सम्पादकीय
✍🏼जगदीश सिंह सम्पादक✍🏼
दुख: का दरिया शर्म का समन्दर होता है!!
सबसे खौफनाक भूख का मंजर होता है??
आया है सो जायेगा राजा रंक फकीर !जब तक जो है इस दुनियां मे जीता है। अपनी तकदीर! नसीब और भाग्य के तालमेल से जीवन का खेल चलता रहता है!कोई राजा का जीवन जीता है! कोई फकीर का! किसी को सुख के सागर से बाहर निकलने का मौका नहीं मिलता! कोई दुख की दरिया में अपना सब कुछ तबाह कर लेता है! भगवान के सम्विधान में अधिकार तो सबको बराबर का ही मिला है मगर कहीं खुशबूदार बागवानी है कही दुखभरी दुनियां का करिश्माई ज़लज़ला है। चराचर जगत के हर प्राणी को वहीं हवा वहीं पानी वहीं आसमान वही दरिया की रवानी उपभोग उपयोग करने की ब्यवस्था कायनाती इन्त जमात में कायम है।मगर कर्म प्रधान है इसका उल्लेख सर्वत्र है पुराणों में भी लिखा गया है। मगर हालात तो ऐसे भी देखे गए कड़ी मेहनत के बाद भी सुख के साए तक करीब नहीं आए! तब कहा जाता है प्रारब्ध में नहीं लिखा था। वर्तमान देश की ब्यवस्था में आर्थिक तंगी के साथ ही प्रकृति की बहुरंगी चाल ने कमाल कर दिया है।जहां रेत की दरिया थी वहां पानी के समन्दर का सैलाब ला दिया! जहां हरियाली हकीकत भरी के रवानी लाती थी वहां बिरानी फैला दिया! गजब का नजारा है भाई।एक तरफ रोजी रोजगार ब्यापार उधार पर हो गया! वहीं तबाही लाने की तोहमत सरकार पर आ गया!।बेकारी बेरोजगारी का दौर चल रहा है;कोई खाकर मर रहा है! कोई भूखों मर रहा है! खेती किसानी प्रकृति के प्रकोप का शिकार हो गई! वहीं आम आदमी की बदहाल जिन्दगी में ज़लज़ला लाने की जिम्मेदारी सरकार की हो गई?अमीर अमीर हो रहा है! गरीब खून का आंसू रो रहा है! आखिर क्यों सवाल सच के सतह पर बार बार ठोकर मार रहा है! बादशाही सत्ता की सियासी सौगात बरकरार रहे! आमादमी को मिलती खैरात पर चलती सरकार रहे! मगर इस फार्मूले पर अदालत ने रोक लगा दिया।?अब उनका क्या होगा? जो कल तक बिना मेहनत हर खाते में पंद्रह लाख आने का गफलत पाले खैरात के सौगात पर मुस्करा रहे थे! रोजगार मिला नहीं! कल कारखाना खुला नहीं! बेरोजगारी के चलते बेकारी की बिमारी करोना की महामारी से भी खतरनाक हो गई!रसोई गैस का बढता दाम भूखमरी का पोख्ता इन्तजाम कर दिया है?कहीं भयंकर सूखा है! कहीं बाढ़ से हो गया धोखा है।?पैदावार हुई नहीं! फिर कैसे जलेगा गरीब के घर का चुल्हा?सुबिधा भोगी सियासत के शागिर्द जिनके अंक पास में धनलक्ष्मी कसमसा रही है।अथाह धनसम्पदा,बिलाशिता के महल जिनके शान अभिमान का परचम बुलन्द कर रहा है!वो एक बार सियासी नौका पर सवार होकर लोकतंत्र के समन्दर को पार कर गये उसके जीवन भर के लिए सुख सुविधा मुहैया कराने के लिए जिम्मेदार सरकार हो गयी।आम आदमी सादगी में दो जून की रोटी के लिऐ पैमाल है! वहीं सियासतदार,जन प्रतिनिधि पांच साल में ही हो जा रहा माला माल है?एक देश मगर अलग अलग परिवेश।! सीमा पर तैनात जवान को पेंशन नहीं! वहीं बिधायक जी सांसद जी को आजीवन जितने बार चुनाव जीतकर आये उतनी बार की पेंशन सरकार को कोई टेन्शन नहीं ?; आखिर कब तक जुल्म सहेगा आम आदमी! वास्तविकता अब यही है बगावत का बीज बिहार से बिखरने लगा है! उसका असर बंगाल तक दिखने लगा है?।जिस तरह के जज्बाती लम्हे लश्कर बना रहे हैं! उससे तो साफ दिखने लगा है आने वाले कल में सम्पूर्ण क्रान्ति का बिगुल बजने वाला है।बस एक जे पी जैसे नेता की अगुवाई का इन्तजार है।
जयहिंद🙏🙏🕉️
जगदीश सिह7860503468