
सम्पादकीय
✍🏾जगदीश सिंह सम्पादक✍🏾
बेगाना है ये शहर यहां कोई अपना नहीं रहा??
जल गए मेरी आंखों के ख्वाब अब कोई सपना नहीं रहा??
बदलती ब्यवस्था के बीच सिसक सिसक कर जी रही आस्था अपनों के ही कारनामों से वीवसता के बवंडर में फंस कर दम तोड रही है? आज एक आधुनिक जमाने की मतलब परस्त पीढ़ी कितनी नीरलज्जता के साथ अपने ही जन्म दाता के साथ घात प्रतिघात कर रही है। इसको सुनकर देखकर रुह कांप उठती है। रोज कोई न कोई दुखद हकीकत भरी कहानी मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ती हुई गुजर जाती है।दर्द से कराहता दिल तन्हाई में बेवफाई के चोट से घायल अपने जीवन के मसायल पर खून का आंसू रोता माजी के मोहब्बत का दिन याद कर मायूसी भरे आलम में पश्चाताप के दावानल से झुलसते जिन्दगी की शाम का अहसास कर असहाय लाचार होकर दर दर की ठोकर खाने को विवस हो जाता है?। इस जमाना में हकीकत का फ़साना अफसाना बनकर उजड़ते आशियाना की दर्द भरी ईबारत बनकर हर रोज जनमानस मे चर्चित हो रहा है! ऐसा ही सच की एक कहानी कलम की तूफानी स्याही को उबलने के लिए मजबूर कर दिया?बेटे की परवरिश पढाई में सब कुछ गिरवी रखने वाला बाप जब अफसर बने बेटा का आखरी सफर में सहारा चाहा तो दुत्कार दिया गया?।आलीशान अट्टालिका में जहां खनकती लक्ष्मी निवास कर रही थी उसी महल के सड़ांध भरा भूतल का कमरा जहां पालतू कुत्तों का निवास था मजबूर होकर जीवन संगिनी के बिछोह में पागल हुए बे सहारा बाप का अभिशाप युक्त जीवन में आखरी सांस का इन्तजार कर रहा था?सुबह पकवान आधुनिक सामान रोज रोज दोस्तों के साथ घर में पार्टी मगर बाप खाने के लिए बन्द कमरे में तरस रहा था! जिस औलाद के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया’ वहीं पूत कपूत बनकर बदबूदार घर से बाहर निकलने पर पाबन्दी लगा दिया। एक दिन मौका पाकर किसी तरह नर्क से बाहर निकल कर अपने गांव के पीपल के छांव में बसेरा बनाकर सच की स्याही से सम्बन्धों की स्वार्थ भरी दास्तान उस बुजुर्ग ने लिख डाली आज की औलाद की हकीकत दुनियां को बता डाली उस कहानी को आज कोई भी पढ़कर बद्दुआवो से उस औलाद को नवाज रहा है! आज के जमाने की यही हकीकत है। यही फ़साना है।हर कोई खूबसूरत जिस्म का दीवाना है। मां बाप तो बस बहाना है? जिस तरह से सम्बन्धों की तिजारत में महाभारत चल रहा है वहीं अपनी जीवन भर की कमाई को जिसने लुटाया उसको अब खल रहा है!मगर साहब औलाद तो मथुरा का पेठा है जिसके पास है वो भी पश्चाताप कर रहा है? जिसके पास नहीं है वह भी पश्चाताप कर रहा है?।जरा सोचिए जिस बाग के सारे ही फल खट्टे निकल जाए तो बागवान की क्या हालत होगी! बस सन्तोष ही है कि फल न सही छांव भी आखरी सफर मे मिल जाय तो जीवन सार्थक हो जाय ! आजकल यह भी सम्भव नहीं है।!समय का रथ बिना सारथी इस स्वार्थी जमाने में आबाध गति से दुर्गति को लिए निरन्तर अहंकार के रास्ते पर रफ्तार के साथ गतिमान है?लगता हैअब जमाना ही बेईमान है सभी का घायल पड़ा ईमान है! तेजी से बदल रहा हिन्दुस्तान है। धर्म मजहब से परे हर घर में दर्द का दानव पनाह पा रहा है! जरा सी भूल चूक हुई की प्रगति की पहिया से दुर्गती टकरा कर बर्बादी की अभिषप्त कहानी लिख देगी। मोह के बिछोह मे सिसकने वालों सावधान हो जाओ! वर्ना ज़िन्दगी के सफर का आखरी पहर मतलब परस्ती की उफनती धारा में समाहित होकर वजूद को ही मिटा देगी! जो आज है वह कल नहीं रहेगा! सबका मालिक एक –🕉️–
जयहिंद 🙏🏽🙏🏽
जगदीश सिंह सम्पादक