
#मैने कही पढ़ा है,
कि जल्द नाराज़ हो जाने वाले पुरुष
वंचित रह जाते हैं स्त्री के सच्चे प्रेम से,
स्त्री के चंचलता भरी निगाहों से,
स्त्री अपने प्रेम के भावों को व्यक्त करने के लिए ऐसे पुरुष के सामने संकोच में रहती है,
स्त्री उस पुरुष को ज्यादा तवज्जो देती है,
जो उसके रूठने पर उसे मनाए,
क्योंकी सदा से ही ये रीति चली आई है कि स्त्री का रूठना उसके प्रेम का ही एक रूप है,
राधा हमेशा कृष्ण से झगडा करके रूठ जाती थीं,
और मेरे कान्हा जी राधा को मनाते थे,
स्त्री अपनें मन के प्रेम को दबाकर पुरुष को ना बोलती रहती है,
और चाहती है पुरुष उसकी ना को हां में बदलने की कोशिश अपने भाव में करे,
जो पुरुष बहुत हिदायती होते हैं वो नही देख सकते स्त्री का उल्लास और उमंग,
स्त्री के प्रेम की उत्सुकता,
अक्सर पुरुष का अहम उसे बांध के रखता है,
उसके प्रेम को दर्शाने नही देता है,
पुरुष नही देख पाता स्त्री की अनुपम छवि,
स्त्री पर अपनी हर इच्छा को थोपने वाले पुरुष अनुभूत ही नहीं कर पाता स्त्री प्रेम की प्रगाढ़ता को,
स्त्री के अंदर उमड़ते प्रेम की जिज्ञासा को,
पुरुष ये समझता है कि दो लोग मिल गए बात किए साथ रहे यही प्रेम है,
पर दोनो के बीच मन का शोर रहा है,
स्त्री का भाव बहता गया अश्रु बनकर पानी की तरह,
स्त्री के अंदर अनन्त वेदनाए,
संभावनाए और सपनों के आवरण में ढकी एक अनोखी नदी यूँ ही सूखती गई.,
स्त्री पुरुष को नाराज करके जीवन को नीरस नहीं करने की चाह में कुंठित मन से बस जिए जा रही है,
अपनी सभी चापुलता को वो भूल गईं हैं,
स्त्री का प्यार पाने के लिए पहले उसके मन को पढे,
स्त्री पैसे से ज्यादा अपनी तरफ उठी उस प्रेम की नज़र को पसंद करती है जिसमे वो सिर्फ़ खुशियां तलासती है,
स्त्री के प्रेम को चंद पैसों से मत तोलिए,
उसके प्रेम का वजन देखिए,
उसे निहारिए सिर्फ प्रेम की नज़र से,
पाने की लालसा से नही,
मेरी समझ से यही प्रेम होने का प्रतिबिंब होता है ❤️🙏