी.
तो, मेरे मित्र ने मुझे उस परिवार के बारे में पता लगाने में मदद करने को कहा.
इसके बाद जब मैंने उस परिवार के बारे में पता लगाया तो हर जगह से लगभग एक ही जबाब मिला कि…
उनके पिता जी तो बहुत ही भले और सीधे सादे हैं…
समझ लो कि “देवता आदमी” हैं.
इतने पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिलने के बाद शादी फाइनल हो गई और अब इसी महीने 21 नवंबर को मित्र के बहन की शादी है.
कहने का मतलब है कि… हमलोगों के दिमाग में ये बैठा हुआ है कि… जो सीधा सादा और भोला-भाला आदमी है… वो “देवता आदमी” है.
लेकिन, क्या देवता की परिभाषा वही है जो हम आम बोलचाल की भाषा में जानते हैं ???
शायद… सारी समस्या का जड़ इसी “देवता आदमी है” की परिभाषा में छुपा है.
क्योंकि… हमारे कोई भी देव इतने सीधे सादे और भोले भाले तो हरगिज नहीं थे.
जैसे कि उदाहरण के तौर पर कल की कटेशर आफताब वाली घटना को ही ले लेते हैं…
कि, उस कटेशर ने … श्रद्धा नामक लड़की को 35 टुकड़ों में काट कर उसके टुकड़ों को जंगल में बिखेर दिया.
ये और कुछ नहीं बल्कि… सीधे सीधे लव जि हाद का मामला है.
क्योंकि, अगर वो काटी नहीं जाती तो किसी सूटकेस में पाई जाती अथवा पंखे से लटकी पाई जाती…
या फिर, दुमका के अंकिता की तरह जला दी जाती.
परन्तु… क्या ये लव जि हाद का ट्रेंड महज 25-50 साल ही पुराना कोई नया ट्रेंड है ???
मेरे हिसाब से…. नहीं है…!
बल्कि, ये लव जि हाद की समस्या हजारों लाखों साल पुरानी है और हमारे धर्म ग्रंथों में इससे निपटने का उपाय भी बताया गया है.
याद करें कि…. त्रेता युग में शुम्भ-निशुम्भ, अंधकासुर, भस्मासुर आदि कौन थे और उन्होंने किया क्या था ??
ये बताने की आवश्यकता नहीं है कि… शुम्भ-निशुम्भ बेहद शक्तिशाली और भयंकर राक्षस थे…
और, कुख्यात राक्षस रक्तबीज इन्हीं का सेनापति था.
उन्होंने जब माँ भगवती को देखा तो उन्होंने माँ भगवती को धमकाते हुए कहा कि…. या तो तुम हमदोंनो भाइयों में से किसी एक से विवाह कर लो..
अन्यथा, हम तुम्हें मार देंगे.
(आजकल हो रही घटनाओं से इस कथा की तुलना करें कि ये सेम टू सेम वैसी ही घटना है या नहीं ?)
परिणामस्वरूप… माँ भगवती ने युद्ध चुना और रक्तबीज समेत इन दोनों राक्षसों का समूल नाश कर दिया.
उसी तरह…. अन्धकासुर भी महादेव और माता पार्वती का धर्मपुत्र था..
लेकिन, उसने नीचता की पराकाष्ठा पार करते हुए अपनी माता के सामने ही विवाह का प्रस्ताव रख दिया..
परिणामस्वरूप… अन्धकासुर को भी जीवन से मुक्ति देनी पड़ी.
और, भस्मासुर की कहानी तो और रोचक है.
भस्मासुर भी अपने वरदान से मदमस्त होकर माता पार्वती से विवाह करने को आतुर था…
और, इसीलिए वो महादेव को भस्म कर देना चाहता था….
या कहें कि… महादेव को धमका रहा था.
जिसके बाद महादेव ने ये समस्या नारायण को बताई तथा नारायण ने इस समस्या से मुक्ति हेतु मोहिनी रूप रखकर भस्मासुर को मोहित कर लिया. (ट्रैप कर लिया)
फिर प्लान के अनुसार, नारायण ने मोहिनी रूप में एक शर्त रख दी कि चूंकि वे नृत्य में पारंगत है इसीलिए वे उसी से विवाह करेंगी जो कि उन्हीं की नृत्य में पारंगत हो.
ततपश्चात…. उसे नृत्य सिखाने के बहाने ही युक्ति लगाकर उसे उसके ही वरदान से भस्म करवा दिया गया.
इसी तरह…. लव जि हाद का एक प्रसंग त्रेतायुग (रामायण) में भी है कि रावण जबदस्ती माता सीता से विवाह के लिए अड़ा हुआ था..
उसकी इस जिद के कारण पहले तो उसे विभिन्न प्रकार से समझाने का प्रयास किया गया.
परंतु… उसके न मानने पर मजबूरी में बंधु-बांधव समेत उसका समूल नाश कर दिया गया.
द्वापर युग (महाभारत) में भी कमोबेश ऐसी ही कथा है.
कहने का मतलब है कि…. राक्षसों द्वारा ये लव जे हाद की समस्या कोई नई नहीं है और हमारे पौराणिक ग्रंथों में इस तरह की अनेकों घटनाएं पढ़ने को मिल जाती है.
अंतर सिर्फ ये है कि…. पहले ये काम शुम्भ-निशुम्भ, भस्मासुर और अन्धकासुर आदि करते थे…
और, अभी के वर्तमान समय में “कटासुर” वो काम कर रहे हैं.
लेकिन, संतुष्टिजनक बात ये है कि हमारे धर्मग्रंथों में सिर्फ ऐसी समस्या ही नहीं बताई गई है बल्कि समस्या के साथ साथ ऐसी समस्या से निपटने का उपाय भी स्पष्ट शब्दों में बताया गया है कि अगर कोई ऐसा दुस्साहस करता दिखे तो…
फिर, उसका ही नहीं बल्कि उसके सम्पूर्ण बंधु बांधव का विनाश करने की आवश्यकता है..
ताकि, दुबारा फिर कोई ऐसा करने या सोचने की हिम्मत तक न सके.
लेकिन, कालांतर में हमने… दोषियों के बंधु बांधव को क्लीन चिट देने की परंपरा शुरू कर दी कि भला उनकी क्या गलती है..
साथ ही… उससे भी बड़ी गलती ये कर दी कि…. “देवता आदमी” की परिभाषा ही बदल दी.
जबकि…. हमारे सभी ग्रंथों के अनुसार “देवता आदमी” की परिभाषा सीधे सादे लोग नहीं बल्कि आक्रामक और पुरुषार्थ से भरे स्वाभिमानी लोग थे.
इसीलिए… वास्तव में अगर ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकना है तो फिर हमें अपने धर्मग्रंथों के अनुसार ही आचरण करना होगा…
क्योंकि, ये कटासुर भी तो ये सब कुछ अपने आसमानी किताब के आलोक में ही कर रहे हैं.
और, जब वे अपने धर्मग्रंथों के अनुरूप आचरण कर रहे हैं…
तो फिर… आखिर हम अपने धर्मग्रंथों के अनुरुप उन्हें प्रतिउत्तर क्यों नहीं दे पा रहे हैं..
जैसा उत्तर हम हजारों-लाखों वर्षों से…. शुम्भ-निशुम्भ, भस्मासुर, अन्धकासुर आदि को देते आये हैं.
क्योंकि, जब ये धर्म और सभ्यता की लड़ाई है तो फिर अपने धर्म और सभ्यता को रेफर करना और उसी के अनुरूप आचरण करना ही तो हमारा धर्म है.
जय महाकाल…!!!