
पीतांबरा पीठ के पीठाधीश्वर स्वामी जी महाराज दतिया शहर में आने के बाद 5 माह 13 दिन शहर के विभिन्न स्थानों पर रहे।
23 दिसंबर 1929 को वह वनखंडी ( श्री पीतांबरा पीठ) पहुंचे।
साधना के दौरान उन्हें 9 फीट ऊंचे महात्मा (अश्वत्थामा) के दर्शन हुए।
उन्होंने कहा कि तुम ठीक स्थान पर आ गए हो।
यह स्थान ठीक है।
इसके बाद श्री स्वामी जी ने वनखंडी को ही अपनी तप स्थली बनाया।
लगभग 6 साल की कठिन तपस्या के बाद 23 मई 1935 को उन्होंने मां पीतांबरा की पीठ पर प्राण प्रतिष्ठा कराई।
14 जून 1978 को मां धूमावती को प्राण प्रतिष्ठा पूज्यपाद स्वामी जी के मार्गदर्शन में की गई।
एक साल बाद पूज्यपाद चिर समाधिस्थ हो गए।
पूज्यपाद स्वामी जी महाराज पर शोध लिख चुके श्री पीतांबरा पीठ के पुजारी डॉ. चन्द्र मोहन दीक्षित के अनुसार स्वामी जी महाराज देश भ्रमण के दौरान रेलवे ट्रैक के रास्ते दतिया आए।
श्री पंचम कवि की टोरिया के पास शाम हो जाने पर वहां शाम की सैर कर रहे युवाओं से रुकने का स्थान पूछा। युवाओं ने मढ़िया के महादेव का पता बताया।
पूज्यपाद स्वामी जी महाराज मढ़िया के महादेव पर रुके। पास में पर्वत सिंह फौजदार रहते थे।
वह साधु संतों की सेवा करते थे।
उन्होंने स्वामी जी से कहा कि मंदिर पर रुकने की व्यवस्थाएं ठीक से नहीं हो पा रही।
इसलिए उनके घर पर रुकें।
स्वामी जी फौजदार के घर पर रुके।
श्री फौजदार के घर पर ही उन्होंने ईश्वर गीता का अनुवाद किया।
एक दिन वह फौजदार से बोले घर छोड़ का सन्यास लिया। घर पर रुक गए।
यह कह कर उन्होंने फौजदार का घर छोड़ा ।
कुछ समय महंत मंगलदास के हनुमान मंदिर पर वह रुके।
23 दिसंबर 1929 को स्वामी जी वनखंडी (पीठ पर वनखंडेश्वर महादेव) पर आ गए।
कठिन तपस्या के बाद 23 मई 1935 को मां बगलामुखी ( श्री पीतांबरा माई) की वनखंडी पर स्थापना की।
1978 को विराजीं थी मां धूमावती 1979 में चिर समाधिस्थ हुए थे स्वामीजी
बता दें कि 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के दौरान पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज ने पीठ पर विशेष अनुष्ठान कराया था।
अनुष्ठान में मां धूमावती का आव्हान किया गया था।
अनुष्ठान की पूर्णाहूति के साथ युद्ध विराम हो जाने के बाद पूज्यपाद स्वामी जी अपने शिष्यों से कहा करते थे कि मां धूमावती ने अपना काम किया है।
उन्हें विराजमान कराना होगा।
जेष्ठ शुक्ल अष्टमी 14 जून सन् 1978 को पीठ पर मां धूमावती की प्राण प्रतिष्ठा की गई।
ठीक एक साल बाद यानि जेष्ठ शुक्ल अष्टमी 3 जून 1979 को पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज चिर समाधिस्थ हो गए।
जय मां ब्रह्मास्त्र विद्या आपकी सदा ही जय
साभार ब्रह्मास्त्र विद्या