
पूज्य श्री डोंगरेजी महाराज पुण्य तिथि पर शत शत नमन
संपूर्ण भारत वर्ष में कथावाचक के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके डोंगरेजी महाराज एकमात्र ऐसे कथावाचक थे जो दान का रूपया अपने पास नही रखते थे और न ही लेते थे।
जिस जगह कथा होती थी लाखों रुपये उसी नगर के किसी सामाजिक कार्य,धर्म व्यवस्था, जनसेवा के लिए दान कर दिया करते थे।
उनके अन्तिम प्रवचन में गोरखपुर में कैंसर अस्पताल के लिये एक करोड़ रुपये उनके चौपाटी पर जमा हुए थे।
उनकी पत्नी आबू में रहती थीं।
पत्नी की मृत्यु के पांचवें दिन उन्हें खबर लगी ।
बाद में वे अस्थियां लेकर गोदावरी में विसर्जित करने मुम्बई के सबसे बड़े धनाढ्य व्यक्ति रति भाई पटेल के साथ गये।
नासिक में डोंगरेजी ने रतिभाई से कहा कि रति हमारे पास तो कुछ है ही नही,
और इनका अस्थि विसर्जन करना है।
कुछ तो लगेगा ही क्या करें ?
फिर खुद ही बोले – “ऐसा करो कि इसका जो मंगलसूत्र एवं कर्णफूल हैं,
इन्हे बेचकर जो रूपये मिले उन्हें अस्थि विसर्जन में लगा देते हैं।”
इस बात को अपने लोगों को बताते हुए कई बार रोते – रोते रति भाई ने कहा कि…….
“जिस समय यह सुना हम जीवित कैसे रह गये,
बस हमारा हार्ट फैल नही हुआ।”
हम आपसे कह नहीं सकते,
कि हमारा क्या हाल था।
जिन महाराजश्री के मात्र संकेत पर लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं,
वह महापुरूष कह रहे हैं कि पत्नी के अस्थि विसर्जन के लिये पैसे नही हैं और हम खड़े-खड़े सुन रहे थे ?
फूट-फूट कर रोने के अलावा एक भी शब्द मुहँ से नही निकल रहा था।
ऐसे वैराग्यवान और तपस्वी संत-महात्माओं के बल पर ही सनातन धर्म की प्रतिष्ठा बनी है।