
गंगा और नेहरू
मैं अपने बचपन से ही इलाहाबाद में गंगा और यमुना नदियों से जुड़ा रहा हूँ,
और जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, यह लगाव भी बढ़ता गया है। मैंने बदलते मौसमों के साथ इनकी अलग-अलग भावभंगिमायें देखी हैं, और अक्सर मैंने उन इतिहास, मिथक, परंपरा, गीत और कहानियों पर विचार किया है जो सदियों से इनके साथ जुड़ी रही है तथा इनके निरंतर प्रवाह का अंग बन गयी हैं। विशेष रूप से, गंगा, भारत की नदी है, जिससे लोग प्रेम करते हैं, जिसके इर्द-गिर्द उनकी जातीय स्मृतियां, उनकी आशायें और भय, उनके विजय गीत, उनकी जीत और हार गुथे हुए हैं।
वह भारत की सदियों पुरानी संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक रही है, सदा बदलने वाली, सदा बहने वाली, लेकिन फिर भी सदा वही गंगा। वह मुझे हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों और गहरी घाटियों की याद दिलाती है, जिनसे मैं बेहद प्यार करता हूँ, और निचले इलाकों के समृद्ध और विशाल मैदानों की, जहां मेरा जीवन और कर्म निर्धारित हुआ है। प्रात:काल के सूरज की रोशनी में मुस्कराती और अठखेलियां करती हुई; शाम के साये में गहरी, उदास और रहस्य से भरी हुई; सर्दियों में संकरी, धीमी और रमणीय धारा; मानसून के दौरान सागर सी विशाल और गरजती हुई तथा उसके ही समान विध्वंस करने की क्षमता रखने वाली, गंगा, मेरे लिए भारत के भूतकाल की स्मृति और प्रतीक के रूप में रही है जो वर्तमान में प्रवाहमान है और जिसकी दिशा भविष्य के महासागर की ओर है। और यद्यपि मैंने अतीत की बहुत सी परंपराओं और रीतिरिवाजों को खारिज कर दिया है, और चिंतित हूँ कि भारत को उन सभी बंधनों से स्वयं को मुक्त कर देना चाहिए जो उसे बांधते और विवश करते हैं तथा बड़ी संख्या में उसके निवासियों को दबाते और विभाजित करते हैं, और शरीर व आत्मा के मुक्त विकास में अवरोधक हैं;
हालांकि यह सब चाहते हुए भी मैं स्वयं को अपने अतीत से पूरी तरह अलग करना नहीं चाहता। हमारी महान विरासत पर मुझे गर्व है और मैं सचेत हूँ कि अन्य सभी लोगों की तरह मैं भी उस अटूट श्रृंखला का हिस्सा हूँ जो भारत के प्राचीन अतीत में इतिहास के आरंभ तक जाती है। मैं उस श्रंखला को नहीं तोडूंगा, क्योंतकि यह मेरे लिए किसी बहुमूल्यह खजाने से कम नहीं है और जिससे मैं प्रेरणा लेता हूँ। और मेरी इस इच्छात के साक्ष्यं और भारत की सांस्कृीतिक विरासत को मेरी अंतिम श्रद्धांजलि के रूप में, मैं यह अनुरोध करता हूँ कि मेरी एक मुट्ठी राख को इलाहाबाद में गंगा में प्रवाहित कर दिया जाये जो बहते हुए उस महासागर में मिलती है जो भारत की तट रेखा को प्रक्षालित करता है।
नेहरू के वसीयतनामे से
Photo: William Hodges