
*सम्पादकीय*
✍🏿जगदीश सिंह सम्पादक✍🏿
*कभी खुद्दारी की सरहद नहीं लांघते*!——-??
*भीख तो छोड़िए जनाब हम हक भी नहीं मांगते*!!—–??
हिन्दुस्तान के इतिहास में अपने खून पसीने से इबारत लिखने वाला किसान उपेक्षित रहकर भी अपना कभी झुकने नहीं दिया स्वाभिमान! मान सम्मान के साथ दिन रात कड़ी मेहनत के बाद भी जलालत के दौर से गुजरता है?।सादा जीवन उच्च बीचार की परिभाषा से परिभाषित होकर भारतीय संस्कृतियों का धरोहर बन शान से जीता है? दौर कोई भी रहा हो शोषण का शिकार किसान ही रहा है!जब देश आजाद नहीं था राजशाही रियासतें लूटती थी! जब भारत गुलाम था विदेशी ताकतें लूटती थी!आजादी के बाद देशी सियासतें तबाह कर रही है?—।दुर्भाग्य के दो राहें पर खड़ा देश का अन्नदाता की हालत दन्त विहीन शेर की हो गई है! अन्नदाता के पराक्रम बिना के देश का कोई उपक्रम वजूद में नहीं रह पायेगा! फिर भी हमेशा हासीए पर रहता है!समाज की मूल धारा से किनारे कर दिया जाता है! आखिर भाग्य विधाता कहे जाने वाले किसान का इस सियासी परिवेश में इतना अपमान क्यों? इसका ज़बाब आम आदमी चाहता है!लेकिन इसका ज़बाब देगा कौन! जब सारी सियासत है इस पर मौन?।जिस दिन देश का किसान अपने सम्मान के लिए उठ खड़ा हुआ उस दिन बदल जायेगा हिन्दुस्तान का इतिहास! यह सबको है आभाष! मगर मद मस्त गज के तरह तमाम झंझावातों को झेलते अपने कर्म के बल पर छल कपट से दूर मां बसुन्धरा के आंचल की छांव में अपनी आस्था के साथ प्रकृति की ब्यवस्था में दिन रात कड़ी मेहनत कर देश की जरूरत को पूरा करता है!सारी बुनियादी सुविधाओं से दूर मजदूर की भांति शान्ती के आगोश में मदहोश मादरे वतन की खिदमत में अपनी ईमानदारी वह मेहनत के बदौलत बिना मोहलत ज़िन्दगी के हर लम्हा को संजीदगी से परम्परा की पराकाष्ठा को अंगीकार कर भारतीय संस्कृतियों की श्रृंखला को स्वीकार करते हुए अपनी जीवन्ता कायम कीए रहता हैं?।प्रकृति की तरह सरकारें बदलती रही! कानून बनते बिगड़ते रहे! लेकिन हर मामले में किसानों के साथ सौतेला ब्यवहार होता रहा। और देश के गद्दार रहनुमा बदनुमा दाग बनकर लोगों के मानस पटल पर उभरते रहे। वही सार्वभौम ब्यवस्था का परि पालक किसान अपने फर्ज के दर्द में सियासत की रवायत को देखकर सिसकता रहा!आज भी वही दंश झेल रहा है जो कन्स के जमाने में झेल चुका है।गजब की सियासी खेल है!जिनके बल पर सियासी साम्राज्य की सम्प्रभुता सभ्य समाज में अपनी सार्थकता का सन्दर्भ प्रमाणित करती है!उन्हीं को सरकारी ओहदा पाकर अपमानित भी करती है?! देश आजाद होने के बाद समाजिक संरचना के संरक्षण के लिए सियासतदारों ने तमाम आयोग बना डाला! मगर किसान आयोग आज तक नहीं बना?।किसान को अपनी बात कहने के लिए कोई मंच नहीं बना?।पढ़ा लिखा तपका अपनी बात रख सके उसके लिए सीट सुरक्षित हो गई! फिल्मी नायको सांस्कृतिक कार्यक्रम करने वालों को सीधे संसद में जाने के लिए ब्यवस्था कायम हो गई! देश के तमाम तबकों को सीधे बिधान परिषद संसद में जाने के प्राविधान है? लेकिन इससे आज तक बन्चित किसान है! क्या आप ने कभी सुना है किसी किसान को बिधान परिषद, संसद, एमएलसी के पद पर या बिधान सभा या किसी आयोग में चयनित किया गया है। कभी किसी संस्था में पद देकर सम्मानित किया गया है! कभी नहीं सुना होगा! न देखा होगा!?अपमान का घूंट पीता किसान सुलग रहा है–
*उस आग को बुझाना कितना मुश्किल होता है*
*जिसमे ना चिंगारी ना धुआं होता है*।—
लुटेरे सियासत बाज आज जिस मुकाम पर देश के किसानों को पहुंचा कर कदम कदम पर मोहताज कर दिए हैं उसका खामियाजा देश को भी भुगतना ही पड़ेगा।जागरूक होता किसान अपने स्वाभिमान के लिए न कभी झुका है! न रुका है? जो दिल मे आग सुलग रही है वह वक्त के साथ प्रज्जवलित होगी! प्रकृति और विकृत सियासत की चपेट में अपने को फौलाद बना चुका किसान कभी खुद्दारी की सरहद नहीं लांघता! कभी भीख नहीं मांगता! इतना सहनशील है की अपना हक तक नहीं मांगता ?– और इसी का फायदा उठाकर गद्दार सियासत बाज दगाबाजी करते चले आ रहे हैं।अन्न हम पैदा करें दाम वो निर्धारित करेगा।वाह भाई वहीं उद्योग पति अपने माल की कीमत खुद तय करता है। एक सम्विधान दो बिधान कब तक चलेगा! कभी न कभी तो बदलेगा हिन्दुस्तान! समय आने पर मजबूती से हिसाब लेगा किसान?।ग़म के साए में सिसक सिसक कर जीना और दिन रात बहाना पसीना का सूत्र बदलना ही होगा।आजादी के समय की गई चालाकी का खामियाजा भुगत रहा है अन्नदाता! वह अपना प्रतिनिधी सरकार में नहीं बनवा पाया।? सियासतदार बनने भी नहीं दिए!उनको अपनी पड़ी इनको कौन पूछता था! सम्विधान निर्माता के नाम पर उतान होकर कर चलने वाले यह नहीं देखते सम्विधान में किस हैसियत में है किसान!उसके उत्थान के लिए क्या बनाया गया है प्राविधान! वाह रे हिन्दुस्तान की सियासत सभी ने दिया धोखा! कहने को कृषि प्रधान देश और किसान से ही सारा विद्वेश! हर रोज होती है आंखें नम!—?
हर रात जानबूझकर रखता हूं दरवाजा खुला!
शायद कोई लुटेरा मेरा ग़म भी लूट ले!—?
जय जवान — जय किसान
जयहिंद 🙏🏾🙏🏾
जगदीश सिंह सम्पादक -7860503468